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सियासत

क्या कोई कामरेड या मार्क्सवादी मुझे ये बताएगा कि ….

Yashwant Singh : क्या कोई कामरेड या कोई मार्क्सवादी ये बताएगा मुझे कि जो मैं जानवरों, पंछियों, मछलियों, कीटों, पतंगों, गहरे समुद्री जीवों, अति बर्फीले इलाके के जंतुओं, अतिशय उड़ान भरने वाले प्राणियों.. मतलब ये कि जलचर, थलचर, उभयचर, हवा चर, ” चराचर 🙂 ” …. आदि इत्यादि को लेकर तमाम तरह के प्रोग्राम ढेर सारे चैनलों यथा डिस्कवरी, डिस्कवरी साइंस, एनजीसी, एनीमल प्लानेट, हिस्ट्री आदि इत्यादि पर देखता समझता सोचता रहता हूं, वह कहीं कोई मार्क्सवादी भटकन, अवमूल्यन, पलायनवाद, प्लैटोनिकवाद आदि इत्यादि तो नहीं ?

<p>Yashwant Singh : क्या कोई कामरेड या कोई मार्क्सवादी ये बताएगा मुझे कि जो मैं जानवरों, पंछियों, मछलियों, कीटों, पतंगों, गहरे समुद्री जीवों, अति बर्फीले इलाके के जंतुओं, अतिशय उड़ान भरने वाले प्राणियों.. मतलब ये कि जलचर, थलचर, उभयचर, हवा चर, '' चराचर :) '' .... आदि इत्यादि को लेकर तमाम तरह के प्रोग्राम ढेर सारे चैनलों यथा डिस्कवरी, डिस्कवरी साइंस, एनजीसी, एनीमल प्लानेट, हिस्ट्री आदि इत्यादि पर देखता समझता सोचता रहता हूं, वह कहीं कोई मार्क्सवादी भटकन, अवमूल्यन, पलायनवाद, प्लैटोनिकवाद आदि इत्यादि तो नहीं ?</p>

Yashwant Singh : क्या कोई कामरेड या कोई मार्क्सवादी ये बताएगा मुझे कि जो मैं जानवरों, पंछियों, मछलियों, कीटों, पतंगों, गहरे समुद्री जीवों, अति बर्फीले इलाके के जंतुओं, अतिशय उड़ान भरने वाले प्राणियों.. मतलब ये कि जलचर, थलचर, उभयचर, हवा चर, ” चराचर 🙂 ” …. आदि इत्यादि को लेकर तमाम तरह के प्रोग्राम ढेर सारे चैनलों यथा डिस्कवरी, डिस्कवरी साइंस, एनजीसी, एनीमल प्लानेट, हिस्ट्री आदि इत्यादि पर देखता समझता सोचता रहता हूं, वह कहीं कोई मार्क्सवादी भटकन, अवमूल्यन, पलायनवाद, प्लैटोनिकवाद आदि इत्यादि तो नहीं ?

कहीं कोई पूंजीवादी, सामंती, अर्ध पूंजीवादी अर्ध सामंती, कोलोनियल, उपनिवेशवादी, साम्राज्यवादी, अफीमवादी, चिरकुटवादी, घटियावादी आदि इत्यादि विचारधारा को बढ़ाने वाला तो नहीं…? क्योंकि आजकल मेरा मन दिल दिमाग मनुष्य सेंटर्ड टीवी प्रोग्राम्स से बहुत परे जा चुका है… मुझे दुनिया भर के जंगलों, समुद्रों, आसमानों में रहने वाले गैर-मनुष्यों के बारे में जानने सुनने देखने को लेकर भयंकर ललक पैदा हो गई है और जब मैं उनको देख समझ के खुद के यानि मनुष्यों के बारे में सोचता हूं तो लगता है कि यार…. धरती ब्रम्हांड सृष्टि आदि इत्यादि अलग थलग नहीं.. सब एक लय धुन ताल में चल रहे हैं… जिसे समझ पाना वैसे तो बड़ा मुश्किल है लेकिन जो समझ लेगा वो कतई किसी को समझा नहीं सकता कि उसने समझा क्या है… सिर्फ तटस्थ आनंद और तटस्थ दुख या दोनों एक एक करके, से भरा रह सकता है. ये दोनों ही परम आनंद के दो पहिए, दो खंभे, दो लेयर हैं, जो मिलजुल कर एक स्पार्क, एक तटस्थता, एक मुक्ति पैदा करते हैं…. और ये दो हैं, तभी परमआनंद यानि परमानंद है..  🙂

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भड़ास के एडिटर यशवंत सिंह के फेसबुक वॉल से.

उपरोक्त स्टेटस पर आए कुछ कमेंट इस प्रकार हैं…

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Niraj Kumar Ranjan Meri bhi manodasha kuchh kuchhh aap se milti julti hai….

Abbhay Pratap Singh Saath me aastha channel to nahi dekhte aap ?

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Yashwant Singh आस्था संस्कार आदि इत्यादि धार्मिक चैनलों के कुछ कुछ भजन गीत संगीत अच्छे लगते हैं, जब कभी गल्ती से इन पर रिमोट की सुई पहुंच जाती है. वैसे, इन चैनलों का विजिटर नहीं हूं, लेकिन कोई कुछ समझाता हुआ मिलता है तो सुन लेता हूं .. जैसे आपको पढ़ लिया.. कई लोगों को पढ़ता रहता हूं, सुनता रहता हूं… वैसे ही

ठा. कृष्ण प्रताप सिंह Abbhay Pratap Singh Baba live sunna chaahenge …. Uthenge nahi ye bhakt ka waada hai baba

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Rakesh Mishra aap jane ya na jaane but http://www.countercurrents.org/ulfkotte171014.htm
“The CIA Owns Everyone Of Any Significance In The Major Media” By Eric…
countercurrents.org

Pankaj Singh स्वामी यशवन्तानन्द परमहंस भड़ासवाले़़़ …कैसे हो ? शुभकामनाएँ । कभी मिलें तो बातें हों ।

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Pradeep Sharma वाह ह्रदय परिवर्तन…एक बार मिलो फिर अच्छी गुफ्तगू होगी आपसे दादा..)

Yashwant Singh Pankaj Singh भैया, आपका आशीर्वाद है। कल आपको रिंग करता हूँ। लव यू।

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Pramod Shukla समय रहते कामरेड भाइयों से राय लेने का फैसला कर के आपने पूर्ण परिपक्वता का परिचय दिया है….. यह सुखद है..

Madhav Tripathi सिंह साब इतना ही कहूँगा की घर बार छोड़ के ये सब मजे सच में लिए जा सकते है

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Shriniwas Rai Shankar सब एक लय धुन ताल में चल रहे हैं। सही कह रहे हैं- और परमानंद वाह !

Rakesh Srivastava आपका जवाब नहीं .. आप कुछ कमेंट करने लायक भी नहीं छोड़ते

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