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सियासत

राष्ट्रवादी युग में भारत एशिया में भ्रष्टाचार में नम्बर एक पर पहुंच गया है!

केपी सिंह-

एक पत्थर तो तबियत से उछालो यारों… ट्रांसपेरेन्सी इण्टरनेशनल के सर्वे के अनुसार भारत में 89 प्रतिशत लोग भ्रष्टाचार को सबसे बड़ी समस्या मानते हैं। 1989 में वीपी सिंह के नेतृत्व वाले जनता दल को लोगों ने सिर्फ तत्कालीन सरकार के प्रति बोफोर्स घोटाले की वजह से नाराज होकर वोट नहीं दिया था बल्कि वीपी सिंह के उस इतिहास की बदौलत यह समर्थन मिला था कि वे ईमानदारी की व्यवस्था के लिये प्रतिबद्ध हैं क्योंकि उन्होंने केन्द्रीय वित्त मंत्री रहते हुये इसका बखूबी प्रदर्शन किया था। साथ ही सिद्धान्तों के लिये कुर्सी त्यागने का उदाहरण भी वे उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री रहते प्रदर्शित कर चुके थे। लोगों को उम्मीद थी कि सरकार की बागडोर उनके हाथ में सौपने से भ्रष्टाचार का खात्मा हो जायेगा। यह दूसरी बात है कि जनता दल भानुमती का पिटारा था जिसमें शामिल ज्यादातर नेताओं का मूल्यों की राजनीति में वीपी सिंह जैसा विश्वास नहीं था। नतीजतन उन्होंने वीपी सिंह को सफल नहीं होने दिया।

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उनके बाद भी भ्रष्टाचार को समाप्त करने की अपेक्षा जनमानस में शीर्ष पर रही। भ्रष्टाचार खत्म करने और सामाजिक न्याय के बीच समानुपाती सम्बन्ध सिद्ध नहीं हो सका। सामाजिक न्याय का मुददा ज्यों ज्यों प्रचण्ड हुआ त्यों त्यों भ्रष्टाचार का मुद्दा गौण होता चला गया। फिर भी लोगों ने स्वच्छ छवि वाले नेताओं को तरजीह देने की मानसिकता नहीं बदली। अटल बिहारी वाजपेई का प्रधानमंत्री बनना इसी स्वतःस्फूर्त जनाकांक्षा का परिणम था। उस जमाने में गुड गवर्नेन्स का मुद्दा उछाला गया था जिसका अर्थ भी भ्रष्टाचार मुक्त व्यवस्था से समझा गया।

डा. मनमोहन सिंह की सरकर के खिलाफ जनाक्रोश का विस्फोट अन्ना हजारे के आन्दोलन की वजह से हुआ जिससे एक बार फिर यह तथ्य सामने आया कि लोग भ्रष्टाचार के मुददे के प्रति आज भी कितने संवेदनशील हैं जिसने सिस्टम को तबाह कर दिया है। जब कोई सिस्टम ही नहीं होगा तो काहे की गवर्नेन्स। भ्रष्टाचार खत्म हो, यह धारणा मांग बढ़ती जा रही थी। जिन नेताओं पर व्यवस्था को ठीक करने का दारोमदार है वे सबसे ज्यादा धन लोलुप हैं। इसके चलते यह पेशकश होने लगी कि पार्टियों की गुलामी करके वोट देने के ट्रेन्ड की बजाय लोगों को चुनाव में प्रत्याशियों पर ध्यान लगाना चाहिये। पार्टी कोई भी हो, प्रत्याशी वही चुना जाये जो ईमानदारी व जनसेवा में विश्वास रखता हो। इसके लिये कई जगह मतदाताओं के संगठन बनाकर उनकी राय से ईमानदार प्रत्याशियों के 2-3 नामों का पैनल बनाने और उन्हीं में से खड़े किये जाने वाले उम्मीदवार को वोट देने की वकालत लोगों के सामने की जाने लगी।

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पर यह सिलसिला आगे बढ़ता, इस बीच भाजपा ने नये नेतृत्व और नई रणनीति के साथ सत्ता में पहुंचने का अभियान छेड़ दिया। इसके लिये उन्हें नेतृत्व की पंक्ति में आगे लाया गया जिनका कोई परिवार न हो क्योंकि आम तौर पर लोग परिवार और अपनी आने वाली पीढियों की समृद्धि की लालसा में ही भ्रष्टाचार की ओर उन्मुख होते हैं। भ्रष्टाचार का मुद्दा इस क्रम में राष्ट्रवाद में विलीन कर दिया गया। देश की सेवा और सुरक्षा जिसका लक्ष्य होगा वह भ्रष्टाचार को पनपने नहीं देगा, यह विश्वास अपनी जगह गलत भी नहीं था।

लेकिन क्या ऐसा हुआ। राष्ट्रवादी युग में भारत एशिया में भ्रष्टाचार में नम्बर एक पर पहुंच गया है। ट्रांसपेरेन्सी इण्टरनेशनल की रिपोर्ट कहती है कि 39 प्रतिशत लोगों को अपना जायज काम भी कराने के लिये भारत में घूस देनी पड़ती है। यह कोई रहस्य नहीं है और न ही इसकी पड़ताल के लिये बहुत मशक्कत की जरूरत है। आज नेता, सरकारी अधिकारी और कर्मचारी व अन्य गलत काम करने वाले जिस तरह से रातों रात करोड़पति और अरबपति हो रहे हैं उससे भ्रष्टाचार का देश में सिर चढकर बोलना दिन के उजाले की तरह साफ है।

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वर्तमान सरकार की कोई इच्छाशक्ति भी ऐसी नहीं दिखती जिससे भ्रष्टाचार खत्म हो। दरअसल भ्रष्टाचार अब सत्ता का खेल बन गया है। सत्तारूढ दल ने मान लिया है कि सारी जनता और समाज खुद ही भ्रष्ट है इसलिये चुनाव जीतने को अच्छे काम कराने के भरोसे रहने की बजाय उन हथकण्डों को आजमाना जरूरी है जिनमें अकूत दौलत खर्च होती है। राज्यों में सरकार बनाने, बिगाड़ने के खेल में भी भाजपा अंधाधुन्ध पैसा बहाने में संकोच नहीं करती जिसकी व्यवस्था भ्रष्टाचार को संरक्षण दिये बिना नहीं हो सकती है। उसे अपने विधायकों और सांसदों की लूटखसोट पर भी इसलिये रहम करना पड़ता है क्योकि उसको मालूम है कि वे अगर पैसे की व्यवस्था नहीं रखेंगे तो अगला चुनाव कैसे लड़ पायेंगे।

K.P. Singh
Tulsi vihar Colony ORAI
Distt – Jalaun (U.P.) INDIA
Whatapp No-9415187850

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