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‘गुस्ताखी माफ हरियाणा’: एक माफ करने लायक गुस्ताखी

पवन कुमार बंसल जीवट पत्रकार रहे हैं। बिना किसी लाग-लपेट के बात को कहना उनका शगल है। संस्थागत पत्रकारिता की पारी पूरी करने के बाद वे स्वतंत्र लेखन और पुस्तक सृजन में रमे रहे। इससे पहले उनकी दो पुस्तकों हरियाणा के लालों के सबरंगे किस्से तथा खोजी पत्रकारिता क्यों और कैसे प्रकाशित हो चुकी हैं। मूर्धन्य पत्रकार प्रभाष जोशी से वे खासे प्रभावित रहे हैं और पहली दो पुस्तकों का विमोचन उन्होंने ही किया था। जोशी जी के  हमारे बीच न रहने के बावजूद लेखक ने उनका भावपूर्ण स्मरण पहले दो पृष्ठों में किया है।

गुस्ताखी माफ हरियाणा में पवन कुमार बंसल ने चुटीली शैली में राजनीतिक गलियारों के ऐसे रोचक किस्से बयां किये हैं जिनके बारे में आम आदमी नहीं जानता। बिना शीर्षक सूची के सैकड़ों छोटे-छोटे लेख पुस्तक में संकलित किये गए हैं। लेख छोटे होने के वजह से पाठक बोझिल नहीं होते। लेख नाविक के तीर सरीखे हैं, देखन में छोटे लगे घाव करें गंभीर। एक बात तो माननी पड़ेगी कि लेखक के पास खूब सूचनाएं हैं। एक अच्छे पत्रकार के नाते उनके संपर्क सूत्र बेहतर है और  सभी राजनीतिक दलों में उनकी भीतरी पकड़ है।

<p>पवन कुमार बंसल जीवट पत्रकार रहे हैं। बिना किसी लाग-लपेट के बात को कहना उनका शगल है। संस्थागत पत्रकारिता की पारी पूरी करने के बाद वे स्वतंत्र लेखन और पुस्तक सृजन में रमे रहे। इससे पहले उनकी दो पुस्तकों हरियाणा के लालों के सबरंगे किस्से तथा खोजी पत्रकारिता क्यों और कैसे प्रकाशित हो चुकी हैं। मूर्धन्य पत्रकार प्रभाष जोशी से वे खासे प्रभावित रहे हैं और पहली दो पुस्तकों का विमोचन उन्होंने ही किया था। जोशी जी के  हमारे बीच न रहने के बावजूद लेखक ने उनका भावपूर्ण स्मरण पहले दो पृष्ठों में किया है।<br /><br />गुस्ताखी माफ हरियाणा में पवन कुमार बंसल ने चुटीली शैली में राजनीतिक गलियारों के ऐसे रोचक किस्से बयां किये हैं जिनके बारे में आम आदमी नहीं जानता। बिना शीर्षक सूची के सैकड़ों छोटे-छोटे लेख पुस्तक में संकलित किये गए हैं। लेख छोटे होने के वजह से पाठक बोझिल नहीं होते। लेख नाविक के तीर सरीखे हैं, देखन में छोटे लगे घाव करें गंभीर। एक बात तो माननी पड़ेगी कि लेखक के पास खूब सूचनाएं हैं। एक अच्छे पत्रकार के नाते उनके संपर्क सूत्र बेहतर है और  सभी राजनीतिक दलों में उनकी भीतरी पकड़ है।</p>

पवन कुमार बंसल जीवट पत्रकार रहे हैं। बिना किसी लाग-लपेट के बात को कहना उनका शगल है। संस्थागत पत्रकारिता की पारी पूरी करने के बाद वे स्वतंत्र लेखन और पुस्तक सृजन में रमे रहे। इससे पहले उनकी दो पुस्तकों हरियाणा के लालों के सबरंगे किस्से तथा खोजी पत्रकारिता क्यों और कैसे प्रकाशित हो चुकी हैं। मूर्धन्य पत्रकार प्रभाष जोशी से वे खासे प्रभावित रहे हैं और पहली दो पुस्तकों का विमोचन उन्होंने ही किया था। जोशी जी के  हमारे बीच न रहने के बावजूद लेखक ने उनका भावपूर्ण स्मरण पहले दो पृष्ठों में किया है।

गुस्ताखी माफ हरियाणा में पवन कुमार बंसल ने चुटीली शैली में राजनीतिक गलियारों के ऐसे रोचक किस्से बयां किये हैं जिनके बारे में आम आदमी नहीं जानता। बिना शीर्षक सूची के सैकड़ों छोटे-छोटे लेख पुस्तक में संकलित किये गए हैं। लेख छोटे होने के वजह से पाठक बोझिल नहीं होते। लेख नाविक के तीर सरीखे हैं, देखन में छोटे लगे घाव करें गंभीर। एक बात तो माननी पड़ेगी कि लेखक के पास खूब सूचनाएं हैं। एक अच्छे पत्रकार के नाते उनके संपर्क सूत्र बेहतर है और  सभी राजनीतिक दलों में उनकी भीतरी पकड़ है।

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लेखक की हरियाणा की राजनीति, समाज और प्रशासन की नब्ज़ पर पकड़ गहरी है। यह उनकी रचनाओं को पढ़ते हुए शिद्दत के साथ महसूस किया जा सकता है। लेखक बिना किसी लाग-लपेट के ठेठ हरियाणवी अंदाज में अपनी बात रखते हैं। शब्दों का आडंबर उनके लेखन में नजर नहीं आता।  इससे पाठक को उनका मंतव्य समझना कठिन नहीं होता। यही वजह है कि उनकी रचनाएं पठनीय होती हैं।

रचनाकार ने हरियाणा की राजनीति को करीब से देखा है और आयाराम गयाराम की राजनीति के वे साक्षी रहे हैं। अत: उन्होंने राज्य की राजनीति पर तीखे कटाक्ष किये हैं। एक निर्भीख लेखक में जो दमखम नजर आना चाहिए, वह उनके लेखन में नजर आता है। उन्होंने किसी नेता की कारगुजरियों को सार्वजनिक करने में परहेज नहीं किया है। अंदर की बात को  बाहर की बात बनाने में भी परहेज नहीं  किया है। हरियाणा की राजनीति और समाज में रुचि रखने वाले लोगों को उनकी पुस्तक जरूर पढ़नी चाहिए।

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जैसा कि पुस्तक का शीर्षक है— गुस्ताखी माफ हरियाणा तो उनकी गुस्ताखी माफ करने लायक हैं। उन्होंने तमाम ऐसे किस्से पाठकों के सामने रखे हैं, जो किसी को अखर सकते हैं। इस लिहाज से लेखक पुस्तक के प्रकाशन के मकसद में कामयाब होते नजर आते हैं।

पुस्तक: गुस्ताखी माफ हरियाणा। लेखक: पवन कुमार बंसल, प्रकाशक: जाह्नवी प्रकाशन, नरवाना। पृष्ठ संख्या: 220, मूल्य: रुपये 400.

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अरुण नैथानी

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(रविवार 21 सितंबर 2014 को चंडीगढ़ से प्रकाशित समाचार पत्र दैनिक ट्रिब्यून के संपादकीय पृष्ठ पर पवन बंसल द्वारा लिखित पुस्तक गुस्ताखी माफ हरियाणा की समीक्षा। हाल ही में इस पुस्तक का विमोचन दिल्ली में वरिष्ठ पत्रकार ओम थानवी व केंद्रीय रक्षा मंत्री राव इन्द्रजीत सिंह द्वारा किया गया था।)

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