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सुख-दुख

देश में एक तरह से आर्थिक आपातकाल लागू हो गया है…

Hareprakash Upadhyay : ”देश में एक तरह से आर्थिक आपातकाल लागू हो गया है। ट्रेन में हूँ, पाँच सौ का नोट है पर्स में पर पीने को पानी नहीं मिल रहा है। ट्रेन से जब उतरूँगा, तो घर कैसे जाऊँगा? दो दिन बैंक व एटीएम भी बंद है। घर में भी अगर सौ-पचास का नोट नहीं होगा तो राशन कैसे आएगा? जो रे मोदिया… बड़े अच्छे दिन लाये बेटा… लोग कह रहे हैं कि कल पेट्रोल पंप वाले बदल देंगे, तो क्या कल पेट्रोल पंपों पर सौ-पचास रुपये का छापाखाना खुलने वाला है? कल पेट्रोल पंपों पर भारी भीड़ उमड़ेगी तो खुदरा मिलना तो छोड़िये पेट्रोल मिलना मुश्किल हो जाएगा।”

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Hareprakash Upadhyay : ”देश में एक तरह से आर्थिक आपातकाल लागू हो गया है। ट्रेन में हूँ, पाँच सौ का नोट है पर्स में पर पीने को पानी नहीं मिल रहा है। ट्रेन से जब उतरूँगा, तो घर कैसे जाऊँगा? दो दिन बैंक व एटीएम भी बंद है। घर में भी अगर सौ-पचास का नोट नहीं होगा तो राशन कैसे आएगा? जो रे मोदिया… बड़े अच्छे दिन लाये बेटा… लोग कह रहे हैं कि कल पेट्रोल पंप वाले बदल देंगे, तो क्या कल पेट्रोल पंपों पर सौ-पचास रुपये का छापाखाना खुलने वाला है? कल पेट्रोल पंपों पर भारी भीड़ उमड़ेगी तो खुदरा मिलना तो छोड़िये पेट्रोल मिलना मुश्किल हो जाएगा।”

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मेरे साथ यात्रा कर रहे एक बुजुर्ग ने यह टिप्पणी की और इसे फेसबुक पर डाल देने का अनुरोध किया। मैंने पानी का अपना बोटल उन्हें दे दिया है। पर मेरे साथ भी लगभग वही समस्या है।

बाजार में पाँच सौ और हजार के नोट ही अधिक प्रचलन में थे। उनका कुछ नहीं होगा जिनके पास काला धन होता है, उनके खाते में भी बेशुमार धन पड़ा है। पर जिसकी अंटी में पाँच सौ या हजार के एक या दो नोट ही कुल जमा पूँजी हों, उनका क्या होगा? बैंक और डाकघर इसे बदलने जाइयेगा तो तब पता चलेगा कितनी भीड़ है। लोग अभी से सड़कों पर आ गये हैं।

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विजय सिंह ठकुराय : मेरे पास जेब में लगभग 27 हजार रूपए है। मजे की बात है कि एक भी 100 का नोट नही है। कल परसो एटीएम भी बन्द हैं। मुझे पूरी उम्मीद है कि सरकार के फैसले से मेरी तरह कई मित्रो को असुविधा होने वाली है। काले धन पर इस कदम से कितनी रोक लगेगी… ये तो समय के गर्भ में हैं… लेकिन…फिर भी देख के ख़ुशी हुई कि… असुविधा होने के बावजूद मुझे अभी तक एक भी बन्दा ऐसा नही दिखा जो स्वयं की असुविधा के लिए सरकार की आलोचना कर रहा हो। काले धन पे अंकुश लगाने के लिए उठाये गए इस सख्त कदम पर एक आम से आम आदमी सरकार के साथ खड़ा दिख रहा है।

मुझे राजनीति की समझ थोड़ी कम ही है लेकिन माननीय प्रधानमन्त्री नरेंद्र मोदी को एक बात का श्रेय मैं अवश्य देता हूँ कि मोदिकाल में भारत देश का एक आम नागरिक अपने देश के हितो के प्रति जागरूक और राजनीतिक रूप से परिपक्व अवश्य हो गया है। एक सेनानायक के सामर्थ्य की वास्तविक पहचान उसके स्वयं के बाहुबल से नही… बल्कि उसकी सेना के पैदल सिपाहियो के मनोबल और निष्ठा से होती है। देश का आम नागरिक आज जागरूक है… देश के हित में खुद की सुविधा से ऊपर उठ कर सोचता है। यही तो है अच्छे दिन !!! 🙂

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Amit Chaturvedi : अच्छा सुनो, एक सीरियस बात, समझना पहले फिर रियेक्ट करना.. मोदी जी ने अपने इस ब्रेव मूव के पीछे जो सबसे बडे कारण बताये वो ये कि बहुत सारी नकली करेंसी सर्कुलेशन में है और वो भ्रष्टाचार पर पाबन्दी लगाना चाहते हैं। अब थोड़ी देर के लिए अपने राष्ट्रवादी अफीम के नशे से बाहर आइये और एक बात समझिये कि क्या ये सरकार की असफलता नहीं है जो वो नकली करेंसी को पकड़ नहीं पा रही है, उसने अपने इस काम में असफल हो जाने पर इस देश के करोड़ों ऐसे लोगों को मुश्किल में नहीं डाल दिया जो भ्रष्ट नहीं हैं लेकिन लापरवाही वश unaccountable money hold करते हैं?

हम और आप एक आम आदमी के बावजूद जानते हैं कि हमारे आसपास कौन लोग हैं जो करप्ट हैं और करोड़ों अरबों की ब्लैक मनी रखते हैं लेकिन सरकार के पास ढेरों एजेंसियां होती हैं, जो सबूत के साथ ये establish कर सकती हैं कि कौन आदमी चोर है। लेकिन सरकार ने एक ऐसा रास्ता चुना जो उन्हें नहीं, आपको मुश्किल में डालने वाला है। क्योंकि जो बड़ा करप्ट होता है वो सिस्टेमेटिक होता है, उसे कानून के वो लूप होल्स पता होते हैं, जहाँ से वो अपना काला धन सफ़ेद बना सकता है।

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दूसरी बात, उस देश में करप्शन का सबसे बड़ा कारण है, इस देश की चुनाव व्यवस्था, एक पार्षद और विधायक के चुनाव में करोडो खर्च होते हैं, और वो पैसा ही करप्शन की सबसे बड़ी जड़ है, क्योंकि कोई भी नेता अपने पास से पैसा खर्च नहीं कार्य, ये पैसा करप्ट अधिकारियों और उद्योगपतियों की जेब से ही आता है, जिसे वो जीतने वाले प्रत्याशी से वसूल करते हैं। अगर मोदी जी वास्तव में भ्रष्टाचार खत्म करना चाहते हैं तो उन्हें अपनी जांच एजेंसियों के मार्फ़त ऐसे लोगों पर लगाम लगानी चाहिये थी और चुनावों को सरकारी खर्च पर कराने का नियम बनाना था, ये जो हो रहा है, वो सिर्फ एक लोक लुभावन तरीका है और जनता को ही परेशानी में डालेगा।

संपादक हरे प्रकाश उपाध्याय, विज्ञान लेखक विजय सिंह ठकुराय और चर्चित सोशल मीडिया राइटर अमित चतुर्वेदी की एफबी वॉल से.

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