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सियासत

सीबीआई में गैंगवार की इनसाइड स्टोरी क्या है?

Girish Malviya 

सीबीआई : एन इनसाइड स्टोरी…

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2013 में सुप्रीम कोर्ट ने सीबीआई को ‘पिंजरे में बंद तोता’ और ‘मालिक की आवाज़’ बताया था. ऐसा नही है कि मोदी राज में कुछ परिवर्तन आया. परिस्थितियां आज भी वही हैं. लेकिन कल एक अभूतपूर्व घटनाक्रम सामने आया है.

केंद्रीय जांच ब्यूरो (सीबीआई) ने अपने ही नंबर दो अधिकारी राकेश अस्थाना के खिलाफ घूस लेने के मामले में एफआईआर दर्ज की है. ऐसा उन्होंने अपने नम्बर एक अधिकारी यानी सीबीआई प्रमुख आलोक वर्मा के कहने पर किया है. इस प्रकरण की जांच सीबीआई के नम्बर तीन के अधिकारी कर रहे हैं. यानी सीबीआई के तीनों आला अफसर आपस में ही उलझे हुए हैं. इसके कारण ऐसे ऐसे कारनामे सामने आ रहे हैं कि सरकार की बहुत भद्द पिट रही है.

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राकेश अस्थाना पर आरोप है कि मीट कारोबारी मोईन कुरैशी से जुड़े एक मामले में क्लीनचिट देने के लिए उन्होंने रिश्वत ली है. मोइन कुरैशी एक मीट कारोबारी हैं जो कि अगस्त, 2016 में गिरफ्तार हुए थे. उन पर आरोप था कि वे संदिग्ध लोगों को राहत दिलाने के लिए सीबीआई डायरेक्टर के नाम पर पैसा वसूलते थे. इसके पहले उन पर 6 मामलों में अलग-अलग जांच चल रही है. अब अन्दर ही अंदर क्या ग़जब के खेल चल रहे हैं, यह भी समझिए. अस्थाना जी 1984 बैच के गुजरात कैडर के अधिकारी हैं. उन्होंने ही गोधरा प्रकरण की शुरुआती जांच का नेतृत्व किया था. इसलिए वह मोदी जी के पसंदीदा अधिकारी हैं. इसीलिए एफआईआर दर्ज होने के बाद भी पीएमओ के हस्तक्षेप के चलते अस्थाना जी की गिरफ्तारी टाल दी गई है.

मोदी जी के कहने पर ही सीबीआई में उन्हें नम्बर 2 यानी स्पेशल डायरेक्टर की पोस्ट दी गई है. स्पेशल डायरेक्टर एजेंसी के तहत आने वाले लगभग सभी मामलों की निगरानी करता है. लगभग एक साल पहले प्रशांत भूषण ने राकेश अस्थाना की नियुक्ति को लेकर सुप्रीम कोर्ट में याचिका दाखिल की थी. उन्होंने कहा था कि राकेश अस्थाना का नाम स्टर्लिंग बायोटेक की डायरी में दर्ज है. इस मामले की सीबीआई ने खुद एफआईआर दर्ज की है. इसके बाद राकेश अस्थाना की नियुक्ति कैसे हो सकती है? लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने अस्थाना की सीबीआई में विशेष निदेशक के पद पर नियुक्ति को चुनौती देने वाली याचिका को खारिज कर दिया!

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यहाँ से अस्थाना जी मजबूत होते चले गए. हेलिकॉप्टर घूसकांड की फाइल जो कई महीनों से गृह मंत्रालय में पड़ी थी, उन्हें स्पेशल डायरेक्टर राकेश अस्थाना ने सीबीआई दफ्तर मंगा लिया. सारे विपक्षी दल उनके टारगेट पर थे. उनकी इस ताकत का राज सीवीसी था क्योंकि सीबीआई जैसी एजेंसियों में सीवीसी की हरी झंडी के बाद ही विभिन्न पदों पर नियुक्तियां की जाती हैं. शायद आपको याद होगा कि नीरव मोदी वाले मामले में कोई जांच अधिकारी की नियुक्ति ही नहीं की गयी, ऐसी भी खबरें आयी थीं. खैर सीवीसी प्रमुख केवी चौधरी ने तमाम अटकलों और आशंकाओं को दरकिनार करते हुए सीबीआई में नंबर- 2 की हैसियत रखने वाले स्पेशल डायरेक्टर राकेश अस्थाना की टीम के कुछ अधिकारियों का कार्यकाल बढ़ा दिया था. इससे अस्थाना जी के हौसले बुलंद थे. सीबीआई में राकेश अस्थाना आलोक वर्मा को दरकिनार करते हुए अपना दबदबा बढ़ाते ही जा रहे थे कि आलोक वर्मा ने अचानक कल सौ सुनार की ओर एक लोहार की वाली बात कर दी.

दरअसल सारा झगड़ा गुजराती लॉबी बनाम गैर गुजराती लॉबी का है. आपके दिमाग में एक प्रश्न जरूर आएगा कि प्रधानमंत्री की सीबीआई में हमेशा चलती है तो उन्होंने आलोक वर्मा को सीबीआई प्रमुख बनने ही क्यों दिया? इसका कारण यह था कि सीबीआई निदेशक के चयन के लिए बने ‘कालेजियम’ के सदस्य कुल 3 होते हैं, भारत के मुख्य न्यायाधीश और लोकसभा में विपक्ष के नेता और प्रधानमंत्री. मल्लिकार्जुन खड़गे ओर जस्टिस खेहर के आगे प्रधानमंत्री की ज्यादा चली नहीं और उन्हें आलोक वर्मा को सीबीआई प्रमुख बनाना पड़ा.

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अब पेंच यहाँ फंसा कि आलोक वर्मा मोदी की बात नहीं सुन रहे थे. यद्यपि उनकी नियुक्ति मोदी ने खुद की थी. मोदी भी उनसे बहुत नाराज हैं और चाहते हैं कि उनकी छुट्टी हो मगर प्रधानमंत्री उनको बर्खास्त नहीं कर सकते. उनका 2 वर्ष का निश्चित कार्यकाल है जो जनवरी मे खत्म होने वाला है. लेकिन प्रत्यक्ष रूप में वह कुछ कर नहीं सकते. सिर्फ जनवरी का इंतजार करने के सिवाय. सच कहें तो जनवरी से भी कोई खास उम्मीद नहीं है क्योंकि चीफ जस्टिस अब गोगोई जी हैं और विपक्ष के नेता मल्लिकार्जुन खड़गे. इसलिए इस बार भी उनका दबाव काम नहीं आयेगा. प्रधानमंत्री मोदी 1984 बैच के आईपीएस अधिकारी योगेश चन्द्र मोदी को अगला सीबीआई प्रमुख बनाना चाहते हैं जो 2002 के गुजरात दंगों के जांच दल में रह चुके हैं. इस कारण उनके विश्वासपात्र हैं. वैसे यह सब आगे की बातें हैं लेकिन कल जो सीबीआई से जुड़े टॉप ब्यूरोक्रेट्स की थुक्का फजीती सामने आई है वो मोदी जी के तथाकथित भ्रष्टाचार मुक्त प्रशासन की पोल खोलने के लिए काफी है.

Samar Anarya : मोदी देश के (सच में) ऐसे पहले प्रधानमंत्री बने जिनके राज में सीबीआई निदेशक आलोक वर्मा सीबीआई विशेष निदेशक राकेश अस्थाना पर 3 करोड़ रुपये की घूस खाने का आरोप लगा रहे हैं और अस्थाना वर्मा पर! मोदी देश के ऐसे भी पहले ही प्रधानमंत्री हैं जिनके राज में महीनों से संस्था की ऐसी छीछालेदर कर रहे होने के बावजूद दोनों अधिकारी अपने पदों पर जमे हुए हैं! नए भारत में स्वागत है! Modi becomes 1st ever PM of India to see CBI Director accusing CBI Special Director of taking Rs 3 Crore bribe- and Special Director throwing the charge back on Director himself! Modi is also 1st ever PM to see both the officers then continuing in their posts!

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Vijay Shanker Singh : सीबीआई का वर्तमान विवाद प्रशासन का गुजरात मॉडल है। जी वही गुजरात मॉडल जहां के अंदाज़ ए हुक़ूमत की एक बानगी देखिये। जहां, एक वरिष्ठ आईएएस और आईपीएस से सिर्फ निजी हित के लिए किसी महिला की जासूसी करायी जाती है। जहां कुछ चहेते आईपीएस से मुठभेड़ के नाम पर हत्या कराई जाती है और फिर वह आईपीएस 6 साल जेल में रहता है और जब किसी जुगाड़ से जमानत पाकर जेल से निकलता है तो वह खुद को रत्नाकर से बदला हुआ वाल्मीकि मान बैठता है। जहां एक आईपीएस अफसर के पीछे सरकार इतनी पड़ जाती है कि जैसे कानून का पालन न करा कर, वह निजी दुश्मनी और खुन्नस निकाल रही हो, क्योंकि उस अफसर ने सरकार के विधि विरुद्ध आदेश को मानने से कभी इनकार कर दिया था। जहां दंगों को दबाने पहुंची फौज को शहर में काम करने के लिये संसाधन नहीं मुहैया कराए जाते हैं। जहां एक जज को षडयंत्र कर के सिर्फ इस लिये रास्ते से हटा दिया जाता है कि वह एक महत्वपूर्ण व्यक्ति के अपराध की सुनवाई कर रहा था और जिसे खरीदा नहीं जा सका था। शासन, प्रशासन का यह मॉडल देश के लिये हानिकारक है। यह एक प्रकार का संगठित अपराधतंत्र है।

आर्थिक और राजनीतिक विश्लेषक गिरीश मालवीय, अविनाश पांडेय उर्फ समर अनार्या और विजय शंकर सिंह की एफबी वॉल से.

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