आनंद कुमार-
मैंने “द रांची प्रेस क्लब” की सदस्यता से इस्तीफा दे दिया है. हालांकि इसके पहले ही क्लब की मेंबरशिप रिव्यू कमेटी और मैनेजिंग कमेटी ने मेरी सदस्यता को वोटिंग से नॉन वोटिंग कैटेगरी में डाल दिया था. हालांकि अज्ञात कारणों से इसे सार्वजनिक नहीं किया गया है. इसकी पुष्टि होने के बाद मैंने सदस्यता त्यागने का फैसला किया. लेकिन मेरे मन में कुछ सवाल हैं, जिन्हें उठाना मुझे उचित लगा.
मुझे बताया गया कि आप जमशेदपुर में रहते हैं. इसलिए आपको नॉन वोटिंग कैटेगरी में डाला गया है. ठीक है, मैं ज्यादातर समय जमशेदपुर में रहता हूं, क्योंकि मेरे बच्चे वहां पढ़ते हैं. लेकिन मैं रांची में नहीं रहता, यह किसने, कैसे, कब और किस आधार पर तय कर लिया. बहुत से पत्रकार रांची में नौकरी करते हैं, परिवार दूसरे शहर में रहता है. क्या वे उनसे मिलने नहीं जाते. बहुत से सीनियर सेवानिवृत्त हो चुके हैं, कइयों का ज्यादातर समय गांव में या बाहर के शहरों में नौकरी कर रहे बच्चों के पास गुजरता है, तो क्या अब वे बाहरी हो गये? जैसा कि मुझे मान लिया गया. और रांची की बाध्यता किनके लिए है?
मेरी जो बॉयलॉज की समझ है, उसके अनुसार जो पत्रकार किसी मीडिया संस्थान में हैं और उनका रांची से बाहर स्थानांतरण हो गया है अथवा जो बाहर के शहर में नौकरी कर रहे हैं, जो स्थायी रूप से बाहर ही बस गये हैं और रांची से कोई नाता नहीं है अथवा जिन्होंने पूरी तरह पत्रकारिता को छोड़ कर कोई इतर पेशा अपना लिया है, उन्हें वोटिंग के अधिकार से वंचित करने का प्रावधान है.
बेरोजगार, स्वतंत्र और सेवानिवृत्त पत्रकारों पर यह नियम लागू होता है या नहीं, यह मुझे ज्ञात नहीं है. इनमें कितने लोग रांची में रहते हैं या बाहर, इसका पता लगाने का कौन सा मैकेनिज्म क्लब के वर्तमान कर्ताधर्ता लोगों के पास है, यह भी मेरी जानकारी में नहीं है. मैं अपनी बात करूं तो मैं रांची और जमशेदपुर के बीच झूलता रहता हूं. मैं फिलहाल बेरोजगार हूं. न किसी मीडिया संस्थान में हूं और न ही किसी अन्य स्थान पर नौकरी करता हूं. न ही मेरा कोई व्यापार है.
मेरा घर रांची में है, मेरा आधार का पता, पैन जारी होने की जगह, ड्राइविंग लाइसेंस जारी करने की अथॉरिटी और आईपीआरडी का प्रेस एक्रीडिटेशन, रांची से जारी है, फिर क्लब की किसी कमेटी ने किस आधार पर मेरा रेजिडेंशियल सर्टिफेकिट बना लिया? ऐसे तो फिर तो कल ये लोग मेरे पत्रकार होने पर भी सवाल उठा देंगे. मैं 1996 में पत्रकारिता में आया. 2006 में आया कोई व्यक्ति कह देगा कि मैंने इन्हें नहीं देखा, इन्हें नहीं जानता, ये पत्रकार नहीं हैं… कभी ऐसी नौबत न आये, इसलिए इस्तीफा दे रहा हूं.
दूसरी बात कि अगर कहीं नौकरी नहीं करने पर, कोई अन्य व्यवसाय नहीं करने पर और यूट्यूब के माध्यम से पत्रकारिता में सक्रिय रहने पर अगर प्रेस क्लब मेरी साधारण सदस्यता छीन सकता है, तो कल मेरी किसी मुसीबत में और जरूरत में यह क्लब और इसकी कमेटी मेरे साथ कैसे खड़ी होगी, इसलिए भी यहां रहने का कोई औचित्य नहीं है.
तीसरी बात कि मुझे जिस तरह नॉन वोटिंग कैटेगरी में डाला गया, वैसे कल तो कोई भी रिव्यू कमेटी किसी भी बेरोजगार, स्वतंत्र और सेवानिवृत्त पत्रकार की सदस्यता छीन लेगी, क्योंकि उनके पास यह बताने को नहीं रहेगा कि वे कहां रहते हैं. फिर उन्हें रोज प्रेस क्लब आकर हाजिरी देनी होगी, जैसा अपराधियों को थाना में हाजिरी लगाने को कहा जाता है. कोई छह महीने के लिए गांव जायेगा, कोई साल भर के लिए बच्चों के पास रहने जायेगा, तो उसकी सदस्यता यह कहकर छीन ली जायेगी कि आप यहां नहीं रहते.
आखिर जिनके पास नौकरी नहीं है, वे कैसे साबित करेंगे कि वे रांची में कितने दिन रहते हैं और कितने दिन बाहर.
मैं अगर किसी मीडिया में होता.. किसी अन्य पेशे में रहता, तो मुझे क्लब की इस कार्यवाही पर कोई आपत्ति नहीं होती, मैं स्वागत करता, लेकिन अभी जबकि मैं पूरी तरह स्वतंत्र पत्रकारिता में संलग्न हूं, किसी रोजगार में नहीं हूं.. तो ऐसी स्थिति में क्लब मेरा वोटिंग राइट इस मनगढ़ंत आधार पर छीन ले कि मैं बाहर रहता हूं, तो पीठ में खंजर घोपनेवाले ऐसे क्लब और ऐसी कमेटियों से क्या आशा की जा सकती है. इसलिए भी इस्तीफा है.
और अंत में…. जो स्थान और जो लोग आपको खुशी, सहयोग, संबल और आशा के बदले तनाव और कड़वाहट दें..
उन्हें त्याग देना ही भला..
सो विदा…