कूड़े की तरह पड़ी मिली दो दिन की इस बच्ची के लिए है कोई इस धरती पर मददगार?

किस पत्थरदिल मां ने पैदा होते ही इस बच्ची को कूड़े की तरह छोड़ दिया!

देहरादून : लोग अपने बच्चों से इतना प्यार करते हैं कि उनके लिए जान न्योछावर कर लेते हैं. लेकिन कुछ ऐसे लोग भी होते हैं कि जो नवजात के पैदा होने के बाद अगर बच्ची हो जाये तो उसे कूड़े की तरह एक किनारे पर रख लेते हैं.

लोग पूछते हैं, आप भी पूछ लीजियेगा, वैसे वो आसानी से बतायेंगे नहीं

बूढ़ी माताएं यूं ही नहीं वृंदावन के वृद्धाश्रमों में चली आती हैं… बूढ़ी आखों को आपमें अपने बेटा या बेटी की परछाईं दिख गयी तो आप इनके दर्द को सहन न कर पाएंगे

पिछले बरस, अपने पैरों पर खड़ी एक नामी अभिनेत्री ने वृन्दावन के आश्रय सदनों में वृद्ध माताओं की भीड़ पर कहा था कि ‘ये घर छोड़कर यहां आती ही क्यूं हैं?’ उनके इस बयान पर काफी हो-हल्ला मचा। विपक्षी पार्टियों से लेकर आधुनिक समाजसेवी तबके तक से उनके विरोध में आवाजे आयीं। इन आवाजों के बीच उन बंगाली विधवाओं ने भी अपनी बात कही जिनके बारे में वो खुद और लोग कहते हैं कि भगवान की भक्ति के लिये वह वृन्दावन आकर आश्रय सदनों में रहती हैं। सबकी अपनी-अपनी कहानी है, बहुत सारी बातें हैं जिन्हें सोचकर सिवाय आंसुओं के उन्हें कुछ मिलता भी नहीं है। इसलिये सबकुछ भगवान के नाम छोड़कर भगवान के धाम में भक्ति का आश्रय ले रखा है। अकेली जान की गुजर बसर जैसे-तैसे हो ही जाती है। सरकार से मदद मिलती है तो समाजसेवी संस्थाओं से भी कुछ ना कुछ दान मिलता रहता है।

किसी को फर्क पड़ता है क्या : …पिता ने दिल पर पत्थर रखकर एफआईआर कराने से मना कर दिया होगा

अभी दो दिन पहले शाम को मेरे घर के पास माँट फाटक के समीप एक दो वर्ष की मासूम बच्ची की ट्रक से कुचल कर मौत हो गयी… किसी ने मुझे बताया तो एकदम से काँप उठा मै…. मेरे मुँह से यही निकला कैसे हुआ….पिता बच्ची को डॉक्टर राजेश को दिखा कर स्कूटी से घर जा रहे थे  रोड पर जाम लगा हुआ था पिता स्कूटी लेकर लगभग रुक से गए थे तभी किसी का हल्का सा स्कूटी से टकराव हुआ और संतुलन बिगड़ते ही बच्ची गिर गयी और पीछे से आते एक ट्रक से कुचलकर उसकी….

चुनौती कुबूल कर बुजुर्ग हक्कू खांव ने गट्टा लड़ाते हुए यशवंत को दक्खिन दिखा दिया! (देखें वीडियो)

गाजीपुर में अपने बुजुर्ग चरवाहे मित्र हक्कू खांव और उनकी बकरियों के साथ भड़ास के एडिटर यशवंत सिंह.


वे अपना नाम हक्कू खांव बताते हैं. हम लोग मन ही मन मान लेते हैं कि असली नाम हलाकू खान होगा. हमने उनसे कहा भी कि आप अपना नाम गलत बता रहे हैं. शायद हलाकू खान होंगे आप. तो वे समझाए, ”नाहीं बेटा… ई नांव हमार बचपने से हउवे…”.

असल में हम पढ़े लिखे शहरी लोग अपनी जिद्दी अवधारणाओं और आग्रही मानसिकताओं के गुलाम होते हैं, सो जो हम सोचते मानते समझते हैं, उसे ही आखिरी सत्य मानकर दूसरों को सिखाते बताते भरमाते रहते हैं, अपने हिसाब से दूसरों को करेक्ट किया करते हैं. हक्कू खांव अगर हक्कू खांव ही हैं तो क्या फरक पड़ता है हमको आपको. लेकिन हम लोगों को जाने क्यों तुरंत लगा कि इनका नाम कुछ गलत-सा लग रहा है, अधूरा-सा लग रहा है. इसलिए कि हमारे अवचेतन में शायद यह समा गया है कि कोई अगर खुद का नाम हक्कू खांव बता रहा है तो ये पक्का हो गया है कि ये शख्स मुसलमान है… और, अगर ये मुसलमान है तो फिर हक्कू खांव क्यों है… नजदीकी करीबी शुद्ध नाम तो हलाकू खान है… इसे तो हलाकू खान हो जाना चााहिए…

लोकमत प्रबंधन की प्रताड़नाओं ने बुझा दिया एक दीपक

: लोकमत समाचार पत्र समूह के अन्याय, अत्याचार और प्रताड़नाओं से हार गए दीपक नोनहारे :  नागपुर :  लोकमत समाचारपत्र समूह के मगरूर प्रबंधन के अन्याय, अत्याचार और प्रताड़नाओं के आगे ‘लोकमत समाचार’ का एक पत्रकार पराजित हो गया. ‘लोकमत समाचार’ में पिछले 25 सालों से व्यापार-व्यवसाय डेस्क संभाल रहे दीपक नोनहारे ने गुरुवार 6 नवंबर की दोपहर को इंदिरा गांधी मेडिकल कॉलेज एवं अस्पताल (मेयो अस्पताल) नामक सरकारी अस्पताल में दम तोड़ दिया.

जीपी भगत यानि आदमी होने की सर्वोच्च अवस्था : रवीश कुमार

रवीश कुमार

: चल गईलू नू बड़की माई : सुबह सुबह ही दफ्तर पहुंच गया। कहीं से कोई धुन सवार हो गया था कि इस स्टोरी को आज ही करनी है। दिल्ली फरीदाबाद सीमा पर मज़दूरों की विशालकाय बस्तियां बसी हैं। हम जल्दी पहुंचना चाहते थे ताकि हम उन्हें कैमरे से अचेत अवस्था में पकड़ सके। अखबारों में कोई विशेष खबरें नहीं थीं कि आज वृद्धोंं के लिए कोई दिन तय है। टाइम्स आफ इंडिया में एक खबर दिखी जिसे कार में जल्दी जल्दी पढ़ने लगा। इतने प्रतिशत वृद्ध हैं। उतने प्रतिशत अकेले रहते हैं तो फलाने प्रतिशत गांव में रहते हैं तो चिलाने प्रतिशत शहर में। अपोलो अस्पताल से आगे धूल धूसरित मोहल्ले की तरफ कार मुड़ गई। वृद्ध आश्रम का बोर्ड दिखने लगा। शूटिंग ठीक से हो इसलिए पहले ही मोबाइल फोन बंद कर दिया। कभी करता नहीं पर पता नहीं आज क्यों बंद कर दिया।