ललित पांडेय-
पत्रकारिता जगत के धाकड़ लिखाड़, जिंदादिल इंसान और रोते हुए को हंसाने वाले श्री रत्नाकर दीक्षित जी अंततः जिंदगी की जंग हार गए। कोविड ने ऐसा जकड़ा कि BHU अस्पताल के कोविड वार्ड में उन्होंने तड़पकर जान दे दी। कह सकते है कि लापरवाह चिकित्सकीय सिस्टम के भेंट चढ़ गए।
दोपहर में उनसे बात हुई थी, बोले-ठीक है बेटा, बस सांस फूल रही है। बगल के बेड पर एक बुजुर्ग का शव पड़ा हुआ है, कहने के 5 घंटे बाद भी कर्मचारी हटाने नहीं आए। संक्रमण तो यहां खुद बढ़ रहा है। मजबूत, निडर व साहसी दिल के श्री दीक्षित का भी दिल कोविड वार्ड में हर घंटे दम तोड़ रहे नौजवानों को देख दहल गया। दिन चढ़ने के साथ ही वह हिम्मत छोड़ना शुरू किए और सूर्य अस्त होते-होते अचानक तबीयत इतनी बिगड़ी और छटपटाहट इस कदर थी कि मास्क तक उतार फेंके। शायद उसी क्षण उन्होंने अंतिम सांस ली होगी।
कोविड स्टाफ, चिकित्सक भी परिजनों को झूठा दिलासा देते रहे। अंतिम समय तक कोई सूचना नहीं दिए। यह तो मिलनसार स्वभाव के दीक्षित जहां भी जाते है अपना किसी न किसी को मुरीद बना ही लेते हैं। सामने बेड पर भर्ती एक चचा को अपना फैन बना लिए थे। रात 8 बजे के बाद उन्होंने फोन कर परिजनों को बताया कि दीक्षित जी काफी देर से कोई हरकत नहीं कर रहे हैं। कुछ ठीक नहीं लग रहा है। जल्द आईए, इसके बाद जिसका डर वही हुआ। ऐसे सफर पर गए कि अब वह कभी लौटकर नहीं आएंगे। लंका पर केशव भी उदास है और उदास है उनसे जुड़ा हर वो शख़्स, जिन्हें वो स्नेह, प्रेम रखते थे। हम उनके औऱ वह हमारे बहुत प्रिय थे। एक मई की काली रात अंतिम संस्कार नारायणपुर में हुआ और मुखाग्नि इकलौते पुत्र शाश्वत दीक्षित ने दी।
सादर श्रद्धांजलि। माफ करिएगा हम लोग आपको बचा न सके।
आक़िब अली-
निःशब्द हूँ। हाथ कांप रहे। आंखे नम हैं। जैसे लगता है आंखों की आँसू ही सूख गई हो। आज मेरे आंख से आँसू नही बल्कि ऐसा लग रहा है जैसे मेरे आँसू खुद रो रहे हो। आपका ऐसे जाना, विश्वास करना मुश्किल हो रहा है। कोई आकर यह क्यो नही कह देता कि ये सब झूठ है।
लोगो के लिए आप दैनिक जागरण और पूर्वांचल के लिए बड़े पत्रकार रहे होंगे मेरे लिए तो आप बड़े भाई और मेरे अभिभावक थे जो मेरे मुश्किल में यह कहता था कि बेटा चिंता मत करो अभी तुम्हारा बड़ा भाई रत्नाकर दीक्षित है अब यह भरोसा कौन दिलाएगा।
जिंदगी में आज जो कुछ भी हूँ उसमें सबसे बड़ा हाथ आपका ही है। अब कौन कहेगा कि तुमको कुछ और नहीं बनना, एक बड़ा अधिकारी बनना है। आपने अपनी लेखनी से ना जाने कितने मज़लूमों को इंसाफ दिलाया। अपनी लेखनी से ना जाने पूर्वांचल के कितने नेताओ को विधायक मंत्री बना दिया।लेकिन किसे पता था कि आज आप खुद ही इस भ्रष्ट सिस्टम और कोरोना के हत्थे चढ जाएंगे।
बीएचयू में दो दिन पहले भर्ती होते समय वही जीवंतता- अबे टेंशन मत लो कुछ व्यवस्था करो जल्दी ठीक होकर आऊंगा।अपने भतीजे शाश्वत का ख्याल रखना।
भरोसा था कि आप जरूर आएंगे लेकिन नियति ने तो हमेशा के हम लोगो से दूर कर दिया।
सुबह ही आपका अंतिम व्हाट्सएप मैसेज आया कि बगल में लाश पांच घण्टे से पड़ी है। बोलने के बाद भी कोई नहीं हटा रहा है।
शायद इसी ने आपको अंदर से तोड़ दिया और आपकी तबियत के बारे में लगातार बीएचयू प्रशासन के अधिकारी झूठ बोलते रहे कि आपकी तबियत कंट्रोल में है। यहीं हमलोगों से चूक हो गयी और हमलोग आपको बचा नही पाए। माफ करियेग सर लाख प्रयास के बावजूद आपको हमलोग बचा नहीं पाए।