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भांति-भांति की खबरों के बीच डीप फेक पर प्रधानमंत्री की चिन्ता सबसे बड़ी खबर

सबका साथ, सबका विकास जैसे हो रहा है वह अखबारों की खबरों में भी दिख रहा है

संजय कुमार सिंह

निर्माणाधीन टनल धंसने से फंसे 40 मजदूरों को निकालने के लिए दिल्ली से ले जाई गई मशीन के भी क्षतिग्रस्त हो जाने की खबरों के साथ राहत और बचाव कार्य रुक गया है। आज यह खबर अंग्रेजी के मेरे पांच में से चार अखबारों में पहले पन्ने पर है। सिर्फ इंडियन एक्सप्रेस में यह खबर पहले पन्ने पर नहीं है। हालांकि, इंडियन एक्सप्रेस में कई ऐसी खबरें हैं जो दूसरे अखबारों में पहले पन्ने पर नहीं है। इनमें महत्वपूर्ण है, आजम खान ट्रस्ट की जमीन जब्त कर लिये जाने से उत्तर प्रदेश के स्कूल की छह सौ लड़कियां परेशानी में। खबर के अनुसार, अभिभावकों को 28 स्कूल विकल्प के रूप में दिये गये हैं पर उनका सवाल है कि सत्र के बीच में सील किये जाने का क्या मतलब है।

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नवोदय टाइम्स में खबर है, यूपी के पूर्व विधायक व परिवार की 72 करोड़ की संपत्ति जब्त। आज के समय में ऐसे शीर्षक के बाद मैं ढूंढ़ता हूं कि नेता जी की पार्टी कौन सी है। भाजपा की हो तो लगे कि डबल इंजन की सरकार में सब ठीक चल रहा है लेकिन ऐसा होता नहीं है। पूर्व विधायक के बारे में अखबार ने लिखा है, “गोरखपुर के बाहुबलि हरिशंकर तिवारी के बेटे विनय तिवारी ने बसपा की टिकट पर यूपी की चिल्लूपार सीट से विधायक बने थे। बाद में वह सपा में शामिल हो गये।“ अब आप ईडी की कार्रवाई का कारण समझ सकते हैं। उत्तर प्रदेश की ये दोनों खबरें अमर उजाला में पहले पन्ने पर नहीं हैं।

यहां और नवोदय टाइम्स में भी डीप फेक पर प्रधानमंत्री की चिन्ता सबसे बड़ी खबर यानी लीड है। इस तथ्य के बावजूद कि दिल्ली आठ दिन से प्रदूषित हवा में सांस ले रही है। हर साल इस समय यह हालत हो जाती है और कई साल से है। एनजीटी ने दिल्ली समेत 10 राज्यों से पूछा है कि क्या कदम उठाये? उपशीर्षक है, सांसों पर संकट दिल्ली एनसीआर की हवा फिर गंभीर श्रेणी में पहुंची। राजधानी में एक्यूआई 405। अमर उजाला ने इस खबर को चार कॉलम में तान दिया है। कायदे से एनजीटी से पहले जनता की ओर से अखबार को यह सवाल पूछकर जनता को बताना चाहिये था या जनता की ओर से दबाव बनाना चाहिये था। मुझे लगता है कि डीप फेक पर प्रधानमंत्री का चिन्ता जताना इतना बड़ा मामला नहीं है।

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सोशल मीडिया पर लोग व्यंग कर रहे हैं हालांकि उनके समर्थक और फैक्ट चेक करने वाले यह भी बता रहे हैं कि, मोदी जी का जो वीडियो डांडिया करते हुए सर्कुलेट हुआ था, वह फर्जी है। पर मेरी चिन्ता यह है कि प्रधानमंत्री का फर्जी वीडियो सर्कुलेट हो और वे डीप फेक पर चिन्ता करें तो कार्रवाई कौन करेगा और कब करेगा। एक तरफ, 2019 के चुनाव प्रचार के दौरान घुस कर मारने का दावा था और दूसरी तरफ डबल इंजन वाले टनल में फंसे लोगों को निकालने के प्लान फेल पर फेल होते जा रहे हैं, राजधानी की प्रदूषित हवा ठीक नहीं हो पा रही है और करोड़ों के काले धन के वीडियो तथा अन्य सूचनाओं के बावजूद ईडी सक्रिय नहीं हो रहा है और विपक्षी नेताओं की संपत्ति जब्त की जा रही है। कहने की जरूरत नहीं है कि ऐसे में खबरों की प्राथमिकताएं भी गड़बड़ा ही जायेंगी। 

1. हिन्दुस्तान टाइम्स के पहले पन्ने की खबरें हैं

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– मोदी ने पश्चिम एशिया के टकराव में नागरिकों की मौत की निन्दा की

– मोदी ने डीप फेक की चिन्ता जताई, सबसे बड़ा खतरा बताया  

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– निजी क्षेत्र में 75% कोटा के हरियाणा के कानून को हाईकोर्ट ने खारिज किया

2. द हिन्दू  

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– छत्तीसगढ़, मध्यप्रदेश में 74% से ज्यादा मतदान की खबर को लीड बनाया है।

– टनल राहत कार्य रोक दिये जाने की खबर यहां टॉप पर प्रमुखता से है।

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– रेल किराया आसमान छूने की खबर यहां पांच कॉलम में है।

3. टाइम्स ऑफ इंडिया

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– (भाजपा नेता के काफिले गाड़ियों से) कुचलकर कांग्रेस नेता की मौत, भाजपा नेता के खिलाफ मामला दर्ज  

– हिंसा के बावजूद मतदान 76% तक पहुंचा

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मध्य प्रदेश में चुनावी हिंसा के अपने मायने हैं और इसलिए शीर्षक में इसकी चर्चा होना महत्वपूर्ण है और इसलिए यह बड़ी खबर थी पर इसे आज अखबारों में प्राथमिकता नहीं मिली है। कारण बताने की जरूरत नहीं है। अमर उजाला ने टनल में फंसे लोगों के मामले में पहले पन्ने पर खबर छापी है। शीर्षक है, उम्मीदों को फिर झटका, सुरंग में 22 मीटर पाइप जाने के बाद काम रुका। आपको बता दूं कि यह पाइप इतना बड़ा है कि फंसे मजदूर इसके जरिये निकल सकेंगे इसीलिए इसे लगाया जा रहा है। लेकिन 70 मीटर की बजाय अभी 22 मीटर ही लगाया जा सका है। हादसा रविवार को हुआ था। खबर है कि इतवार से फंसे मजदूरों में एक ने अपने भाई से कहा है कि उसकी मां को नहीं बताया जाये कि वह फंसे हुए मजदूरों में है। लेकिन राहत कार्य जिस ढंग से नाकाम हो रहे हैं उससे साफ है कि इसमें गंभीरता नहीं बरती जा रही है और योजना से अलग हट कर नहीं सोचा जा रहा है और न उसकी तैयारी रखी जा रही है और इसमें बचकर निकलने का रास्ता न होना भी एक बड़ी चूक है।

टाइम्स ऑफ इंडिया की एक खबर के अनुसार जानकारों ने सवाल उठाया है कि 4.5 किलोमीटर लंबी टनल परियोजना में एस्केप रूट क्यों नहीं था। जीएसआई के पूर्व निदेशक पीसी नवानी ने कहा है, एक नियम के रूप में एस्केप रूट होना चाहिये ताकि बचाव कार्यों को आसान बनाया जा सके। आप जानते हैं कि तीन प्लान फेल होने के बाद चौथी के लिए मशीन दिल्ली से मंगाई गई थी और अब वह भी क्षतिग्रस्त हो गई है। अमर उजाला की खबर के अनुसार इसका बीयरिंग खराब हो गया है। जो भी हो, मजदूर एक हफ्ते में नहीं निकाले जा सके हैं। यह विश्व गुरु होने के कितने करीब या कितना सत्य है उसपर भी विचार की जरूरत है।

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अश्नीर ग्रोवर और उनकी पत्नी को विदेश जाने से रोके जाने की खबर तकरीबन सभी अखबारों में पहले पन्ने पर है। विचार करने लायक मुद्दे और भी हैं। अखबारों और मीडिया में उनकी चर्चा नहीं  के बराबर होती है। आइये आज देखें कि विश्व गुरू बनने के मार्ग में हम कहां तक पहुंचे हैं। द टेलीग्राफ की आज की लीड के अनुसार आईआईटी में कैम्पस इंटरव्यू करने पहुंचे कॉरपोरेट के फॉर्म में एक सवाल उम्मीदवारों की जाति से संबंधित है। खबर के अनुसार प्लेसमेंट के लिए आईआईटी में साक्षात्कार कर रही कुछ कंपनियों ने छात्रों से उनकी जाति या तीन साल पहले प्रवेश परीक्षा में मिला रैंक बताने के लिए कहा है। पता नहीं, यह सबका साथ-सबका विकास में शामिल है कि नहीं।

दूसरी खबर, भी टेलीग्राफ की ही है। इसके अनुसार प्रियंका गांधी ने प्रधानमंत्री को चुनौती दी है कि वे मध्य प्रदेश मॉडल पर वोट मांगे। वैसे ही जैसे कांग्रेस राजस्थान और छत्तीसगढ़ में अपना रिकार्ड बता रही है। प्रियंका गांधी ने प्रधानमंत्री से कहा है कि वे लोगों को धर्म के आधार पर और दूसरे मुद्दों में न उलझायें। कहने की जरूरत नहीं है कि प्रियंका गांधी ने ऐसा यूं ही नहीं कहा है और प्रधानमंत्री ऐसा करते रहे हैं। इसका असर यह है कि उनके समर्थक और अखबार भी ऐसा करते रहे हैं। उदाहरण के लिए, आज ही नवोदय टाइम्स में पहले पन्ने की एक खबर का शीर्षक है, “नूंह में तनाव:  मदरसे की छत से पत्थरबाजी में 8 महिलायें घायल, विरोध में बाजार बंद।”

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यहां तनाव, घायल, बाजार बंद सब ठीक है और खबर है। लेकिन मदरसे की छत से पत्थरबाजी बताना जरूरी नहीं था। आम पाठक इस सूचना का क्या करेंगे? कार्रवाई प्रशासन को करनी है और जरूरी हो तो प्रशासन को अलग से सूचना दी जा सकती है जो संबंधित संवाददाता करेगा और प्रशासन उससे पूछेगा। पर शीर्षक में ही यह बात बता देने से संभव है कि बदले की कार्रवाई हो। और नहीं भी हो तो एक धर्म के लोगों के खिलाफ दूसरे धर्म के लोगों में नाराजगी फैलेगी ही। इससे प्रशासन के लिए मुश्किलें खड़ी हो सकती हैं जबकि फायदा कोई नहीं है। पहले ऐसे शीर्षक नहीं छपते थे और मुझे याद है शीर्षक की गलतियों की ओर छपाई के समय मशीन चलाने वाले और पैकिंग, डिस्पैच के जो लोग मशीन से उठाकर अखबार बढ़ते थे वो भी बताते थे और हमलोग मशीन रोककर भी ठीक करते थे।     

एंटायर पॉलिटिकल साइंस वाले प्रधानमंत्री, चुनाव प्रचार का दौर और मतदान के अगले दिन अखबारों में यह खबर पहले पन्ने पर सबमें प्रमुखता से नहीं है कि कितना मतदान हुआ। यही नहीं, डायनैमिक फेयर के कारण रेल का किराया कई गुणा बढ़ जाने और विमान से भी ज्यादा होने की चर्चा सोशल मीडिया में है। लेकिन अखबारों में पहले पन्ने पर नहीं है। द टेलीग्राफ ने इसे भी पहले पन्ने पर सिंगल कॉलम में छापा है। हालांकि, द हिन्दू में पांच कॉलम में है। दिलचस्प यह है कि हिन्दी पट्टी वालों की यह तकलीफ हिन्दी के अखबारों में पहले पन्ने पर नहीं है।     

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