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भारत में अल्जाइमर : कुछ याद नहीं रहता तो इस बढ़ते खतरे को समझें!

भारत में अल्जाइमर को लेकर लोग इतने गंभीर नजर नहीं आ रहे जितना की होना चाहिए. डिसीज संबंधी जानकारी का अभाव, समय रहते प्रॉब्लम्स को न समझ पाना, बीमारी को हल्के में लेना इत्यादि समेत इसके कई कारण हो सकते हैं. सबसे बड़ा कारण जानकारी और जागरूकता का है. हालांकि हमें इससे सतर्क रहने की जरूरत है क्योंकि भारत में इसका विस्तार तेजी से देखने को मिल रहा है.

20 अप्रैल 2022 को यूनिवर्सिटी ऑफ मिशीगन की एक अध्यन रिपोर्ट के अनुसार, भारत में अल्जाइमर रोग की व्यापकता अमेरिका में 4 मिलियन की तुलना में 3 मिलियन लोगों पर है. फेल्डमैन के अनुसार, 2050 तक वर्तमान एडी प्रसार में तीन गुना वृद्धि मुख्य रूप से भारतीय आबादी द्वारा होने की उम्मीद है. इसमें कहा गया है कि, मिशिगन विश्वविद्यालय भारत में अल्जाइमर रोग और संबंधित मनोभ्रंश पर जनसंख्या-आधारित अध्ययन शुरू करने पर विचार कर रहा है.

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भारत में अल्जाइमर 10 सबसे घातक बीमारियों में शुमार है. बताया जाता है कि अल्जाइमर एक अपक्षयी मस्तिष्क की स्थिति है जो सोच, व्यवहार और स्मृति को बाधित करती है. भारत में इससे प्रभावित लोगों की संख्या लगातार बढ़ रही है. एक अनुमान के मुताबिक, 2022 में भारत में लगभग 4 मिलियन लोग अल्जाइमर रोग से पीड़ित थे और आने वाले सालों में यह संख्या बढ़ने की उम्मीद है. हालांकि उपर और नीचे के अध्ययन की रिपोर्टों में आंकड़ों की भिन्नता जरूर है, लेकिन खतरा बराबर बढ़ रहा है.

वर्तमान में, अल्जाइमर का कोई इलाज नहीं है. लेकिन दवा और गैर-दवा उपचार दोनों संज्ञानात्मक और व्यवहारिक लक्षणों के साथ मदद कर सकते हैं. डिमेंशिया वाले लोगों के लिए रोग के पाठ्यक्रम को बदलने और जीवन की गुणवत्ता में सुधार के लिए शोधकर्ता नए उपचार की तलाश कर रहे हैं. मेडिकल अध्ययनों में अल्जाइमर के सात चरण बताये जाते हैं.

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अल्ज़ाइमर के लक्षण
अल्ज़ाइमर रोग का प्राय: पहला लक्षण है, याद करने या रखने में दिक्कत. जैसे-जैसे हम उम्रदराज होते हैं, हमारे मस्तिष्क में भी बदलाव होते हैं, और हमें कई बातों को याद करने में कभी कभी समस्याएँ आ सकती हैं. परंतु अल्ज़ाइमर रोग और अन्य प्रकार के डिमेंशिया में स्मृतिलोप तथा अन्य लक्षण उत्पन्न होते हैं जो रोजमर्रा जीवन में कठिनाई पैदा करते हैं. जैसे..

आसान व सरल लगने वाले कार्यों को पूरा करने में मुश्किल होना.
समस्याओं को हल करने में कठिनाई आना.
मनोदशा और व्यक्तित्व में बदलाव; दोस्तों एवं परिवार से अपने को अलग रखने की प्रवृत्ति.
संवाद-संप्रेषण में परेशानी, चाहे लिखित रूप में हो या बोलकर.
जगहों, लोगों और घटनाओं के बारे में विभ्रम पैदा होना.
देखने संबंधी बदलाव, जैसे कि तस्वीरों या छवियों को समझने में दिक्कत.

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इन परिवर्तनों का व्यक्ति द्वारा अनुभव किए जाने से पहले ही दोस्त और परिवारजन देख सकते हैं. यदि आप या आपका कोई परिचित डिमेंशिया के संभावित लक्षणों का अनुभव कर रहा हो तो यह महत्वपूर्ण है कि कारण का पता लगाने के लिए चिकित्सीय मूल्यांकन करवाएँ

याद्दाश्त कम होने का कारण अल्ज़ाइमर नहीं होता है
यदि आप या आपका कोई परिचित याददाश्त या डिमेंशिया के अन्य लक्षणों की समस्याओं का अनुभव कर रहा हो तो चिकित्सक को दिखाएँ. इन लक्षणों की कुछ वजहें, जैसे कि दवाओं के दुष्प्रभाव या विटामिन की कमी, ठीक हो सकती हैं.

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अल्ज़ाइमर का निदान/बचाव
रिपोर्ट के अनुसार, अल्ज़ाइमर पता लगाने का कोई आसान तरीका नहीं है. निदान के लिए एक संपूर्ण चिकित्सा जाँच की जरूरत होती है. लक्षणों की वजहें जानने के लिए ब्लड टेस्ट, मानसिक अवस्था परीक्षण और ब्रेन इमेजिंग का उपयोग किया जा सकता है. जिनमें..

आपके परिवार का चिकित्सीय इतिहास
न्यूरोलॉजिकल परीक्षण
याददाश्त और सोचने के मूल्यांकन हेतु संज्ञानात्मक परीक्षण
रक्त परीक्षण (लक्षणों की अन्य वजहों की संभावना को दूर करने के लिए)
ब्रेन इमेजिंग

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हालांकि चिकित्सक यह तो पता लगा सकते हैं कि क्या किसी व्यक्ति को डिमेंशिया है, किंतु किस प्रकार का डिमेंशिया है यह पता लगाना मुश्किल हो सकता है. कम उम्र में होने वाले अल्ज़ाइमर में लक्षणों का ग़लत निदान अधिक आम है.

रोग प्रक्रिया की शुरुआत में ही सटीक निदान प्राप्त करना महत्वपूर्ण है क्योंकि इससे उपलब्ध उपचारों का लाभ मिलने की संभावनाएँ बढ़ जाती हैं, जिससे जीवन की गुणवत्ता में सुधार हो सकता है. चिकित्सीय परीक्षणों यानी क्लीनिकल ट्रायल और चिकित्सीय अध्ययनों में भागीदारी का अवसर मिल सकता है.

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