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दैनिक जागरण, बिहारः चौपाल की आड़ में विज्ञापन का खेल

खबर की आड़ में विज्ञापन यानी पेड न्यूज कैसे छापी जाती है और ग्रामीण पाठकों की आंखों में धूल झोंक कर उन्हें मुर्ख कैसे बनाया जाता है यह कोई दैनिक जागरण से सीखे। दैनिक जागरण, बिहार के जिला संस्करणों में इन दिनों ‘चौपाल’ नाम से छप रहा कालम इसका उदाहरण है। इसमें कॉलम में छपने के लिए पंचायती राज जनप्रतिनिधियों को स्थानीय संवाददाता को 2500 रुपये देकर 500 अखबार अनिवार्य रुप से बुक कराने होते हैं। इसके एवज में उनके फोटो के साथ गांव की समस्याएं छपती हैं। यह समस्याएं कम चापलूसी भरी खबरें ज्यादा लगती हैं। इसके पीछे अखबार प्रबंधन की नीति अन्य अखबारों की तुलना में जागरण के प्रसार में अप्रत्याशित उछाल दिखाना है। साथ ही पाठकों का दायरा भी बढ़ाना है। लेकिन दीगर बात यह है कि भले ही ‘चौपाल’ के कारण अखबार का छपना ज्यादा हो रहा है लेकिन प्रसार नहीं बढ़ रहा। क्योंकि रिपोर्टर अखबारों का बंडल मंगा कर घर पर ही कबाड़ में फेंक देते हैं या फिर रद्दी में बेंच दिया जा रहा है। इधर, चौपाल की आड़ छप रहे विज्ञापनों से पाठक भी खुद को ठगा सा महसूस कर रहे हैं।

<p>खबर की आड़ में विज्ञापन यानी पेड न्यूज कैसे छापी जाती है और ग्रामीण पाठकों की आंखों में धूल झोंक कर उन्हें मुर्ख कैसे बनाया जाता है यह कोई दैनिक जागरण से सीखे। दैनिक जागरण, बिहार के जिला संस्करणों में इन दिनों 'चौपाल' नाम से छप रहा कालम इसका उदाहरण है। इसमें कॉलम में छपने के लिए पंचायती राज जनप्रतिनिधियों को स्थानीय संवाददाता को 2500 रुपये देकर 500 अखबार अनिवार्य रुप से बुक कराने होते हैं। इसके एवज में उनके फोटो के साथ गांव की समस्याएं छपती हैं। यह समस्याएं कम चापलूसी भरी खबरें ज्यादा लगती हैं। इसके पीछे अखबार प्रबंधन की नीति अन्य अखबारों की तुलना में जागरण के प्रसार में अप्रत्याशित उछाल दिखाना है। साथ ही पाठकों का दायरा भी बढ़ाना है। लेकिन दीगर बात यह है कि भले ही 'चौपाल' के कारण अखबार का छपना ज्यादा हो रहा है लेकिन प्रसार नहीं बढ़ रहा। क्योंकि रिपोर्टर अखबारों का बंडल मंगा कर घर पर ही कबाड़ में फेंक देते हैं या फिर रद्दी में बेंच दिया जा रहा है। इधर, चौपाल की आड़ छप रहे विज्ञापनों से पाठक भी खुद को ठगा सा महसूस कर रहे हैं।</p>

खबर की आड़ में विज्ञापन यानी पेड न्यूज कैसे छापी जाती है और ग्रामीण पाठकों की आंखों में धूल झोंक कर उन्हें मुर्ख कैसे बनाया जाता है यह कोई दैनिक जागरण से सीखे। दैनिक जागरण, बिहार के जिला संस्करणों में इन दिनों ‘चौपाल’ नाम से छप रहा कालम इसका उदाहरण है। इसमें कॉलम में छपने के लिए पंचायती राज जनप्रतिनिधियों को स्थानीय संवाददाता को 2500 रुपये देकर 500 अखबार अनिवार्य रुप से बुक कराने होते हैं। इसके एवज में उनके फोटो के साथ गांव की समस्याएं छपती हैं। यह समस्याएं कम चापलूसी भरी खबरें ज्यादा लगती हैं। इसके पीछे अखबार प्रबंधन की नीति अन्य अखबारों की तुलना में जागरण के प्रसार में अप्रत्याशित उछाल दिखाना है। साथ ही पाठकों का दायरा भी बढ़ाना है। लेकिन दीगर बात यह है कि भले ही ‘चौपाल’ के कारण अखबार का छपना ज्यादा हो रहा है लेकिन प्रसार नहीं बढ़ रहा। क्योंकि रिपोर्टर अखबारों का बंडल मंगा कर घर पर ही कबाड़ में फेंक देते हैं या फिर रद्दी में बेंच दिया जा रहा है। इधर, चौपाल की आड़ छप रहे विज्ञापनों से पाठक भी खुद को ठगा सा महसूस कर रहे हैं।

 

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एक पत्रकार द्वारा भेजे गए पत्र पर आधारित।

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