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सुख-दुख

रवीश ने अपने ब्लाग और पोस्ट से चुनौती दी- साबित करो कि यह फोटोशाप नहीं है!

Sheetal P Singh : बूसी बसिया. कल गौरी लंकेश को इसाई बताकर खारिज किया गया था, सबूत में उनके दफ़नाये जाने को उत्तर भारत के कुपढ़ समाज के मूढ़ मष्तिष्क में ठोंसा गया और यह भी कहा गया कि वे केरल की संघ कार्यकर्ताओं की हत्या के पक्ष में लिख रही थीं!

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Sheetal P Singh : बूसी बसिया. कल गौरी लंकेश को इसाई बताकर खारिज किया गया था, सबूत में उनके दफ़नाये जाने को उत्तर भारत के कुपढ़ समाज के मूढ़ मष्तिष्क में ठोंसा गया और यह भी कहा गया कि वे केरल की संघ कार्यकर्ताओं की हत्या के पक्ष में लिख रही थीं!

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इन अफ़वाहों को कल तथ्यों के जरिये जमींदोज किया गया। लगभग हर परिचित संघी दीवाल पर जाकर मैंने चुनौती दी कि क्या आप जानते हैं कि लिंगायत और तमाम अन्य (ग़ैर मुस्लिम / इसाई) शवों को दफ़नाते हैं? सबूत माँगा तो इसाई होने पर अफवाह का ट्वीट मिला। पत्रिके को पैट्रिक बता कर मूर्ख उत्तर भारतीय संघी समर्थकों का ऊपरी माला चाटा जा रहा था । रंगे हाथ पकड़े जाने पर भी किसी अफवाहबाज ने माफ़ी नहीं माँगी!

केरल के संघी कार्यकर्ताओं की हत्या के समर्थन की अफवाह पर उनकी पत्रिका के एक रेखाचित्र को पेश किया गया! मैंने पूछा कि यह तो ओणम विवाद का रेखाचित्र है तो अफवाहबाज फ़रार! आज नये हथियार आगे किये गये हैं! रवीश कुमार के एक फ़र्ज़ी बयान को (जिसमें वे मोदी जी को गुंडा कह रहे हैं) उड़ाया गया जिसे ख़ुद रवीश ने अपने ब्लाग और पोस्ट से चुनौती दे दी कि साबित करो कि यह फोटोशाप नहीं है! इसके बाद इसी तर्ज़ के कुछ नये चुटकुले दरपेश हैं ! संघियों झूठ के पैर नहीं होते ! बूसी बसिया।

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Avinish Mishra : समर शेष है। कोई समाज कब शिकारी बन जाता है? और कब कबिला से निकलकर चांद पर पहुँच जाता है. ये चंद लम्हों का खेल नहीं है.. मानव सभ्यता का ये विकास वर्षों के अनेक घटना/खोज/रिसर्च के बाद हुआ है। हम मानव बर्बरता से सभ्यता की ओर आएँ. इतना ही नहीं भारत सभ्यता और संस्कृति में पूरे विश्व धरोहर में सबसे आगे रहा।

जरा सोचिए! महमूद गजनी से लेकर अंग्रेज तक और गौरी से लेकर मुगल सल्तनत तक ना जाने कितने लूटेरे भारत आए. अपना सम्राज्य स्थापित किए. सभ्यता को कुछ हद तक नष्ट भी करने की पूरी कोशिश की. मगर हमारी सनातन सभ्यता जस की तस रही. वसुधैव कटुंबकम का ध्येय अटल रहा. मगर आजादी के 70 साल बाद बुद्ध और गांधी के इस देश को क्या हो गया है? एक साल पहले मैंने एक लेख लिखा था सियासत से ज्यादा अब मुझे आम आदमी से डर लगता है. ये बात आज भी प्रासंगिक है.

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जरा सोचिए! एक भीड़ निहत्थे को मारती है और भीड़ का कुछ हिस्सा उस मौत पर जश्न मनाती है. अब सवाल ये की हम कहां जा रहे हैं? सभ्यता से बर्बरता की ओर? भीड़ को कौन लोंग शह दे रहे हैं? वही लोंग जो मौत पर जश्न मना रहे है. समाजवैज्ञानिक रॉस ने कहा था- “भीड़ के लिए जो एक पल नायक होता है वही दूसरे पल पीड़ित हो जाता है।” फ्रांस क्रांति के समय रॉब्सपियर ने भीड़ की सहायता से आतंक राज कायम कर लिया मगर वही भीड़ एक समय उसे गिलस्टीन पर चढ़ा दिया। इस भीड़ को पहचानिये.. इन लोगों को पहचानिये जो दूसरों की मौत पर जश्न मना रहे है? ये कौन लोंग है? क्या ये लोंग आपके अगल बगल में तो नहीं है? क्या ये आपके मरने के बाद जश्न नहीं मनाएँगे? सोचिए! दिनकर ने लिखा है..
समर शेष है, नहीं पाप का भागी केवल व्याध
जो तटस्थ है, समय लिखेगा उसका भी अपराध।

वरिष्ठ पत्रकार शीतल पी. सिंह और अविनीश मिश्रा की एफबी वॉल से.

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