अब संजय गुप्ता के बंदरों पर तरस आने लगा है। क्योंकि उनकी क्षुद्रता मौलिक नहीं, आरोपित लगने लगी है। ठीक वैसे, जैसे सूर्य के प्रकाश से चंद्रमा प्रकाशित होता है। ये मूल रूप से दुष्ट नहीं हैं। मालिकों ने अपनी दुष्टता इन पर आरोपित की है। ये दुष्टता की पौध नहीं हैं। ये दुष्टता के बीज भी नहीं हैं। ये तो भूमि हैं। लावारिस भूमि। जो मालिकों के हाथ लग गई है। मालिकों को पौध की नहीं, बीज की नहीं अलबत्ता भूमि की तलाश होती है। ये हर शहर, नगर और गांव में सिर्फ भूमि तलाशते रहते हैं। भूमि अधिग्रहण विधेयक मालिकों की खुराफात का ही एक परिणाम है। जिसके कुचक्र में फंस गए हैं प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी। और नष्ट होने लगा है उनका आभामंडल। ये मालिक लोग प्रधानमंत्री से किसानों की भूमि ले लेंगे और छीन लेंगे प्रधानमंत्री की भूमि, जिसे उन्होंने बड़ी मेहनत से तैयार की है। इसलिए प्रधानमंत्री पर भी तरस आता है, जो बिक गया है बनियों के हाथ।
तो दोस्तो, यह सब बंदरों के लिए नहीं और प्रधानमंत्री के लिए भी नहीं है, क्योंकि वे जहां पहुंच गए हैं, वहां से उनका लौटना असंभव है। लेकिन अभी आपका कुछ नहीं बिगड़ा है। आप इन बनियों के लिए भूमि कतई न बनें, क्योंकि इसकी साजिश बहुत गहराई से चल रही है। आपके मन की भूमि पर विचारों का कैसा भी पौधा कब रोप दिया जाए, कुछ ठीक नहीं है। उसके लिए कुछ लोगों को हिप्नोटाइज करके छोड़ दिया गया है। उनसे आप सतर्क रहें। उनके किसी भी भुलावे में न आएं।
आप सिर्फ इंतजार करें। इन साजिशकर्ताओं के बहुत बुरे दिन आने वाले हैंं। उसकी पुख्ता व्यवस्था कर दी गई है। आपको करना सिर्फ इतना है कि किसी भी साजिश का शिकार नहीं होना है। कर्मचारियों में फूट नहीं पड़ने देनी है। एकजुट रहना है। अभी हमारी लड़ाई कर्मचारी कर्मचारी के बीच चल रही है। इस लड़ाई से मुक्त रहना है। आखिर हम कर क्या रहे हैं- विष्णु त्रिपाठी से लड़ रहे हैं, नीतेंद्र श्रीवास्तव से लड़ रहे हैं और लड़ रहे हैं रमेश कुमार कुमावत से। ये हमारे असली दुश्मन नहीं हैं। जो असली दुश्मन है, वह ठाट से मजे ले रहा है और सो रहा है चैन की नींद। हमें उसकी नींद हराम करनी है, जो अपने पुत्र के विवाह में सैकड़ों करोड़ रुपये एक दिन में उड़ा देता है और प्रश्न छोड़ देता है कि कर्मचारियों के पुत्र और पुत्रियों के विवाह कैसे होंगे। फिर भी महान बनने का दावा करता है। पर हमारा एकमात्र लक्ष्य है-मजीठिया। और हम मजीठिया लेकर रहेंगे। हमें तीन बंदर नहीं रोक पाएंगे। और बंदरों को बता देना है-तुम बंदर हो, सिर्फ बंदर। इस जन्म में तुम मनुष्य बन ही नहीं सकते।
श्रीकांत सिंह के फेसबुक वॉल से