शहीदे आजम भगत सिंह और उनके साथी राजगुरु सुखदेव को अंधी ब्रिटिश हुकूमत ने 23 मार्च 1931 को तमाम नियम कानूनों की धज्जियां उड़ाते हुए फांसी पे लटका दिया था. इस हुकूमत ने उनको फांसी पर लटकाये जाने की सजा 24 मार्च 1931 को मुकर्रर की थी. पिछले कुछ वर्षों से शहीदे आजम भगत सिंह को लेकर लगातार झूठी कहानियाँ बनाकर दुष्प्रचार किया जा रहा है. पहले तो यह अफवाह फैलाई गयी कि 14 फरवरी को शहीदेआजम भगत सिंह और उनके साथी को फांसी दी गयी. जब यह अफवाह बाजार में चली नहीं तो अब यह नई कहानी बनायी जा रही है कि 14 फरवरी को उनको फांसी की सजा सुनाई गयी थी. यह भी झूठ के सिवाय कुछ नहीं है.
वाराणसी के गिरजाघर चौराहे पर वैलेंटाइन डे के दिन पार्षद रविकान्त विश्वकर्मा ने वैलेंटाइन डे का विरोध करते हुए शहीदे आजम और उनके साथियों की तस्वीर लगाकर यह अपील की थी कि इसी दिन भगत सिंह और उनके साथियों को फांसी की सजा सुनाई गयी थी, इसलिए इस दिन को शोक दिवस के रूप में मनाया जाए. पार्षद महोदय को जानकारी के लिए बताते चलें कि भगत सिंह कभी भी प्रेम के विरोधी नहीं रहे. उन्होंने तो अपने मित्र राजगुरु से प्रेम की चर्चा करते हुए कहा था कि प्रेम हमे ऊंचा उठाता है, हमे लड़ने की नई ताकत देता है, बशर्ते वो प्रेम प्रेम हो. बिना प्रेम के कभी कोई क्रान्ति नहीं हो सकती.
अफ़सोस की बात यह है कि आज के हमारे नेताओं को पढ़ने लिखने की कोई जरूरत नहीं है. जहां तहाँ बैनर टांगकर अपनी छवि बनाने के लिए जनता को गुमराह करते रहते हैं. इन्हें शर्म आनी चाहिए. अगर ऐसा ही चलता रहा तो वो दिन दूर नहीं जब लोगों की स्मृति से इन शहीदों का किया कराया धूमिल हो जाएगा. आज के तथाकथित नेता सस्ती लोकप्रियता पाने के लिए इस तरह की हरकतें बंद करें. अंत में इतना ही कहना चाहते हैं-
वतन की फिक्र कर नादां, मुसीबत आने वाली है
तेरी बर्बादियों के आसार आसमानों में है।
बनारस के पत्रकार भास्कर गुहा नियोगी से बातचीत पर आधारित.
रिपोर्ट : प्रहलाद गुप्ता, वाराणसी
Kuldeep Sidhu
February 16, 2016 at 7:54 am
Kya bhagat singh ko saja sunane se pehle hi fansi par latka diya gaya tha ? Is article se to aisa hi jaan padta hai…. kirpya dusro ki galtiyan dhundhte waqt anpi galtiyo ki or dhyan dijiyega……gustakhi ke liye kshama prarthi hu..