उमेश चतुर्वेदी-
अनामिका को लेकर हिंदी समाज में उत्साही हर्ष है..साहित्य अकादमी पुरस्कार से उन्हें सम्मानित किए जाने की घोषणा के बाद वादों-विचारों और खेमों में बुरी तरह विभक्त हिंदी समाज की ऐसी प्रतिक्रिया एक तरह से अनामिका के व्यक्तित्व की हर तरफ की स्वीकार्यता का द्योतक है..
चेहरे पर सजे सदा स्नेहिल मुस्कान वाली अनामिका को आज के दौर की कथित क्रांतिकारी रचनाकारों जैसे उद्वेग और वाद आधारित सेलेक्टिव गुस्से में कभी नहीं देखा गया है..
करीब डेढ़ दशक पहले दीपावली पर प्रकाशित होने वाले लोकमत समाचार के साहित्य विशेषांक के लिए उनका इंटरव्यू लेने उनके दिल्ली स्थित क्वार्टर पर गया था..
अनामिका को शायद ही याद हो..
उस सुबह उन्होंने इंटरव्यू के लिए सौजन्यतावश बुला जरूर लिया था, लेकिन एक्सटेंपोर इंटरव्यू नहीं दिया था..
उन दिनों स्कूल में रहे अपने बच्चों को दूध-नाश्ता देते-देते मुझे भी चाय पिलाई थी और प्रश्नावली लिखित में लेकर रख लिया था..
इसके अगले दिन मुझे उनका लिखित उत्तर लेने मुझे जाना पड़ा था..
यह संयोग ही है कि उसी लोकमत समाचार के विशेषांक के लिए एक साल पहले मुझे महात्मा गांधी अंतरराष्ट्रीय हिंदी विश्वविद्यालय के तत्कालीन उपकुलपति पंडित अशोक वाजपेयी ने विश्वविद्यालय की ओर से मिले दिल्ली के फ्रेंड्स कॉलोनी के घर में बुलाया था।
वक्त दोपहर बाद का था। जब मैं उनके घर पहुंचा तो उनकी पत्नी बालकनी में रखे पौधों की देख-संभाल कर रही थी और अशोक वाजपेयी अपने पोते के साथ खेल रहे थे..उन्होंने भी एक्सटेंपोर इंटरव्यू देने की बजाय लिखित प्रश्नावली लेकर रख लिया था और कूरियर से जवाब भेजा था..
शायद यह वाकया अशोक वाजपेयी को भी याद न हो…