Abhishek Upadhyay : अदभुत हैं मायावती। बिजली की तेज़ी से फैसले लेती हैं। जिससे दुश्मनी ली। उसे खुद ही ठीक कर दिया। क्या स्वामी प्रसाद मौर्या। कौन बाबू सिंह कुशवाहा। कोई आहरी-बाहरी मदद नही। कोई ईआर/पीआर फर्म नही। कोई कॉर्पोरेट लॉबिस्ट साथ नही। किसी ईके/पीके (प्रशांत किशोर) की भी ज़रूरत नही। राजनीति रिश्ते बनाने का खेल है। मैंने मायावती के तौर पर पहला ऐसा राजनीतिज्ञ देखा है जो बिगड़े रिश्तों का मुंह हमेशा उल्टा ही रखता है। कभी कोई समझौता नही। मुलायम से दुश्मनी है तो खुलकर है। क्या मजाल कि नेता जी संसद में बहन जी से आँख भी मिला लें।
राजा भैया को ठोंका तो ऐसा ठोंका कि ज़ख्म आज भी बिलबिलाते हैं। मायावती का राज आते ही राजा भैया जाने किस अज्ञात गुफ़ा में गुम हो जाते हैं। चूं तक नही निकलती मुँह से। उमाकान्त यादव, रमाकांत यादव, धनञ्जय सिंह, उख्तार-मुख्तार, डीपी/अतीक़ सब के सब। या तो घुटने टेक शरणागत हो जाते हैं। या फिर इनके घुटनो पर लकड़ी की इतनी खपच्चियां बाँध दी जाती हैं। कि चलने से पहले कम से कम दो बार अपना घुटना ज़रूर मॉनिटर करते हैं। ददुआ और ठोकिया जिस दिन से मायावती की आँख में चुभना शुरू हुए। उनकी डकैतगिरी के टायर में पूरे 36 इंच का कीला भोंक दिया गया। सारी हवा निकाल दी गई। मायावती की सरकार आते ही दोनो को “परमानेंटली” ठोंक दिया गया। उसी यूपी पुलिस ने ठोंका जो कल तक उनके आगे अनऑफिसियल सलाम ठोंकती थी।
कोई इनेमा/सिनेमा का चेहरा नही चाहिए मायावती को। अपने घर बैठें अमिताभ बच्चन। यहां तो बस एक ही सुपरस्टार है। मायावती खुद। उनके डंडे का खौफ कानून-व्यवस्था की पीठ पर गज़ब के सीमेंट की चिनाई करता है। ये पीठ अक्सर सीधी ही मिलती है। इसमें दो राय नही कि मायावती पर करप्शन के बेहद संगीन इलज़ाम हैं। कोई अँधा ही होगा जो इस फ्रंट पर उन्हें डिफेंड करे। मैं तो सिर्फ मायावती की फैसले लेने की ताक़त और उनके ‘पर्सनालिटी कल्ट’ का ज़िक्र कर रहा हूँ। मेरी नज़र में इसका कोई तोड़ नही है। कोई मुक़ाबला ही नहीं।
इंडिया टीवी में कार्यरत तेजतर्रार पत्रकार अभिषेक उपाध्याय की एफबी वॉल से.