शर्म से डूब मरने की बात है। हिंदी के सबसे बड़े अख़बार होने का दावा करने वाले दैनिक जागरण ने जयपुर की माटी में खिलकर, गायकी के उस्ताद बने अहमद हुसैन और मुहम्मद हुसैन को पाकिस्तानी फ़नकार बताया है। यह हाल है पराड़कर जी के शहर वाराणसी की पत्रकारिता का। नाक़ाबिले माफ़ी यह है ग़लती, क्योंकि सवाल किसी वर्तनीदोष या छपाई का नहीं है..इन उस्ताद भाइयों के परिचय में कुछ जोड़ा गया है यानी संपादनकला का परिचय दिया गया है…!
वरिष्ठ पत्रकार पंकज श्रीवास्तव के फेसबुक वॉल से. उपरोक्त स्टेटस पर आए कुछ प्रमुख कमेंट्स इस प्रकार हैं>
Latif Kirmani पंकज जी, दरअसल आजकल के कथित बड़े अख़बारों के बड़े पत्रकार भारतीय मुसलमान नेताओं और कलाकारों के नाम और परिचय से वाकिफ नहीं है या होना नहीं चाहते। नवभारत टाइम्स जैसे अख़बार में जब जामा मस्जिद के शाही इमाम अब्दुल्लाह बुखारी के देहांत की खबर छपी तो तस्वीर उनके बेटे अहमद बुखारी की लगा दी थी बाद में सहयोगी अखबार सांध्य टाइम्स में गलती के लिए खेद प्रकट किया गया। इसी तरह और भी उदाहरण है। जबसे ग़ुलाम अली का शो रद्द हुआ है तबसे पत्रकारों के दिमाग़ में हर मुसलमान फनकार पाकिस्तानी नज़र आता है…भाई हिंदी के पत्रकारों से अनुरोध करूँगा कि वो मुस्लिम फनकारों और नेताओं के बारें में जानकारी के लिए भी अध्ययन कर लिया करें…
Bhim Prakash जब मैंने पहली दफा इनकी ग़जल सुनी तो लगा ये एक ही गा रहे हैं फिर पता चला कि ये तो दो गा रहे हैं।कमाल की ताजगी है इनकी गायकी में।जो इनकी भारतीयता पर प्रश्नवाचक चिन्ह लगा रहे हैं वो सबसे पहले खुद को जान लें फिर दूसरों से कहें।
Abdulwali Shabi इनको हर मुसलमान पाकिस्तानी नज़र आता है.
Aziz Waqaar Khan और आज तीन दिन हो गए इन्होंने अभी तक माफ़ी नही मांगी ।।
Prafulla Prabhakar जागरण के सम्पादक शायद उत्तर प्रदेश से बाहर की कोई जानकारी नहीं रखते….
Jawed Mohd इनको हर मुसलमान पाकिस्तानी नज़र आता है.
Tanweer Farooque यह आजकी नई युग की पत्रकारिता है जहाँ खबर कि गहराई से दुर दुर तक का कोई वास्ता नही है बस छापते जाओ। और इस देश को बाँटते जाओ।
Uttam Singh पत्रकारिता का स्तर दिनों दिन गिरता जा रहा है चाहे वह प्रिन्ट मीडिया हो या इलेक्ट्रॉनिक मीडिया. कमरे में बैठ कर पत्रकारिता की जायेगी तो यही तो मिलेगा. जनाब, यह तो ग़नीमत है, ये लोग तो ये भी लिख सकते थे कि दो ‘पाक आतंकवादी’ ग़ज़ल भी गाते हैं.
Sayed Wajih Ul Haque हम तो दैनिक जागरण की मानसिकता को रोज़ झेलते हैं , कुत्सित मानसिकता के साथ पत्रकारिता होती है।