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इन खबरों के कारण भड़ास संपादक यशवंत पर हमला किया भुप्पी और अनुराग त्रिपाठी ने!

साढ़े छह साल पुरानी ये वो खबरें है जिसको छापे जाने की पुरानी खुन्नस में शराब के नशे में डूबे आपराधिक मानसिकता वाले भूपेंद्र नारायण सिंह भुप्पी ने किया था भड़ास संपादक यशवंत सिंह पर प्रेस क्लब आफ इंडिया में हमला… इसमें सबसे आखिरी खबर में दूसरे हमलावर अनुराग त्रिपाठी द्वारा स्ट्रिंगरों को भेजे गए पत्र का स्क्रीनशाट है जिसके आखिर में उसका खुद का हस्ताक्षर है… ये दोनों महुआ में साथ-साथ थे और इनकी कारस्तानियों की खबरें भड़ास में छपा करती थीं… बाद में दोनों को निकाल दिया गया था…

साढ़े छह साल पुरानी ये वो खबरें है जिसको छापे जाने की पुरानी खुन्नस में शराब के नशे में डूबे आपराधिक मानसिकता वाले भूपेंद्र नारायण सिंह भुप्पी ने किया था भड़ास संपादक यशवंत सिंह पर प्रेस क्लब आफ इंडिया में हमला… इसमें सबसे आखिरी खबर में दूसरे हमलावर अनुराग त्रिपाठी द्वारा स्ट्रिंगरों को भेजे गए पत्र का स्क्रीनशाट है जिसके आखिर में उसका खुद का हस्ताक्षर है… ये दोनों महुआ में साथ-साथ थे और इनकी कारस्तानियों की खबरें भड़ास में छपा करती थीं… बाद में दोनों को निकाल दिया गया था…

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इन दोनों से भड़ास एडिटर यशवंत की कभी कोई मुलाकात नहीं हुई थी, सिवाय कभी किसी कार्यक्रम या किसी जगह देखा-देखी के अलावा. इनके मन में इस बात की खुन्नस थी कि वैसे तो ये खुद को तीसमारखां पत्रकार समझते थे लेकिन इनका असली चेहरा सबके सामने लाया गया तो इन्हें चक्कर आने लगे. इनकी सारी दलाली-लायजनिंग की पोलपट्टी भड़ास पर लगातार खुलती रही जिसके चलते इनका पत्रकार का आवरण धारण कर दलाली करने का असली करतब दुनिया के सामने उदघाटित हो गया. इससे इनके लिए मुंह दिखाना मुश्किल हो गया होगा…

सोचिए, मीडिया के लोग वैसे तो पूरे देश समाज सत्ता की पोल खोलने के लिए जाने जाते हैं लेकिन जब इनकी पोल खुलती है तो ये कैसे पागल होकर हिंसक हो उठते हैं… जिसका पेशा कलम के जरिए दूसरों की पोल खोलना और आलोचना करना हो, वह खुद की सही-सही आलोचना छापे जाने से तिलमिलाकर कलम छोड़ बाहुबल पर उतर जाता हो, उसे क्या कहेंगे? पत्रकार के वेश में अपराधी या पत्रकार के वेश में पशु या पत्रकार के वेश में लंपट?

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भड़ास4मीडिया के एडिटर यशवंत का कहना है कि ऐसे हमलों, पुलिस-थानों, मुकदमों और जेल से वे लोग डरने वाले नहीं… मीडिया के अंदरखाने का असल सच सामने लाते रहेंगे, चाहें इसके लिए जो भी कुर्बानी देनी पड़े… भुप्पी और अनुराग से संबंधित कुछ प्रमुख खबरों का लिंक, जो भड़ास पर साढ़े छह साल पहले छपीं, नीचे दिया जा रहा है… इन  खबरों पर एक-एक कर क्लिक करें और पढ़ें…


आजतक के ब्यूरो चीफ का हुआ स्टिंग?
http://old.bhadas4media.com/tv/8998-2011-02-03-04-47-10.html

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आजतक प्रबंधन ने अपने ब्यूरो चीफ को बर्खास्त किया?
http://old.bhadas4media.com/buzz/9130-2011-02-08-16-14-47.html

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ब्लैकमेलिंग के आरोपों में आजतक न्यूज चैनल से निकाले गए भुप्पी
http://old.bhadas4media.com/tv/9172-2011-02-10-19-01-06.html

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महुआ न्यूज चैनल के हिस्से हो गए भूपेंद्र नारायण सिंह भुप्पी!
http://old.bhadas4media.com/edhar-udhar/10121-2011-03-27-13-50-04.html

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आजतक से हटाए गए भुप्पी अब तिवारी जी की सेवा में जुटे
http://old.bhadas4media.com/tv/10769-2011-04-26-07-15-30.html

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महुआ न्यूज़ से भी विदाई हुई भूपेंद्र नारायण भुप्पी की
http://old1.bhadas4media.com/edhar-udhar/6062-bhuppi-out-from-mahua.html

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पैसे की जगह स्ट्रिंगरों को धमकी भरा पत्र भेज रहे हैं महुआ वाले
http://old1.bhadas4media.com/print/4507-2012-05-19-18-21-08.html

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पूरे प्रकरण का अपनी तरफ से पटाक्षेप करते हुए यशवंत ने फेसबुक पर जो लिखा है, वह इस प्रकार है-

”मेरे पर हमला करने वाले भुप्पी और अनुराग त्रिपाठी को लेकर ये मेरी लास्ट पोस्ट है. इसमें उन खबरों का जिक्र और लिंक है जिसके कारण इन दोनों के मन में हिंसक भड़ास भरी पड़ी थी और उसका प्राकट्य प्रेस क्लब आफ इंडिया में इनने किया. मैंने अपनी तरफ से रिएक्ट नहीं किया या यूं कहें कि धोखे से इनके द्वारा किए गए वार से उपजे अप्रत्याशित हालात से मैं भौचक था क्योंकि मुझे कभी अंदेशा न था कि कलम धारण करने वाला कोई शख्स बाहुबल के माध्यम से रिएक्ट करेगा. मैं शायद अवाक था, अचंभित था, किंकर्त्व्यविमूढ़ था. इस स्थिति के लिए मानसिक रूप से तैयार नहीं था. अंदर प्रेस क्लब में तारीफ और बाहर गेट पर हमला, इस उलटबांसी, इस धोखेबाजी से सन्न हो गया था शायद. आज के दिन मैं मानता हूं कि जो हुआ अच्छा हुआ.  हर चीज में कई सबक होते हैं. मैंने इस घटनाक्रम से भी बहुत कुछ लर्न किया. मेरे मन में इनके प्रति कोई द्वेष या दुश्मनी नहीं है. मैं जिस तरह का काम एक दशक से कर रहा हूं, वह ऐसी स्थितियां ला खड़ा कर देता है जिसमें हम लोगों को जेल से लेकर पुलिस, थाना, कचहरी तक देखना पड़ता है. एक हमला होना बाकी था, ये भी हो गया. अब शायद आगे मर्डर वाला ही एक काम बाकी रह गया है, जिसे कौन कराता है, यह देखने के लिए शायद मैं न रहूं 🙂

मैंने अपने इन दोनों हमलावरों को माफ कर दिया है क्योंकि मैं खुद की उर्जा इनसे लड़ने में नहीं लगाना चाहता. दूसरा, अगर इनकी तरह मैं भी बाहुबल पर उतर गया तो फिर इनमें और मेरे में फर्क क्या रहा?  मैं इन्हें अपना दुश्मन नहीं मानता. मेरा काम मीडिया जगत के अंदर के स्याह-सफेद को बाहर लाना है, वो एक दशक से हम लोग कर रहे हैं और करते रहेंगे. ऐसे हमले और जेल-मुकदमें हम लोगों का हौसला तोड़ने के लिए आते-जाते रहते हैं, पर हम लोग पहले से ज्यादा मजबूत हो जाते हैं. लोग मुझसे भले ही दुश्मनी मानते-पालते हों पर मेरा कोई निजी दुश्मन नहीं है. मैं एक सिस्टम को ज्यादा पारदर्शी, ज्यादा लोकतांत्रिक और ज्यादा सरोकारी बनाने के लिए लड़ रहा हूं और लड़ता रहूंगा. मैं पहले भी सहज था, आज भी हूं और कल भी रहूंगा. हां, इन घटनाओं से ये जरूर पता चल जाता है कि मुश्किल वक्त में कौन साथ देता है और कौन नहीं. पर इसका भी कोई मतलब नहीं क्योंकि चार पुराने परिचित साथ छोड़ देते हैं तो इसी दरम्यान दस नए लोग जुड़ जाते हैं और परिचित बन जाते हैं. बदलाव हर ओर है, हर पल है, इसे महसूस करने वाला कर लेता है.  मैं नेचर / सुपर पावर / अदृश्य नियंता पर भरोसा करता हूं, बहुत शिद्दत के साथ, इसलिए मुझे कतई एहसास है कि हर कोई अपनी सजाएं, अपनी मौज हासिल करता रहता है. इसलिए मैं अपने हमलावर साथियों को यही कहूंगा कि उनने जो किया उसका फल उन्हें ये नेचर देगा जिसके दरम्यान उनका अस्तित्व है. जैजै”

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पूरे मामले को समझने के लिए इन खबरों / टिप्पणियों / आलेखों को भी पढ़ें…

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