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सुख-दुख

नशे की खोज! (भड़ासकीय)

यशवंत सिंह-

मनुष्य जब खेती करने लगा तो उसे व्यवस्थित होना पड़ा। घर बनाना पड़ा। परिवार बसाना पड़ा। घूमना भटकना बंद करना पड़ा। खेती के लिए उसे एक जगह स्थिर होना पड़ा। वह हज़ारों साल की अपनी आदतों के ख़िलाफ़ जीवन जीने लगा। वह जानवरों / जंगलियों वाले जीवन से मुक्त होकर कुछ नया बनने लगा जिसे तभी मनुष्य नाम दिया गया होगा।

पर इस नई बनावट / बसावट से उसकी हज़ारों सालों वाली आदतों / डीएनए में अचानक बदलाव कैसे आ जाता। फिर खोज हुई नशे की। नशे ने आदमी को फिर से जानवर स्वच्छंद बिंदास घुमंतू उत्सवी जंगली बना दिया, भले कुछ घंटों के लिए ही सही। इस तरह हमने एकता में विविधता की तरह मनुष्यता में जानवरता, स्थिरता में अप्रत्याशितता, जड़ता में गतिशीलता को ईजाद कर लिया।

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नशे की खोज करने वाले महान मनुष्यों को नमन।

ये ज्ञान कल देर रात उत्सव की अवस्था में एक अग्रज से मिला।

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आज रात तो नशे के नाम पर अपने पास चाय है।

चाय का नशा भी ग़ज़ब होता है। थोड़ा थोड़ा होता है, पर होता तो है।

अभी यूँ ही बीपी पल्स चेक किया।

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Bp 132/83 pulse 75

कुछ रोज़ पहले हेल्थियंस से फ़ुल बॉडी चेक अप करवाया। न शुगर न लीवर न किडनी न यूरिन.. कहीं कोई गड़बड़ नहीं।

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जीवन में सब कुछ इतना अच्छा होना भी अच्छा नहीं होता। जब देखता हूँ कि लोग दुखों से तनावों से भयों से परेशान हैं तो खुद को बहुत बेहतर स्थिति में पाता हूँ। इसका सबसे बड़ा कारण मैं तीन चीजों को मानता हूँ-

१- सड़क छाप बने रहना (ये एक संत अवस्था है जिसकी विशद व्याख्या पेड है 🙂

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2-किसी से कोई उम्मीद न रखना (ये एक तपस्या है जिसका फोर्मूला पेड है 🙂

3-सब कुछ प्रकृति को सौंप देना (ये एक परमज्ञान है जिसे व्यावहारिक रूप से जीना सीखना हमारे यहाँ पेड है 🙂

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भड़ास एडिटर यशवंत अब संपादकीय की तर्ज़ पर भड़ासकीय लिखा करेंगे. ये पहला / शुरुआती पार्ट है!

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