पिछले एक साल में भारत के कई राज्यों में व्हॉट्सऐप (WhatsApp) पर बच्चा चोरी की अफवाहों के कारण भड़की भीड़ ने लगभग २७ मासूम लोगों को पीट-पीटकर हत्या कर दी। लोग यह सोंचने समझने का प्रयास तक नहीं करते की फेक न्यूज़ फेक ही होती है, इस पर संयम बरतने के बजाय, लोग अचानक से आक्रोशित हो उठते हैं और कुछ ऐसा कर बैठते हैं, जिसका परिणाम पूर्णतः भयावह होता है।
फ़र्ज़ी न्यूज़ यानी “फेक न्यूज़” का यह सबसे भयानक एवं कठोर निंदनीय रूप है, लेकिन इसके और भी चेहरे हैं, जो की प्रतिदिन आपके हाथों में पकडे हुए मोबाइल फ़ोन एवं सोशल मीडिया के अन्य विभिन्न माध्यमों से प्रकाश में आ रहे हैं। फेक न्यूज़ या फिर झूठी ख़बर, कभी तो आपके अपने परिचितों के ज़रिये आप तक पहुंचती है, कभी सोशल मीडिया पर छिपे हुए शरारती तत्वों की फैलाई हुई होती हैं। कई बार अपने विचारों या अंधविश्वासों के कारण, लोग फेक न्यूज़ पर भरोसा करते हैं, या फिर जिनके ज़रिये उन तक वह झूठी ख़बर पहुंची है, उन पर भरोसे के कारण ख़बर पर भी लोगों का भरोसा हो जाता है।
लेकिन फेक न्यूज़ का साइड इफ़ेक्ट हर प्रकार से घातक ही होता है, किसी न किसी तरह, लोगों को मार डालना इसका एक बड़ा उदाहरण है। फेक न्यूज़ के कारण कई बार बड़े दंगे तथा सांप्रदायिक तनाव भी भड़कते देखे गए हैं। बड़ी गैर ज़िम्मेदाराना गतिविधि को सामने रखते हुए हमारे समाज में बैठे कुछ शरारती तत्वों के द्वारा जब इस प्रकार की झूटी ख़बरें प्रचारित की जाती हैं, तो समाज और देश दोनों ही को इसका खामयाज़ा भुगतना पड़ता है।
खबर की पुष्टि किये बिना या किसी भी प्रकार की जांच का परिणाम आने से पहले ही, उतावली भीड़ किसी भी मासूम को शक की बिना पर पकड़ कर उसके साथ मनमाना अत्याचार करने लगती है, परिणामस्वरूप मासूम लोगों की निर्दयिता के साथ सरे आम निर्मम हत्या कर दी जाती है, और वहां मौजूद लोग एवं प्रसाशन मूक दर्शक मात्रा बने रह जाते हैं।
हम सभी अपनी ज़िम्मेदारियों को भुला कर, भावनाओ में बहे चले जाते हैं और अपना आप खो बैठते हैं। हद तो तब हो जाती है की घटना स्थल पर भीड़ पर खून सवार दीखता है और उनके द्वारा निर्ममता का उच्तम उदाहरण देखने को मिलता है।
हमारे राजनैतिक प्रतिनिधियों का भी रवैया ऐसे प्रकरणों में चिंतनीय ही दिखाई देता है, जिनके ऊपर समाज को सही राह दिखने की ज़िम्मेदारी होती है वो लोग भी अपने दायित्वों को भुला कर, कई मौक़ों पर अराजकता के साथ खड़े दिखाई देते हैं। हम अच्छे समाज का निर्माण करते करते, कुछ असामाजिक तत्वों के बहकावे में आ कर, अपने ही बीच के लोगों की जान लेने को उतारू हो जाते हैं।
मीडिया, विशेष कर २१ वीं सदी की आधुनिक सोशल मीडिया भी ऐसे मामलों से दूर दिखाई नहीं देता, बल्कि सोशल मीडिया के ज़रिये ही आज कल फेक न्यूज़ का अत्यधिक प्रचार ज़ोर शोर से चल रहा है। सोशल मीडिया के ज़द में पूरी तरह आ चूका आ चूका, आज का हमारा युवा समाज, फेक न्यूज़ के रोग से बुरी तरह प्रभावित हो रहा है। सोशल मीडिया हमारी बेहतरी के लिए उपयोगिता बनता इससे पहले ही, उसका दुरुपयोग धड़ल्ले से होना प्रारम्भ हो गया।
मीडिया के तौर पर हमारी ज़िम्मेदारी हर ख़बर को देख-परखकर ही उसे दर्शकों या पाठकों तक पहुंचाने की होती है, लेकिन जब फेक न्यूज़ वायरल बुखार की तरह फैल जाए, तब यह ला इलाज ही बन जाता है। सोशल मीडिया पर फैलता अफवाहों का जाल समाज के ताने-बाने को बुरी तरह से तहस-नहस कर रहा है। लोग अपनी आँखों पर पट्टी बाँध करव्हाट्सऐप या ऐसे ही दूसरे प्लेटफॉर्मस पर आई झूठी बातों, फर्जी खबरों और अफ़वाहों पर भरोसा कर एक-दूसरे के खून के प्यासे हो रहे हैं। फेक न्यूज़ के दुष्प्रभाव से भीड़ तंत्र आज अपनी सनक के चरम पर है,या क्या पता अभी इस भीड़ का चरम और न जाने, कितने मासूमो की जान लेगी।
लेखक सैयद असदर अली वरिष्ठ पत्रकार हैं। संपर्क : [email protected]