स्वाइन फ्लू। जैसा कि नाम से बिदित है यह सूअरों से मनुष्य तक संक्रमित होने वाला रोग है| यह वायरल डिजीज है जिसका आउटब्रस्ट नम बरसाती मौसम में होता है| इस रोग का कारक एच1 एन1 वायरस है, यह दुनिया के हर उस हिस्से में हो सकता है| जहां बारिश हरियाली लेकर आती है वही कूड़े-करकट का निस्तारण ना हो पाने से गंदगी का अंबार भी लगता है और वहां सूअर भी अपना भोजन खोजने भटकते रहते हैं। ऐसे में वो संक्रमित होते हैं जिनसे यह वायरस मनुष्य तक पहुंच सकता है| बाद में मनुष्य स्वयं ही इस एपिडेमिक का वाहक बन जाता है|
प्रभावित होने वाले जीव- सूअर एवं मनुष्य
संक्रमण की विधि -यह वायरस प्रभावित सूअर अथवा मनुष्य के छींकने खांसने के साथ बाहर आता है और संपर्क में आए मनुष्य को आक्रांत करता है|
स्वाइन फ्लू के लक्षण –
1-प्रथम अवस्था- सामान्यतः सामान्य सर्दी जुकाम, बुखार, गले में खराश, छींक आना, बदन दर्द, पेट दर्द, उल्टी दस्त लगना|
2-द्वितीय अवस्था अथवा प्रोग्रेसिव टाइप- यदि चार-पांच दिन तक जुकाम न खत्म हो और उपरोक्त सारे लक्षण एवं खांसी व ज्वर तीव्र हो जाएं उसे प्रोग्रेसिव अथवा द्वितीय अवस्था माना जाता है|
तृतीय अवस्था अथवा कॉम्प्लिकेटेड टाइप- यदि सही समय पर सही चिकित्सा ना हो पाया हो और रोग बढ़ता रहे तो स्वसन तंत्र बुरी तरह प्रभावित होकर फेफड़ों की कार्यक्षमता घट जाती है| न्यूमोनिया डेवलप कर जाता है, ऑक्सीजन की कमी महसूस होने लगती है ,उल्टी और दस्त, पेट में दर्द असहनीय अवस्था तक बढ़ सकता है ,जिससे डिहाइड्रेशन और बाद में रीनल फेल्योर भी संभव है|
वर्ल्ड हेल्थ आर्गेनाइजेशन के अनुसार स्वाइन फ्लू में मृत्यु दर मात्र 0.4 परसेंट है जो कई अन्य संक्रामक रोगों की अपेक्षा बहुत ही कम है| यह ऐसा रोग नहीं है जिससे बहुत ज्यादा भयभीत हुआ जाए|
बचाव के उपाय- नमी, गंदगी और भय इस रोग को बढ़ावा देते हैं| यदि हम अपने आसपास सफाई और जल निस्तारण का समुचित ध्यान दें तो यह रोग नियंत्रित रहेगा| भय व्यक्ति की प्रतिरोधक क्षमता को घटाती है जो किसी भी रोग को आमंत्रित करने का कारण बन सकती है| यह वायरस सख्त और सपाट सतह पर 24 से 48 घंटे तक जीवित रह सकता है कपड़ों पर 8 घंटे तक एवं हाथ पर 3:00 से 5:00 मिनट तक अतः दूसरे की मोबाइल फोन कीबोर्ड दरवाजे के हैंडल छू कर हाथों को साबुन अथवा अल्कोहल से अवश्य धोएं| जुकाम से पीड़ित व्यक्ति मास्क अवश्य लगाएं|
भय मुक्त रहकर व्यायाम प्राणायाम और अच्छे पौष्टिक भोजन से अपनी रोग प्रतिरोधक क्षमता को बनाए रखने की जरूरत है|
चिकित्सा- रोग पूर्व बचाव के लिए –
एलोपैथी में टीकाकरण
आयुर्वेद में तुलसी गिलोय अदरक आंवला का प्रचुर मात्रा में सेवन
होम्योपैथी में भी बचाव की औषधियां है स्वाइन फ्लू होने से पूर्णतः रोक सकती हैं | वह है- इन्फ्लुएंन्जिनम एवं आर्सेनिक एल्ब इनकी 200 शक्ति की एक एक खुराक दो दो दिन के अंतर पर संक्रमण काल में तीन चार बार लिया जा सकता है| एक अन्य तीसरी दवा जिसके लिए होम्योपैथिक मटेरिया मेडिका में लिखा है की यह हर तरह के फ्लू की प्रतिरोधक औषधि है वह है आसिलोकोकिनम 200 (Oscilococcinum)
रोग हो जाने पर-
रोग हो जाने की अवस्था में लाक्षणिक चिकित्सा पद्धति होने के कारण होम्योपैथी सबसे ज्यादा सक्षम और समृद्ध है| एकोनाइट नक्स वोमिका, ब्रायोनिया, एलियम सीपा, जेल्सीमियम, आर्सेनिक एल्बम, इपिकाक, लाइकोपोडियम, यूपेटोरियम पर्फ, ऐन्टिम टार्ट, हिपर सल्फ, स्पाइडोइस्पर्मा, हिपेटिका, डलकामारा नेट्रम सल्फ आदि विभिन्न होम्योपैथिक औषधियां अलग-अलग लक्षणों पर त्वरित एवं प्रभावपूर्ण असर डाल कर इस रोग को पूर्णतया खत्म कर सकती हैं|
एम.डी. होमियो लैब प्रा. लि. महाराजगंज यू.पी. ने तीन ऐसे पेटेंट दवाएं बनाई है जिन्हें अन्य दवाओं के साथ देकर स्वाइन फ्लू को प्रभावी ढंग से रोका जा सकता है| वह हैं नो कफ सिरप, पाइरेक्सिया सिरप एवं एकनिल बाम|
डॉ एमडी सिंह
प्रबंध निदेशक
एमडी होमियो लैब
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