अभी दो दिन पहले शाम को मेरे घर के पास माँट फाटक के समीप एक दो वर्ष की मासूम बच्ची की ट्रक से कुचल कर मौत हो गयी… किसी ने मुझे बताया तो एकदम से काँप उठा मै…. मेरे मुँह से यही निकला कैसे हुआ….पिता बच्ची को डॉक्टर राजेश को दिखा कर स्कूटी से घर जा रहे थे रोड पर जाम लगा हुआ था पिता स्कूटी लेकर लगभग रुक से गए थे तभी किसी का हल्का सा स्कूटी से टकराव हुआ और संतुलन बिगड़ते ही बच्ची गिर गयी और पीछे से आते एक ट्रक से कुचलकर उसकी….
सब कुछ सुनकर अजीब सा हो गया मै गुस्सा भी काफी आया। लेकिन क्या हुआ उससे किसी को क्या फर्क पड़ता है….अरे हाँ आज के अख़बार में निकाल तो दी एक छोटी सी खबर इन कलमकारों ने। पर मुझे तो लगा था कि पुलिस प्रशासन कोई तो कार्यवाही करेगा….. लेकिन मै भूल गया था गूंगा बहरे प्रशासन के पास मेरे द्वारा उठाई गयी समस्याओं के लिए कान नहीं थे तो इस हादसे को देखने के लिए वो आँख कहाँ से लाएंगे….? खैर पुलिस रात में पहुंची बच्ची के पिता के घर पूछने कि एफआईआर करानी है क्या…? लेकिन अब वो पिता किसके खिलाफ एफआईआर लिखाता… उन पुलिस वालों के खिलाफ जो रोड पर लगे हुए जाम को देखकर भी अनदेखा कर देते हैं या उन ढकेल वालों और दुकानदारों के खिलाफ जो फुटपाथ को अपना हक़ समझ कर घेरे बैठे हैं या फिर उन प्रशासनिक अधिकारियों के खिलाफ जो यहाँ से होकर गुजरते तो हैं लेकिन बेपरवाह होकर और कहीं जाम में गाडी फंस जाए तो हैं न उनके सुरक्षाकर्मी….. क्या लिख पाते वो पुलिस वाले इन सबके खिलाफ एफआईआर?
तभी तो उस पिता ने दिल पर पत्थर रखकर मना कर दिया होगा। उसे पता था न कि यहाँ किसी को कोई फर्क नहीं पड़ता…..एक लम्बे समय से मै राया के जाम की समस्या को वरिष्ठ अधिकारीयों के संज्ञान में लाता रहा हूँ लेकिन अब तो शायद मेरे सवालों से भी किसी को फर्क नहीं पड़ता…. तभी तो हाल में राया आये जिलाधिकारी मथुरा से जब यहाँ के स्वास्थ्य केंद्र की बदहाली की समस्या को उठाया तो उसका महीने भर बाद भी कोई निदान नहीं…. हाँ मै तो भूल ही गया शायद उन्हें यहाँ से भी कोई बच्चा चोरी होने का इंतजार रहा होगा…… आखिर फर्क किसे पड़ता है यहाँ पर…..लेकिन हाँ एक बात बता दूँ रात को जब सोने जाएँ ना तो उस मासूम बच्ची के पिता की जगह खुद को रखकर सोचियेगा….. ठण्ड में पसीने न छूट जाएँ तो बताना और फिर तभी महसूस होगा कि फर्क तो पड़ता है भाई…
मोहित गौड़
mohit gaur
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