आगरा। दुष्कर्म मामले में जेल में बंद आसाराम के बेटे नारायण साईं के करीब दो दर्जन समर्थकों ने मंगलवार शाम अमर उजाला कार्यालय पर हमला किया। तोड़फोड़ और मारपीट कर रहे इन लोगों के खिलाफ जब कर्मचारी एकजुट हुए तो अन्य भाग निकले लेकिन दो पकड़े गए। इन्हें सिकंदरा थाने की पुलिस ने हिरासत में ले लिया है। नारायण साईं समर्थक अमर उजाला में गत 20 सितंबर को छपी खबर पर प्रतिक्रिया जताने आए थे। बड़ी संख्या में लोगों को देख जब गार्ड ने रोका तो उनसे हाथापाई करते हुए सभी स्वागत कक्ष तक आ गए। मुख्य उप संपादक चंद्र मोहन शर्मा ने फिर भी पूरे संयम से उनकी बात सुनी।
जब उन्होंने समझाने की कोशिश की कि इस खबर में आपत्तिजनक कोई तथ्य नहीं है। यह नारायण साईं के खिलाफ उनकी पत्नी जानकी हरपलानी द्वारा इंदौर के खजराना थाने में दी गई शिकायत पर आधारित है। इसमें वही लिखा गया गया है जो जानकी ने पुलिस से कहा। इतना सुनते ही उन्होंने गाली-गलौज करते हुए उनकेसाथ हाथापाई शुरू कर दी। ये हमारे बापू के खिलाफ बहुत लिखते हैं आज इन्हें सबक सिखा देना है, कहते हुए कई ने छुपाकर लाए लाठी-डंडे निकाल लिए। उन्हें घिरा देख टेलीफोन आपरेटर राजेंद्र बीचबचाव को पहुंचे। बीचबचाव को आए पत्रकारों आशीष शर्मा, धर्मेंद्र यादव और राजीव शर्मा को भी हमले में चोटें आईं। इसी बीच एक समर्थक ने चंद्रमोहन शर्मा का गला दबाने की कोशिश की। शोर सुनकर अन्य कर्मचारियों को आता देख हमलावर धमकियां देते हुए भाग निकले पर दो पकड़ लिए गए। हमले की सूचना पाकर सिकंदरा थाने के इंस्पेक्टर हरीमोहन सिंह फोर्स के साथ आए। पकड़े गए युवकों डिफेंस स्टेट, सदर निवासी देवेश पुत्र विशंभरदयाल और नेहरू एन्क्लेव सदर निवासी हरिओम पुत्र कुंवरसेन को उन्होंने हिरासत में ले लिया और थाने ले गए। एडमिन हेड हिमांशु बघेल ने थाना पुलिस को हमलावरों के खिलाफ बलवा, तोड़फोड़, मारपीट, जानलेवा हमले की तहरीर दी है।
Comments on “अमर उजाला के आगरा आफिस पर नारायण साईं समर्थकों का हमला, पत्रकार का गला दबाया”
आसाराम और नारायण सार्इं के समर्थकों ने देशभर मे युवाओं की टोलियां बनार्इं हैं। इन्हें यह ट्रेनिंग दी गई है कि वे आसाराम और नारायण के खिलाफ प्रकाशित-प्रसारित खबरों पर हिंसक विरोध करें। ऐसा केवल अमर उजाला में ही नहीं हुआ। ऐसा कई जगह पर हो चुका है। यह फोन पर गंदी-गंदी गालियां बकते हैं। किसी भी संस्थान के प्रमुख लोगों को टारगेट करते हैं। इनका मकसद मीडिया में खौफ पैदा कराना है। इलाज एक ही है-यह जब दफ्तर आए तो एकजुट होकर बिना किसी झिझक के इनके साथ व्यवहार करें जिससे इनमें खौफ पैदा हो। बाद में कानूनी तौर पर इन्हें तोड़ने की जरूरत है।
आज के कारपोरेट दौर में जब हर कहीं मैनेज किए जाने का खेल चल रहा है और मीडिया में बड़ी पूंजी ने असली खबरों को बाहर आने से रोक रखा है
भड़ास के एडिटर यशवंत सिंह