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सुख-दुख

भड़ास के खिलाफ एक पाठक ने यूं निकाली अपनी भड़ास, ‘यशवंत जी, भड़ास का अंत आवश्यक हो गया है!’

यशवंत जी

भड़ास पर मेरी भी एक भड़ास है। ये भड़ास आपके पोर्टल से उत्पन्न हुई है। जब आप मीडिया के कुकृत्यों पर भड़ास निकालते हैं तो मीडिया के ही लोग आप पर लात घूसों की मुक्केबाजी करके भड़ास निकालने लगते हैं। आखिर ये सिलसिला कब तक चलेगा। जब NBA, एडिटर्स गिल्ड जैसी अनेक संस्थाएं मीडिया के कुकृत्यों पर लगाम लगाने में अक्षम हैं तो आप भड़ास जैसा स्तरहीन पोर्टल चलाकर क्या अर्जित कर रहे हैं?

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बेहतर ये होता कि आप खुद गंभीर पहल करके मीडिया के अच्छे पत्रकारों का एक अलग समूह बनाते जिसमें ईमानदार-निष्पक्ष पत्रकारिता की मिसाल पेश की जाती जो देश के बिकाऊ मीडिया के लिए आईना होती। गंभीर आर्थिक संकटों से गुजरते मीडिया की मजबूरियों को भी समझना जरूरी होगा। साथ ही मीडिया के टीआरपी होड़ पर भी गौर करना जरूरी होगा।

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भड़ास की बेशर्मी वाली भाषा न तो पाठकों को सुकून देती है ना ही आप को। हाल ही में आप पर लात घूसों से हमला हुआ पर इक्का दुक्का छोड़ कोई मीडिया आपके समर्थन में नही आया। मुझे लगता है कि मीडिया को आप जैसे साहसी निडर पत्रकार की जरूरत है जो निष्पक्ष, ईमानदार बेबाक पत्रकारिता से कारपोरेट मीडिया को आईना दिखा सके और उसे चौथे स्तम्भ की अहमियत बताये। यशवंत जी, आप भड़ास जैसे पोर्टल का शीघ्र त्याग करेंगे, यही मेरा आपसे निवेदन है।

एक पाठक

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अभय सिंह

[email protected]

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अभय के उपरोक्त पत्र का भड़ास एडिटर यशवंत ने यूं दिया क्रमवार जवाब…

शुक्रिया अभय भाई, पत्र लिखने के लिए, और अपने दिल-मन में अटकी हुई भड़ास निकालने के लिए… आपने जो कुछ कहा है, उसे उद्धृत करते हुए सिलसिलेवार मैं अपना जवाब लिख रहा हूं…

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-मीडिया के ही लोग आप पर लात घूसों की मुक्केबाजी करके भड़ास निकालते है। आखिर ये सिलसिला कब तक चलेगा?

(अरे भाई, पहली बार हमला हुआ है, वो भी पोलखोल खबर के कारण. यह तो भड़ास पोर्टल की सफलता है. क्या पत्रकार हमले, जेल और पुलिस के डर से पत्रकारिता करना बंद कर दें? और हां, आगे भी हमले होंगे, यह जानता हूं. आगे भी जेल जा सकता हूं, यह जानता हूं. तो, भय के कारण हम अपने कर्तव्य, अपने काम से विमुख हो जाएं, ये तो कोई तरीका न हुआ ब्रदर. सिलसिला चलते रहना चाहिए… मैं अपना काम करूंगा… वो अपना काम करें… वो कहानी पढ़ी है न आपने… साधु और बिच्छू वाली… साधु बार बार बिच्छू को बहते नदी से निकाल कर उसकी जान बचाने की कोशिश करे और बिच्छू बार-बार उसे डंक मार दे… दोनों अपना अपना काम कर रहे थे… साधु अपनी साधुता नहीं छोड़ रहा था और बिच्छु अपने डंक मारने के स्वभाव से मजबूर था… )

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-जब NBA, एडिटर्स गिल्ड जैसी अनेक संस्थाएं मीडिया के कुकृत्यों पर लगाम लगाने में अक्षम है तो आप भड़ास जैसा स्तरहीन पोर्टल चलाकर क्या अर्जित कर रहे हैं?

(एनबीए, एडिटर्स गिल्ड जैसी अनेक मीडिया संस्थाएं मीडिया के कुकृत्यों पर लगाम लगाने के लिए नहीं बनी हैं बल्कि ये मीडिया के कारपोरेट मालिकों और मीडिया के करप्ट संपादकों की रक्षा के लिए कवच हैं… इन संस्थाओं के जरिए कारपोरेट मीडिया मालिक और उसके करप्ट संपादक देश की सरकारों से बारगेन करते हैं, चौथे स्तंभ का मुलम्मा ओढ़कर और ढेर सारी सुविधाएं हासिल करते हैं, ढेर सारे लाभ लेते हैं. ये संस्थाएं सच्चे पत्रकारों और सच्ची पत्रकारिता का साथ नहीं देतीं… जनहित की पत्रकारिता पर ये चुप्पी साधे रहते हैं… ये केवल कारपोरेट मीडिया हाउसेज की रक्षक संस्थाएं हैं इसलिए इनसे मीडिया के कुकृत्यों पर लगाम लगाने की उम्मीद करना ही बेमानी है. रही बात भड़ास के स्तरहीन होने की तो ये बात उन हजारों पत्रकारों से पूछिए जिनकी मजीठिया वेज बोर्ड की लड़ाई में भड़ास न सिर्फ एक मंच और अगुवा बना बल्कि सुप्रीम कोर्ट में लड़ाई लड़ने में बड़ा माध्यम बना. देश भर के हजारों पत्रकारों को एकजुट कर पाने के लिए भड़ास ही निमित्त बना हुआ है. शोषित पत्रकारों की आवाज को उठाने का एकमात्र मंच भड़ास बना हुआ है… सैकड़ों उदाहरण हैं पिछले दस साल के जब भड़ास ने साहस के साथ सच को उजागर कर आम मीडियाकर्मयिों की आवाज को बुलंद किया और कारपोरेट मीडिया के मुंह पर कालिख पोतकर नंगा किया. राडिया टेप कांड हो या नवीन जिंदल सुधीर चौधरी स्टिंग, ऐसे दर्जनों मामलों को भड़ास ही पब्लिश कर सका क्योंकि मीडिया से जुड़े ये घपले घोटाले उठाने के लिए कारपोरेट मीडिया वाले तैयार न थे.. चोर-चोर मौसेरे भाई के अंदाज में चुप्पी साधे थे… हो सकता है आपको भड़ास स्तरहीन लगता हो… मुंडे मुंडे मतिर्भिन्ना… जाके रही भावना जैसी, प्रभु मूर देखी तिन तैसी… दिन भर पोर्न और घटिया खबरें छपने वाले बड़े बड़े मीडिया हाउसों के पोर्टल आपको अच्छे लगते हैं और भड़ास स्तरहीन तो भई मुझे इस पर कुछ नहीं कहना…)

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-बेहतर ये होता कि आप खुद गंभीर पहल करके मीडिया के अच्छे पत्रकारों का एक अलग समूह बनाते जिसमें ईमानदार निष्पक्ष पत्रकारिता की मिसाल पेश की जाती जो देश की बिकाऊ मीडिया के लिए आईना होती।

(-सब काम हमहीं कर लेंगे तो आप क्या करेंगे…. खाली भाषण देंगे भाई? …ज्यादा अच्छा होता कि मुझे चिट्ठी लिखने से पहले इस काम के लिए आप पहल शुरू कर देते… ये बीड़ा आप उठाते… वैसे भारत में ‘पर उपदेश कुशल बहुतुरे’ बहुत हैं… राय बहादुर बहुत सारे लोग हैं… गला फाड़ ढेर सारे लोग हैं.. भाषणबाज और बतोलेबाजों की कमी कहां अपन के देश में… उम्मीद करता हूं आप बतोलेबाज नहीं होंगे.. तो बताइएगा कि आपने क्या पहल की है और अब तक क्या किया है पत्रकारिता में…)

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-भड़ास की बेशर्मी वाली भाषा न तो पाठक को सुकून देती है ना ही आप को।

(भाषा बहता हुआ जल है. इसे आम जन से जुड़ा हुआ यानि बोलचाल वाली सहज सरल होनी चाहिए… बाकी, आप अगर साहित्य थोड़ा-बहुत भी पढ़े होते (अपढ़ नहीं कहूंगा आपको क्योंकि आप लिख तो लेते हैं, हालांकि ढेर सारी वर्तनी और वाक्य विन्यास की त्रुटियां हैं, सो आपकी पढ़ाई-लिखाई के लेवल को स्तरहीन कह सकता हूं) तो आप भड़ास की भाषा पर आपत्ति न करते. काशीनाथ सिंह का एक उपन्यास है, बनारस पर, अस्सी घाट पर, इसे आप लेकर पढिएगा फिर जानिएगा भाषा चीज क्या होती है… वैसे, मैं जानना चाहूंगा कि आपको भड़ास की किस खबर का कौन सा शब्द बेशर्मी भर लगा जिसके आपका सुकून चैन छिन गया.. आप अगर उदाहरण यानि फैक्ट्स के साथ बात करते तो मैं शायद ठीक से जवाब दे पाता..)

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-आप पर लात-घूसों से हमला हुआ पर इक्का-दुक्का छोड़ कोई मीडिया आपके समर्थन में नहीं आया।

(हम इस उम्मीद में काम नहीं करते मुश्किल वक्त आने पर आप या वो मेरे समर्थन में आएं.. मीडिया तो वैसे ही मेरे यानि भड़ास के खिलाफ रहता है क्योंकि उनकी पोल तो भड़ास ही खोलता है… दूसरे हम जिन आम मीडियाकर्मियों के मंच हैं, आवाज हैं, वो बेचारे अपनी जरूरतों-संघर्षों और मीडिया संस्थानों में अपनी नौकरियों को लेकर इतना बिजी हैं, परेशान हैं कि उनसे अपेक्षा नहीं की जा सकती कि वह मेरे लिए सड़क पर आकर मार्च करें. खबर लिखने के कारण, पोलखोल के कारण हमले होना कोई नई बात नहीं है… बहुत सारे पत्रकारों ने इसके लिए जान तक गंवाए हैं… पर पत्रकारिता बंद तो नहीं हुई… लोगों ने पत्रकार बनना बंद तो नहीं किया… आज भी बहुत सारे जोरदार पत्रकार हैं जो जान की बाजी लगाकर काम कर रहे हैं…. मैं जेल भी गया… इसी भड़ास के कारण… तब भी कौन पूरा देश उठ खड़ा हुआ था मेरे समर्थन में…. पर जेल से लौटकर भड़ास तो नहीं बंद किया… मैंने हमलावरों को माफ कर दिया.. उनके खिलाफ एफआईआर तक नहीं कराया… एक वकील मित्र के दबाव देने पर केवल लिखित कंप्लेन थाने में दे आया था ताकि सनद रहे. गीता में कहा गया है, काम किए जाइए, नतीजे की परवाह न कीजिए… भड़ास अब कुछ वैसा ही हो गया है मेरे लिए… बहुत सारे लोगों के साथ भीड़ नहीं दिखती लेकिन उनके पास अदृश्य ताकतें खड़ी होती हैं, कोस्मिक एनर्जी की लेयर्स उन्हें प्रोटेक्ट करती हैं… आंतरिक यात्रा की इन बातों को आप न समझ पाएंगे क्योंकि इतना कुछ समझ पाते तो आपकी चिट्ठी की लाइनें वाक्य शब्द कुछ और होते. वैसे, आपको लगता है कि मेरे पर हमले के बाद केवल इक्का-दुक्का लोग ही खड़े हुए… मैंने तो देखा, हजारों मैसेजेज, फोन काल्स, आर्टकिल्स आए मेरे पास… कुछ ऐसे लोग भी मिले जो हमलावरों को उन्हीं की भाषा में जवाब देने के लिए तत्पर थे… पर मुझे सड़क चलते मिले कुछ पागलों से उलझना न था, आगे बढ़ जाना था इसलिए जो कुछ हुआ उसे इगनोर किया, उन पागलों को माफ किया और अपने काम पर लग गया.)

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-मेरी आपसे आशा है कि मीडिया को आप जैसे साहसी निडर पत्रकार की जरूरत जो निष्पक्ष, ईमानदार बेबाक पत्रकारिता से कारपोरेट मीडिया को आईना दिखा उस 4th स्तम्भ की अहमियत बताये। यशवंत जी आप भड़ास जैसे पोर्टल का शीघ्र त्याग करेंगे यही मेरा आपसे निवेदन है।

(एक तरफ मुझे आप साहसी निडर जाने क्या क्या बता रहे हैं और फिर भड़ास के त्याग के लिए भी कह रहे हैं.. ये कांट्राडिक्टरी स्टेटमेंट समझ नहीं पाया… खैर, चलिए, आपका कहना मान लेते हैं. लो अभी से त्याग दिया भड़ास… अब आगे बताइए. क्या किया जाए? क्या कोई आपके पास एक्शन प्लान है? या यूं ही भड़ास के खिलाफ भड़ास निकालने के लिए भड़ास निकाले हैं.. वैसे, भड़ास को बंद करने के लिए मैं भी अक्सर सोचता रहता हूं लेकिन उसकी वजह दूसरी है… अगले दस साल कुछ दूसरा काम यानि घुमक्कड़ी, आंतरिक यात्रा, अध्यात्म आदि को देना चाहता हूं… पर आप जिन कारणों से भड़ास मुझसे बंद कराना चाहते हैं, वो मेरी समझ से परे है)

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आभार

यशवंत

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[email protected]


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0 Comments

  1. अभय सिंह

    October 12, 2017 at 1:09 pm

    भड़ास से अधिक की उम्मीद
    यशवंत भैया
    सादर प्रणाम
    बेहद खुशी हुई कि आपने मेरी भड़ास का बड़ी बेबाकी से उत्तर दिया।पर हर प्रतिक्रिया पर तिलमिलाने की आदत से आज हर नेता,एंकर, पत्रकार पीड़ित है शायद सब्र का बांध अब टूट चुका है । मीडिया भी बिगबॉस का नकारात्मक शो बनकर रह गया है जहाँ प्रतिभागियों को लड़ा भिड़ाकर trp बटोरी जाती है। शायद स्वयं में बदलाव का ये सबसे सही समय है। मेरी आपसे बड़ी उम्मीद है और मेरा विश्वास है कि आप मेरा भरोसा नही तोड़ेंगे भड़ास से भी दूरगामी पहल करेंगे।
    मैं आपके पोर्टल का अदना सा पाठक हूं ।न्यूज़,डिबेट देखने सुनने में मेरी गहरी रुचि है ।पत्रकारिता से मेरा दूर तक कोई वास्ता नहीं है ।बस दिल किया और आपको अपनी बात बता दी। पत्र में वर्तनी, वाक्यांश का दोष जरूर होगा क्योंकि अगर अंग्रेजी में टाइप करता तो शायद संवाद में कमी होती इसलिए मोबाइल पर जल्दी में हिंदी टाइप करना उचित समझा लेकिन मोबाइल पर हिंदी टाइप करना कितना कठिन है कि मेरी उंगलिया जवाब दे गई बेहतर होता कि मैं आपको हस्तलिखित पत्र स्कैन करके मेल कर देता।
    मेरा आपसे यही सवाल था कि मीडिया के गुण दोषों में अपना समय बर्बाद करने की बजाय खुद एक बेहतर विकल्प बनने का प्रयास किया जाय। हम दूसरों को बदलने की कोशिश करने की बजाय खुद को ऐसा बनाये की लोग हमें देखकर अपनी गलतियों का आभास करें और उन्हें दूर करें।अगर आप किसी की भयंकर आलोचना करते है तो दो संभावनाये बनती हैं या तो आप सच्चे आलोचक हैं या ब्लैकमेलर।आज मीडिया ब्लैकमेलर की भूमिका में है जब उसके हित पूरे हो जाते है तो वे आलोचना बंद कर देते है।उदाहरण के तौर पर यूपी चुनाव में अखिलेश यादव ने लंबे समय तक ऐसा मीडिया मैनेज किया की जमीनी सच्चाई से दूर सारे पत्रकार लगातार गलत विश्लेषण कर रहे थे । चुनाव परिणाम के बाद अधिकांश पत्रकारों की राजनीतिक समझ पर खूब छीछालेदर हुई।आखिर क्या पत्रकारिता पर पेट भारी है।
    मीडिया को ब्लैकमेलिंग का धंधा बनाकर अपना उल्लू सीधा करना आज आम है इसे बदलने की जरूरत है । ऐसा देखा जाता है कि जहाँ मीडिया के आर्थिक हित होते है वहाँ सही गलत का फर्क खत्म हो जाता है।
    जब आप पर हमला हुआ तब मुझे बड़ा आश्चर्य हुआ कि आपके भड़ास4मीडिया के अलावा कहीं भी इस बात की चर्चा तक नहीं हुई आप खुद ही अकेले लड़ते रहे।आखिर क्यों आप अकेले पड़ गए इसका आत्ममंथन आपको करना जरूरी है।
    मुझे लगता है कि भविष्य में मीडिया में बड़ा बदलाव अत्यावश्यक है जिसकी आप एक बड़ी उम्मीद बन सकते है ।मैं एक पाठक हूँ अपनी राय रख सकता हूँ बाकी फैसला आपका है।भाषण में मेरा यकीन नही है हां पत्रकारिता के उभरते हनुमान को उनके बल, सामर्थ्य की की याद जरूर दिला सकता हूं।
    शुरू से ही मीडिया के बदलते रंग रूप को देखकर गहरा संदेह होता है इसी को जानने के लिए भड़ास4मीडिया की मदद लेता रहा हूं।एक उम्मीद दिखती है लेकिन क्या ये सब पर्याप्त है ।मेरी एक उम्मीद है कि भविष्य में ऐसा मीडिया हो जिसमे निष्पक्ष, ईमानदार लोग हो जो trp की होड़ से कोसो दूर हो। दिल्ली और हनीप्रीत के ड्रामे केअलावा देश के और भी हिस्सों की समस्याओं को सामने रखें।डिबेट में शांत संतुलित बहस हो। सत्ता के आगे रेंगने की बजाय उनसे सवाल पूछने का माद्दा हो।चैनल की विश्वसनीयता इतनी हो कि देश उस पर भरोसा करे लेकिन आज स्थिति बिल्कुल उलट है।इसमे बदलाव के वाहक आप बने यही ईश्वर से मेरी कामना है। बस एक उम्मीद से आपसे अपनी हाँफती उंगलियों को विराम देना चाहूंगा ।
    धन्यवाद
    एक पाठक
    अभय सिंह
    [email protected]

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