Vibhuti Pandey : आप चाहे कितनी भी बार कह लें, चाहे टाइम्स के संपादक तक आप की बात से सहमत हों, लेकिन The Times of India अपना उच्च मध्यम वर्गीय चरित्र नहीं छोड़ेगा. कल किसान कवरेज पर टाइम्स की हेडलाइन पढ़िए. परसों सोशल मीडिया पर हिट शेयर के लिए इन्होंने जो भी किया हो लेकिन कल किसान और सुरक्षाकर्मियों की भिड़न्त की जो दोनों फोटो सोशल मीडिया पर वायरल हुई थी, दोनों ही टाइम्स ऑफ इंडिया ने नहीं छापी हैं.
परसों तो छुट्टी का दिन था. दिल्ली वालों को किसानों के जाम से क्या ही परेशानी हुई होगी. लेकिन टॉइम्स तो जाम का फ्लायर लगाएगा. जिसको इस हेडलाइन की जितनी आलोचना करनी है करे. टॉइम्स ऑफ इंडिया को जितना किसान विरोधी बोलना है बोल ले. टॉइम्स को कोई फर्क नहीं पड़ता क्योंकि उसे पता है कि कोई किसान ‘टाइम्स ऑफ इंडिया’ नहीं पढ़ता या तो वो उस पर समोसा खाता है या बच्चों की टट्टी साफ करता है. ये टॉइम्स ऑफ इंडिया के थेथरई की पराकाष्ठा है.
Girish Malviya : “खबरदार इंडिया वालों! दिल्ली में भारत आ गया है।” यह शब्द थे महान किसान नेता महेन्द्र सिंह टिकैत के, जब 1988 में उन्होंने 7 लाख किसानों को लेकर बोट क्लब पर धरना दिया था तो लुटियंस जोन में उस दिन अफरा तफरी मच गयी थी। दिल्ली का सिंहासन भी उस दिन डोल गया था। कहते हैं कि उन दिनों बोट क्लब पर इंदिरा गांधी की पुण्य तिथि के अवसर पर होने वाली रैली के लिए रंगाई-पुताई का काम चल रहा था। जो मंच बनाया गया था, उस पर भी किसानों ने कब्जा कर लिया था।
दिल्ली के गाजियाबाद बॉर्डर की तरह उस दिन भी पुलिस ने निहत्थे किसानों पर जिस तरह लाठीचार्ज और आँसू गैस का प्रयोग किया था, उस समय एक पत्रकार ने उनका इंटरव्यू लिया था। अपने इंटरव्यू में महेंद्र सिंह टिकैत ने जो कहा था वो आज की परिस्थितियों पर भी प्रासंगिक बैठता है। उन्होंने कहा था-
‘किसाण बदला नहीं लेता, वह सब सह जाता है, वह तो जीने का अधिकार भर चाहता है। पुलिस ने जो जुल्म किया है, उससे किसानों का हौसला और बढ़ा है। किसान जानता है, देश के प्रधानमंत्री ने दुश्मन सा व्यवहार किया है। हम तो दुश्मन का भी खाना—पानी बंद नहीं करते। किसानों की नाराजगी उसे सस्ती नहीं पड़ेगी। इसलिए उसे चेतने का हमने समय दिया है। किसाण फिर लड़ेगा, फिर लड़ेगा, दोनों हाथों से लड़ेगा। सरकार की लाठी—बंदूकें किसाण की राह नहीं रोक सकतीं।’
किसानों की नाराजगी का नतीजा यह हुआ कि 1984 में देशभर में 543 लोकसभा सीटों में से 401 सीटें जीतने वाली कांग्रेस 1989 में 197 सीटों पर सिमट कर रह गई। यही हश्र अब बीजेपी का होने वाला है।
सोशल मीडिया पर बेबाक लिखने वाले मीडियाकर्मी विभूति पांडेय और इंदौर के चर्चित सोशल मीडिया राइटर गिरीश मालवीय की एफबी वॉल से.