
गाजीपुर में अपने बुजुर्ग चरवाहे मित्र हक्कू खांव और उनकी बकरियों के साथ भड़ास के एडिटर यशवंत सिंह.
वे अपना नाम हक्कू खांव बताते हैं. हम लोग मन ही मन मान लेते हैं कि असली नाम हलाकू खान होगा. हमने उनसे कहा भी कि आप अपना नाम गलत बता रहे हैं. शायद हलाकू खान होंगे आप. तो वे समझाए, ”नाहीं बेटा… ई नांव हमार बचपने से हउवे…”.
असल में हम पढ़े लिखे शहरी लोग अपनी जिद्दी अवधारणाओं और आग्रही मानसिकताओं के गुलाम होते हैं, सो जो हम सोचते मानते समझते हैं, उसे ही आखिरी सत्य मानकर दूसरों को सिखाते बताते भरमाते रहते हैं, अपने हिसाब से दूसरों को करेक्ट किया करते हैं. हक्कू खांव अगर हक्कू खांव ही हैं तो क्या फरक पड़ता है हमको आपको. लेकिन हम लोगों को जाने क्यों तुरंत लगा कि इनका नाम कुछ गलत-सा लग रहा है, अधूरा-सा लग रहा है. इसलिए कि हमारे अवचेतन में शायद यह समा गया है कि कोई अगर खुद का नाम हक्कू खांव बता रहा है तो ये पक्का हो गया है कि ये शख्स मुसलमान है… और, अगर ये मुसलमान है तो फिर हक्कू खांव क्यों है… नजदीकी करीबी शुद्ध नाम तो हलाकू खान है… इसे तो हलाकू खान हो जाना चााहिए…