रविंद्र सिंह-
फंक्शनल निदेशकों का गैंग...
मनीष गुप्ता (दिसंबर 2010 से सेवा विस्तार)
भारतीय राजस्व सेवा के अधिकारी है मनीष गुप्ता. 2004 में सरकार का शेयर वापस करने के बाद धन में की गई गड़बड़ी में आयकर चोरी की जांच कर रहे थे. इस दौरान अवस्थी ने मनीष गुप्ता को साक्ष्य देने के बहाने होल्ड पर रख दिया और उनकी धर्मपत्नी जो बहुत ही रईस पृष्ठ भूमि से हैं उनकी इच्छा को भांपकर करोड़ों के जेवरात खरीदवा दिए. जब पत्नी तक अवस्थी की पहुंच हो गई तो बेबस मनीष गुप्ता की क्या अवकात थी जो जांच को आगे बढ़ाते. पत्नी को ऐसा मंत्र सिखाया कि वह आयकर की नौकरी छोड़कर मार्च 2004 में अवस्थी के साथ हो लिए.
मनीष ने अप्रैल 2009 तक इफको में नौकरी की इसके बाद पत्नी को लेकर मन मुटाव हुआ और वह इफको को अलविदा कह गए लेकिन अवस्थी से उनकी बेवफाई ज्यादा दिन नहीं चल सकी. दिसंबर 2010 में अवस्थी ने उन्हें पुन: बतौर रणनीति और संयुक्त उद्यम निदेशक के पद पर आसीन कर दिया. वर्तमान में यह इफको में दिए गए निदेशक के दायित्व कम बल्कि मंत्रालय और PMO में जाकर अवस्थी के द्वारा किया गया इफको का अपहरण मामले की कार्रवाई रूकवाने की लॉबिंग का कार्य भी देखते हैं.
यह काम उन्हें इसलिए सौंपा गया है क्योंकि यह पूर्व IRS अधिकारी हैं. मंत्रालय और PMO में आसानी से प्रवेश कर बात कर लेते हैं. इसी बात का फायदा अवस्थी उठाते आ रहे हैं.
हाल ही में सरकार ने अवस्थी के विरूद्ध कई जांच बैठाई हैं कुछ अफसरों का कहना है जांच महज ढोंग है उसे बचाने की सरकार की पूरी तैयारी है. अब अवस्थी भी फूंक-फूंककर कदम रख रहे हैं, कहीं ऐसा न हो सरकार अचानक गिरफ्तार कर तिहाड़ जेल भेज दे. इसलिए निदेशक हाई प्रोफाइल होने के नाते मंत्रालयों से कार्रवाई और जांच पर पल-पल नजर रखे हुए हैं.
एमआर पटेल (3 जून 2016 से सेवा विस्तार)
2 जून 1954 को जन्में एमआर पटेल को इफको से 1 जून 2016 को सेवा निवृत्त होने पर कार्य मुक्त होना था. गुजरात के कांडला सयंत्र में अधिशासी निदेशक के पद पर रहते हुए अवस्थी को ठेकोदारों के द्वारा जमकर कमाई करवाई थी इसलिए सेवा निवृत्त होने के बाद अवस्थी ने इन्हें ईनाम देते हुए निदेशक आईटी सेवाएं के पद पर सेवा विस्तार देकर पुन: तैनात कर दिया. इफको बोर्ड में हमेशा गुजरात का दबदबा रहा है और यह पूर्व चेयरमैन एनपी पटेल के नजदीकी माने जाते हैं. इसलिए अवस्थी के वफादार भी हैं. अवस्थी द्वारा इन्हें भी अपनी गैंग में शामिल करने के पीछे इफको घोटाला को उजागर होने से दबाये रखना है.
ए के सिंह (13 जून 2017 से सेवा विस्तार)
इफको में 1977 से निरंतर जुड़े हुए हैं ए के सिंह. उन्होंने अपने कार्यकाल के दौरान सयंत्र आंवला में रख रखाव एवं अन्य मद में जमकर वित्तीय धोखाधड़ी कर अवस्थी को अवैध तरीके से खूब पैसा कमाकर दिया है. इन्हें 3 जून 2017 को सेवा निवृत्त होने पर कार्य मुक्त होना था परंतु अवस्थी के काले कारनामे जानने एवं अपनी राजनीतिक पहुंच के चलते सेवा विस्तार देकर फंक्शनल निदेशक के गैंग में शामिल कर लिया गया है.
वर्तमान समय में ए के सिंह निदेशक सहकारिता एवं विकास के पद पर आसीन हैं. फूलपुर और आंवला इकाई सयंत्र निर्माण के समय से अवस्थी के वफादार बने हुए हैं. निर्माण के समय अवस्थी इफको मुख्यालय दिल्ली में तैनात थे और वे सयंत्र में क्रय होने वाले हर मशीनरी की निगरानी करते थे. ए के सिंह वफादार होने के कारण अवस्थी के हां में हां मिलाते रहते थे इसलिए इन्हें आंवला के साथ-साथ फूलपुर का भी दायित्व मिला हुआ था. वर्तमान में इफको बोर्ड ना रहकर सहकारिता माफियाओं का गैंग बन चुका है.
केंद्रीय रजिस्ट्रार द्वारा जारी गाइडलाइन का पालन न करने पर भय के चलते बोर्ड को कभी भी निष्प्रभावी कर रिसीवर बैठाने का प्रयास नहीं किया गया. संविधान और इफको सेवा नियम के मुताबिक किसी भी निदेशक को अधिकतम 6 माह का सेवा विस्तार परिस्थिति के अनुरूप दिया जा सकता है परंतु इफको में तो 6 फंक्शनल निदेशक कई-कई वर्ष से सेवा विस्तार पर हैं. क्या यह सब इतने काबिल हैं कि देश में और कोई काबिल निदेशक नहीं मिल पा रहा है? इफको बोर्ड की कार्यप्रणाली से साफ होता है गरीब किसानों के धन को मनमानी व धोखा धड़ी कर गैर कृषि क्षेत्र में निवेश किया गया है. इसके बाद मनी लांड्रिंग के जरिए उक्त धन को विदेश में जाकर जमा कर दिया गया.
वित्त मंत्रालय की सख्ती के बाद पी. संपथ अपर आयुक्त सहकारिता ने 15 जनवरी 2018 को आदेश जारी कर सभी मल्टी स्टेट कोआपरेटिव सोसाइटी से पीएमएलए एक्ट 2002 के अंतर्गत वित्तीय वर्ष 2016-17 एवं 31 जनवरी 2018 तक टर्न ओवर का लेखा जोखा उपलब्ध कराने के निर्देश दिए थे. मनी लांड्रिंग के कार्य में इफको-कृभको के अलावा अन्य कंपनी नहीं हैं फिर भी सांठ-गांठ के जरिए दोनों कंपनी का नाम खुलासा करने से रोक दिया गया. लंबे समय से इफको प्रबंधन मनी लांड्रिंग में लिप्त है परंतु रजिस्ट्रार की आखों की रोशनी इतनी कम हो गी है अब उन्हें चश्मा लगाने से भी मनी लांड्रिंग दिखाई नहीं दे रही है.
इसकी वजह यह भी है कि बोर्ड को निष्प्रभावी मान लिया तो रिसीवर को बैठाना पड़ेगा फिर लंबे समय से अपहरण कर रखी गई इफको का राज खुलेगा. इससे बेहतर पत्र लिखने तक ही कार्रवाई की जाती रही है.
97वें संविधान संशोधन 2012 के बाद से इफको पुन: संवैधानिक संस्था बन चुकी है. इसलिए निदेशक मंडल में एससी, पिछड़ी जाति से एक-एक सदस्य होना जरूरी था परंतु अवस्थी ने ऐसा नहीं किया. रजिस्ट्रार द्वारा जारी गाइड लाइन के मुताबिक बोर्ड निष्प्रभावी है और इसके द्वारा लिए गए प्रत्येक निर्णय अवैध एवं गैरकानूनी हैं.
बरेली के पत्रकार रविंद्र सिंह द्वारा लिखी किताब इफको किसकी का 11वां पार्ट..
जारी है..
पिछला पार्ट.. इफको की कहानी (10) : फंक्शनल निदेशकों के जरिए IFFCO में इस तरह होता है कारनामे छुपाने का खेल!