गाजीपुर पीजी कॉलेज में हिंदी के रीडर रह चुके जाने माने साहित्यकार और कथाकार डाक्टर विवेकी राय वर्तमान में अस्वस्थ हैं। वाराणसी के न्यूरो सर्जन डॉ अनुज पोद्दार के यहाँ इनका इलाज चल रहा है। हम सभी उनके शीघ्र स्वस्थ होने की कामना करते हैं। नयी पीढ़ी के लोगों को डाक्टर विवेकी राय के बारे में ज़रूर जानना चाहिए। पेश है एक संक्षिप्त रिपोर्ट…
गढ़ और मठ की खेमाबन्दी से दूर रहे डॉक्टर विवेकी राय….
साहित्यकार व कथाकार डाक्टर विवेकी राय की वैसे तो करीब 70 से अधिक किताबें हैं पर सोनामाटी, लोकऋण, जुलूस रुका है और समर शेष है ने उन्हें विशेष पहचान दिलाई। डाक्टर विवेकी राय एक साहित्यकार के रूप में जितना बड़ा हैं मनुष्य के रूप में भी उतना ही उंचा। एक साहित्यकार के रूप में निर्विवाद। खेमाबन्दी से सदा दूर रहे। जरूरत पड़ने पर जितना बड़े साहित्यकारों को समय देते थे उतना ही छोटे लेखकों को। जो भी साहित्यकार इनके पास गया उनकी किताबों की इमानदारी से समीक्षा की। इनकी हर किताब में करीब-करीब स्थानीय पात्र ही हैं।
चकबंदी के दौरान भ्रष्टाचार, और प्रधानी चुनाव में धन-बल के प्रयोग को उजागर करती इनकी किताब लोकऋण काफी लोकप्रिय हुई थी। इन्हें साहित्य भूषण पुरस्कार, व शरद जोशी पुरस्कार से नवाजा जा चुका है। इसके अलावा राहुल सांक्रत्यान और यश भारतीय पुरस्कार भी मिल चुका है। इनके दो पुत्रों ज्ञानेश्वर और दिनेश में बड़े पुत्र की पहले ही मौत हो चुकी है। छोटे पुत्र दिनेश राय पैतृक गाँव सोनवासी में ही रहकर खेतीबारी करते हैं। उनकी बड़ी बहु और बनारस सेंट्रल स्कुल में टीचर डाक्टर विनीता राय अस्पतल में भर्ती अपने ससुर की देखभाल कर रहीं हैं।
डाक्टर विवेकी राय कहते हैं आज के साहित्यकार कहानी लिखते हैं, किताब लिखते हैं पर कहानी लिखना और कहानी को लिखना, किताब लिखना और किताब को लिखना दोनों में अंतर है। अब कहानी को लिखने वाले नहीं रहे। उनकी यह चिंता एक साहित्यकार के समाज को चेताने के लिए काफी है।
डाक्टर विवेकी राय के लेखन की आरंभिक यात्रा भी कामोबेश लोककथाओं का संकलन रहा है। मगर वैसे कहा जाता है कि कथाओं का संचार उसके रूप बदलते-बदलते होता है- जैसे बर्फ का टुकडा जितने हाँथ में उतने रूप। डाक्टर विवेकी जितने पुराने होते गये उनके लेखन उनकी कथाएं उतनी ही नई। डाक्टर विवेकी कहते हैं जब वे लिखते तो पाठक का ख्याल कर नहीं लिखते। लिखते समय उन्हें सिर्फ पात्र का ख्याल रहता है। उनके हर उपन्यास में पात्रों के दुःख और ख़ुशी की चरम की प्रस्तुति है। वह कहते कई साहित्यकार 24 कैरेट कम्युनिष्ट या अन्य वाद बनने का प्रयास करते हैं जबकि डाक्टर विवेकी राय को इससे परहेज है।
(सहजानंद पीजी कॉलेज गाजीपुर के पूर्व प्राचार्य डाक्टर मान्धाता राय से बातचीत के आधार पर।)
अजय पाण्डेय
सुहवल, गाजीपुर।