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आज जैसा दिन और हेडलाइन मैनेजमेंट का असर इतना कम !

आम चुनाव के तीसरे चरण के मतदान के दिन आज अखबारों में हेडलाइन मैनेजमेंट नहीं दिख रहा है। आम आदमी पार्टी के मुखिया अरविन्द केजरीवाल के खिलाफ एसआईटी जांच की मंजूरी की खबर को भाजपा के समर्थन में माना जाये तो आज इस खबर को वो प्रमुखता नहीं मिली है जो मिलती रही है। यही नहीं, इसपर आम आदमी पार्टी की प्रतिक्रिया भी छपी है। वैसे भी, भाजपा आम आदमी पार्टी को नुकसान पहुंचाने में लगी है और यह उसी क्रम में है। आम आदमी पार्टी की इस प्रतिक्रिया के साथ इस खबर या कार्रवाई का कितना असर होगा वह अलग मुद्दा है। कुल मिलाकर भाजपा को लाभ पहुंचाने की यह कोशिश कामयाब हुई नहीं लगती है। उल्टे, जो लोग मानते हैं कि भाजपा आम आदमी पार्टी को गलत परेशान कर रही है उनका यकीन मजबूत होगा। हिन्दुस्तान टाइम्स में आज यह खबर सिंगल कॉलम में है। द हिन्दू में यह खबर चार कॉलम में है और द टेलीग्राफ में यह खबर पहले पन्ने पर नहीं है। और जहां है वहां पार्टी के जवाब के साथ है।  

संजय कुमार सिंह  

वैसे, अखबारों में चल रहे हेडलाइन मैनेजमेंट का ही असर होगा कि आज मतदान की खबर इंडियन एक्सप्रेस और हिन्दुस्तान टाइम्स में ही लीड है और अन्य खबरों में प्रधानमंत्री के चुनाव प्रचार और अभी तक चल रहे हेडलाइन मैनेजमेंट का असर नहीं के बराबर लग रहा है। द टेलीग्राफ में पश्चिम बंगाल के राज्यपाल के खिलाफ शिकायत की खबर आज भी लीड है जिसे दूसरे अखबारो ने पहले पन्ने से भुला दिया है। इस हिसाब से कह सकते हैं कि हेडलाइन मैनेजमेंट का असर अभी भाजपा के खिलाफ खबरों में हैं पर भाजपा के पक्ष में कुछ भी तान देना कम लग रहा है। द टेलीग्राफ की आज की लीड का शीर्षक, राज्यपाल पर शिकायतकर्ता का आरोप है, तीनों (राज भवन के नामित कर्मचारी) ने मेरा फोन छीन लिया, राज्यपाल के संतरियों ने मुझे लॉक कर दिया। अखबार के पहले पन्ने पर आज आधा विज्ञापन है। लीड के अलावा दूसरी खबर का शीर्षक है, “जनता भाजपा की गंदी राजनीति से तकलीफ में है : (सुप्रिया) सुले”।

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सुप्रिया सुले शरद पवार की बेटी हैं और इसबार लड़ाई परिवार के लोगों में ही है। द टेलीग्राफ में आज एक और दिलचस्प खबर दी है जो दूसरे अखबारों में पहले पन्ने पर नहीं दिखी। शीर्षक है, पतंजलि का नाभि नाल सरकार नहीं काट सकती। इस खबर के अनुसार आयुष मंत्रालय एक कार्यशाला को प्रायोजित कर रहा है जिसका आयोजन पतंजलि विश्वविद्यालय कर रहा है। द टेलीग्राफ का आज का कोट भी महत्वपूर्ण है। यह आगरा के एक अनाम अधिवक्ता का है। उन्होंने कहा है, “देश और संविधान को बचाने के लिए इस बार हमें बुलडोजर की तरह (एकजुट होकर) वोट देने की जरूरत है”। आज की दूसरी बड़ी खबर झारखंड में 35 करोड़ रुपये नकद बरामद होने की है। आइये इस खबर के शीर्षक देखें। नवोदय टाइम्स में यह खबर लीड है। शीर्षक है, मंत्री के सचिव के नौकर से मिले 35 करोड़ रुपये। 500 रुपए के ज्यादातर नोट, गिनती में लगाई गई आठ मशीनें। इसके साथ छपी एक खबर का शीर्षक है, पूर्व मुख्य अभियंता वीरेन्द्र के खिलाफ मामले से जुड़ी है छापामारी।

हिन्दुस्तान टाइम्स में यह खबर सेकेंड लीड है। शीर्षक हिन्दी में कुछ इस तरह होगा, झारखंड तलाशी में  ईडी ने नकदी का ढेर जब्त किया। इस खबर के साथ छपी नकदी की फोटो का कैप्शन है, झारखंड के मंत्री आलमगीर आलम से जुड़े एक अधिकारी के घर में 35.23 करोड़ रुपए के करीब नकद बरामद हुआ। टाइम्स ऑफ इंडिया में यह खबर दो कॉलम में है। इंडियन एक्सप्रेस में यह तीन कॉलम में है। पर सवाल यह है और यह किसी अखबार में नहीं होता है कि प्रधानमंत्री के दावों और तमाम सख्ती तथा नजर रखने की शंकाओं-सुविधाओं  के बावजूद लोगों के पास इतना नकद इकट्ठा कैसे हो जाता है और एजेंसियों को पता क्यूं नहीं चलता है? आज की एक और खबर सुप्रीम कोर्ट में अरविन्द केजरीवल की जमानत की अपील है। झारखंड के (पूर्व) मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन ने भी सुप्रीम कोर्ट पहुंच गये हैं। झारखंड में 13 मई को मतदान है।

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इंडियन एक्सप्रेस ने केजरीवाल की खबर एनआईए जांच की अनुमति के साथ छापी है जबकि हिन्दुस्तान टाइम्स ने सोरेन की खबर झारखंड में नकद बरामद होने की खबर के साथ छापी है। यह खबर भी भाजपा को फायदा पहुंचाने वाली नहीं लगती है। प्रधानमंत्री के भाषणों और चुनाव प्रचार की खबरों की बात करूं तो हिन्दुस्तान टाइम्स में सिंगल कॉलम की एक खबर का शीर्षक है, “मोदी ने 4 जून को बीजद का एक्सपायरी डेट बताया; पटनायक ने कहा दिन में सपना देख रहे हैं”। टाइम्स ऑफ इंडिया ने प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के मनमाने बयान को किसी जवाब के बिना छापा है। इसके साथ नवीन पटनायक का जवाब है पर आरोप नहीं है। इस खबर के साथ प्रधानमंत्री का एकतरफा कोट भी हाईलाइट किया गया है। इसमें वे मुस्लिम आरक्षण पर अपनी बात कह रहे हैं जो जाहिर तौर पर चुनाव के समय मुसलिम मतदाताओं का तुष्टिकरण है पर यह कहते हुए किया गया है, “… इसका यह मतलब नहीं है कि मुसलमानों को फायदा नहीं मिलेगा। हम इस्लाम या मुसलमानों के खिलाफ नहीं है। मैं धर्म के नाम पर वोट बैंक के खेल के खिलाफ हूं।” कहने की जरूरत नहीं है कि वे यही कर रहे हैं भले अखबारों ने खुलेआम सहयोग नहीं किया है।     

टाइम्स ऑफ इंडिया की इस मुख्य खबर का शीर्षक हिन्दी में कुछ इस तरह होगा, “मोदी ने कहा, विदेशी ताकतें हमारे चुनावों को प्रभावित करने की कोशिश कर रही हैं”। इस खबर से दिलचस्प इसका इंट्रो है। उन्होंने प्रज्वल के वीडियो के टाइमिंग को लेकर सवाल उठाया। यहां दिलचस्प है कि पूरा मामला पहले से सार्वजनिक था। फिर भी प्रज्वल को टिकट दिया गया, प्रधानमंत्री ने जानते हुए (नहीं जानते थे तो अलग महानता है) समर्थन किया और उसके पक्ष में वोट मांगे। अब वीडियो लीक होने के समय पर सवाल उठा रहे हैं। खबर यह है कि वीडियो लीक होने से उसमें दिखने वाली महिलाओं और उनके परिवार का समाज में रहना मुश्किल हो गया है। आपसी संबंध खराब हो रहे हैं आदि आदि। अगर प्रधानमंत्री ने समर्थन की जगह पहले ही कार्रवाई की होती तो शायद वीडियो लीक नहीं होता और सैकड़ों महिलाएं इस परेशानी से बच जातीं। कल इसपर मैंने यहां लिखा भी था।

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इसके बावजूद प्रधानमंत्री को जो ठीक लग रहा है बोल रहे हैं। अखबार उसे संपादित-सेंसर कर सकते थे पर उन्हें इसकी जरूरत नहीं लग रही है और अमर उजाला ने पांच कॉलम से ज्यादा में शीर्षक लगाया है, प्रज्वल जैसे अत्याचारियों को कठोर सजा मिलनी चाहिये : मोदी”। यही नहीं, प्रधानमंत्री ने यह आरोप भी लगाया है कि कर्नाटक की कांग्रेस सरकार ने जानबूझकर उसे विदेश भगाया। सच्चाई मैं नहीं जानता पर अखबारों की खबरों से पता चलता है कि कर्नाटक सरकार (पुलिस) ने उसके पिता को गिरफ्तार कर लिया है और प्रधानमंत्री से अपील की गई है कि उसका डिप्लोमैटिक पासपोर्ट रद्द कर दिया जाए ताकि उसकी वापसी आसान हो सके। केंद्र सरकार ने इस मामले में क्या किया उसकी खबर नहीं है। जहां तक कठोर सजा की बात है बृजभूषण सिंह का टिकट ही कटा है। आप कह सकते हैं कि दोनों का अपराध भी अलग है।   

नवोदय टाइम्स ने प्रधानमंत्री की इस खबर के साथ राहुल गांधी की खबर छापी है । इसका शीर्षक है, “मोदी ने संविधान को बदलने और खत्म करने का बनाया मन : राहुल”। नवोदय टाइम्स ने सिंगल कॉलम की एक खबर छापी है, अमेठी में कांग्रेस कार्यालय के बाहर खड़ी गड़ियों में तोड़फोड़। यह खबर अमेठी की होने के कारण इन दिनों खास महत्व की है। इसलिए भी कि इसका आरोप भाजपा पर है लेकिन यह खबर आज दूसरे अखबारों में नहीं दिखी जो भी हो यह घटना और इसका छपना भाजपा के हेडलाइन मैनेजमेंट नहीं हो सकता है। अमर उजाला ने प्रधानमंत्री की प्रज्वल वाली खबर के साथ एक और शीर्षक लगाया है, मुसमान सोचें …. कांग्रेस राज में क्यों हुई दुर्दशा। मुझे लगता है कि इसमें जो कहा गया है वह आदर्श आचार संहिता का खुला उल्लंघन है और प्रधानमंत्री को चुनाव के समय ऐसी बातें नहीं कहनी चाहिये। उन्होंने कहा है तो यह हेडलाइन मैनेजमेंट का भाग है और चूंकि दूसरे अखबारों में यह सब प्रमुखता से नहीं छपा है इसीलिए मैंने शीर्षक लगाया है, आज भाजपा के हेडलाइन मैनेजमेंट का असर कम दिख रहा है। लेकिन अपवाद तो होते ही हैं।

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यहां चुनाव आयोग की याद आती है तो आपको बताऊं कि आज इंडियन एक्सप्रेस की एक खबर के अनुसार कांग्रेस ने चुनाव आयोग के 25 अप्रैल के नोटिस का जवाब दे दिया है। आप जानते हैं कि प्रधानमंत्री पर आचार संहिता के उल्लंघन का आरोप लगा तो चुनाव आयोग ने उन्हें नोटिस न देकर पार्टी अध्यक्ष को दिया और ऐसा ही राहुल गांधी के खिलाफ शिकायत के मामले में किया था। चुनाव के समय आपत्तिजनक भाषणों पर रोक का मकसद उससे पार्टी को हो सकने वाले लाभ तथा देश-समाज को हो सकने वाले नुकसान को रोकना है। लेकिन ऐसा कुछ होता नहीं दिखता है। खबर के अनुसार, भाजपा ने प्रधानमंत्री के मामले में जवाब तो नहीं ही दिया दूसरी बार समय बढ़ाने की मांग की है। खबर यह होती तो चुनाव आयोग पर कार्रवाई के लिए दबाव पड़ता लेकिन वो छप रही है जो प्रधानमंत्री चाहते हैं – भले ऐसा करने वाले अखबार कम हो रहे हैं।        

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