रविंद्र सिंह-
फंक्शनल निदेशकों का गैंग…
राकेश कपूर (2 वर्ष से सेवा विस्तार)
भारतीय राजस्व सेवा के अधिकारी राकेश कपूर कर चोरी प्रकरण में प्रबंध निदेशक अवस्थी की जांच कर रहे थे. इसी बीच अवस्थी ने इस बेईमान अफसर को ऐसी घुट्टी पिलाई कि वह जांच करना भूलकर आयकर विभाग की नौकरी ठुकराते हुए इफको में बतौर मुख्य वित्त अधिकारी ज्वाइन कर लिया. अवस्थी के खास वफादार होने की वजह से कुछ ही दिनों का सेवा काल पूरा करने के बाद ईनाम में संयुक्त प्रबंध निदेशक का दायित्व भी मिल गया.
सन 2013 में राकेश कपूर ने अपने नाम बसंत विहार स्थित 2 मंजिला आवास बोर्ड में प्रस्ताव लाकर आवंटन करा लिया. उक्त आवास की सतर्कता आयोग ने जांच शुरू कर दी तो राकेश कपूर ने भी आवास वापस करने की पेशकश कर दी. वर्तमान में कपूर, अवस्थी द्वारा किये जा रहे हर तरह के भ्र्ष्टाचार में कदम से कदम मिलाकर साथ चल रहे हैं. अवस्थी ने अपने खास होने के वजह से राकेश कपूर को इफको में संयुक्त प्रबंध निदेशक के अलावा इफको किसान संचार में प्रबंध निदेशक एवं इफको किसान सेज का भी प्रबंध निदेशक बना रखा है.
राकेश कपूर भी गर्दन तक भ्र्ष्टाचार में डूबे हुए हैं. मनी लांड्रिंग के जरिये धन विदेश भेजने का सुझाव भी इनका ही है. दो साल पहले सेवा निवृत्त हो चुके कपूर भी सेवा विस्तार पर इसलिए रखे गए हैं ताकि किए गए भ्र्ष्टाचार की जानकारी अन्य व्यक्ति के द्वारा खुलासा की जा सकती है. सरकार का शेयर वापसी के बाद बचा धन खुर्द-बुर्द करने में अवस्थी के साथ राकेश कपूर भी शामिल हैं.
के एल सिंह (8 वर्ष से सेवा विस्तार)
के एल सिंह इफको के निदेशक तकनीक हैं और 2010 के आसपास सेवा निवृत्त हुए हैं. सन 1979 में इलाहबाद स्थित फूलपुर इकाई से निरंतर अपने पद पर बने हुए हैं. निदेशक तकनीक होने के वजह से इफको के पांचों सयंत्र में निर्माण, संचालन एवं रखरखाव के जरिये अवस्थी को स्पेयर पार्ट्स खरीद में गड़बड़ी कर करोड़ों का धन कमा कर देते रहे हैं, इसलिए वफादार भी हैं. लगभग 8 साल पहले इफको से रिटायर होने के बाद इन्हें कार्य मुक्त होना था परन्तु अवस्थी ने बोर्ड से इन्हें भी सेवा विस्तार दिलाकर गैंग से बाहर नहीं जाने दिया है.
अवस्थी द्वारा इफको में किये गए भ्र्ष्टाचार की समय-समय पर शिकायत की जा रही है और इन शिकायतों को दबाने के लिए धन की आवश्यकता होती है. निदेशक तकनीक होने की वजह से यह पल भर में मांग के अनुरूप फर्जीवाड़ा कर करोड़ों का धन उपलब्ध करा देते हैं. यही वजह है अवस्थी के गैंग में वही निदेशक रह सकता है जो उसकी शर्तों के तहत कार्य करते रहें और वफादार सैनिक की तरह मुसीबत के समय साथ छोड़कर न भाग जाएं.
आर पी सिंह (3 वर्ष से सेवा विस्तार)
आर पी सिंह की जन्मतिथी 5 जनवरी 1953 है. यह पायराइट्स फॉसफ़ेट एंड केमीकल में बतौर सहायक एच आर विभाग में सेवारत थे अवस्थी उक्त कंपनी में प्रबंध निदेशक के पद पर कार्यरत थे. यह कंपनी ‘सी’ श्रेणी में थी. ‘बी’ श्रेणी में लाने के लिए अवस्थी ने तरह-तरह का फर्जीवाड़ा कर धन एकत्र किया. यह धन बाद में उर्वरक एवं अन्न मंत्रालय में देकर ‘सी’ श्रेणी कंपनी को ‘बी’ श्रेणी में करा लिया. अवस्थी के काले कारनामें में शातिर दिमाग़ आर पी सिंह भी शामिल थे. ज़ब अवस्थी पुनः इफको में आये तो 27 मई 1996 को अपने सहायक को भी इफको में ज्वाइन करा दिया. श्री सिंह तब से वफादार गैंग के सिपाही बने हुए हैं. मामूली से सहायक से वर्तमान में निदेशक मानव संसाधन एवं विधि विभाग है. सेवा निवृत्त होने के बाद 3 साल से सेवा विस्तार पर हैं.
इफको में किसी भी पद पर अवैध नियुक्ति करने और पद से हटाने में माहिर आर पी सिंह ने बोर्ड सदस्य व अन्य के परिजन व रिश्तेदारों की नियुक्ति कर खूब भाई भतीजावाद निभाया है. हरशेंद्र वर्धन पी आर प्रमुख एवं विनीत कुमार शुक्ला की भी नियुक्ति बिना विज्ञापन के कर ली गई है जो जांच का विषय है.
आर पी सिंह ने भ्रष्ट कार्यशैली के चलते कई अधिकारियों का इसलिए प्रमोशन नहीं किया क्योंकि वे निहायत ही ईमानदार थे. चाटुकारिता करना और भ्र्ष्टाचार में शामिल होना उन्हें पूरी तरह से नागवार गुजरा है. इसी तरह कई ऐसे भी अधिकारी हैं जिन्हें इफको सेवा नियम का उल्लंघन करने पर नौकरी से हटा दिया गया है.
योगेंद्र कुमार (उदय शंकर अवस्थी की चापलूसी से बने निदेशक)
योगेंद्र कुमार का कद एक साल पहले अदना सा था. इसी बीच उन्होंने सपा नेता शिवपाल सिंह यादव की इतनी चापलूसी की वह उनके नजदीक पहुंच गए. बरेली से डीसीएफ डिलीगेट्स श्री पांडे ने अवस्थी के भ्र्ष्टाचार की रसायन उर्वरक मंत्रालय एवं PMO में शिकायत कर दी. शिकायत भी सबूतों के साथ थी और केंद्र सरकार द्वारा भारत से कांग्रेस और भ्र्ष्टाचार मुक्त होने के जनता के बीच बार बार कसीदे पढ़े जा रहे थे. ऐसे में कार्रवाई के भय से अवस्थी का हलक सूख चुका था.
योगेंद्र पहले से ही DGM से निदेशक बनने की जुगत में थे, फिर अवस्थी ने योगेंद्र को बुलाया और कहा शिवपाल यादव से रिश्तों का फायदा उठाते हुए श्री पांडे को शांत करिये, ठीक है निदेशक विपणन का पद ईनाम में दे देंगे.
रणनीति के तहत श्री पांडे से बात शुरू की गई. इसके बाद दिल्ली के पांच सितारा होटल में अवस्थी के साथ मीटिंग कराई गई. अवस्थी ने श्री पांडे को धन और बल से काबू में कर लिया. अब पांडे संतुष्ट होकर चुप बैठ गए तो अवस्थी को भी रात में चैन की नींद आने लगी.
सब ठीक होने पर योगेंद्र ने अपना हक मांगा तो अवस्थी ने इफको सेवा नियम का अतिक्रमण करते हुए 1 से 2 साल के भीतर ही कई बार प्रमोशन कर आखिरकार निदेशक विपणन का पद ईनाम में दे दिया. उत्तर प्रदेश में सपा की सरकार थी, शिवपाल यादव कैबिनेट मंत्री और उनके सुपुत्र आदित्य यादव PCF के चेयरमैन व इफको के निदेशक मंडल में सदस्य हैं. इसलिए वह निदेशक की कुर्सी पर आसानी से पहुंच कर अब अवस्थी के काले कारनामे छुपाने के लिए राजनीतिक लॉबिंग करने लगे हैं.
बरेली के पत्रकार रविंद्र सिंह द्वारा लिखी किताब इफको किसकी का दसवां भाग!
जारी है..
नौवां पार्ट.. इफको की कहानी (9) : मीडिया ट्रॉयल हुआ तो अवस्थी ने गिफ्ट में लिए बंगले को वापस करने की बात कही!