इतने भले न बन जाना साथी

भड़ास के एडिटर यशवंत सिंह उन दिनों आई-नेक्स्ट अखबार के कानपुर एडिशन के लांचिंग एडिटर हुआ करते थे. एक फरवरी 2007 को यह लेख आई-नेक्स्ट में ही एडिट पेज पर छपा था. पेश है वही आलेख, हू-ब-हू…

आईआईटी का ये प्रोफेसर नौकरी छोड़ एक दिन चल पड़ा जंगल की ओर…

Rana Yashwant : आज एक स्टोरी आई. स्क्रिप्ट पढते ही मैं चौंक गया. कहा- कल इसको ठीक से करेंगे. अभी वही खबर दिख गई तो सोचा आपसे साझा कर लूं. शहाबुद्दीन जैसे लोगों के लिये सैकड़ों गाड़ियों का काफिला और हजारों की भीड़ चुटकियों में खड़ा हो जाते हैं, लेकिन एक आदमी इस देश की सेवा की बेहतरीन मिसाल खड़ी कर गया और हम उसको जानते तक नहीं. आलोक सागर, आईआईटी में प्रोफेसर हुआ करते थे. उनके छात्रों में रिजर्व बैंक के पूर्व गवर्नर रघुराम राजन भी हैं.

कूड़े की तरह पड़ी मिली दो दिन की इस बच्ची के लिए है कोई इस धरती पर मददगार?

किस पत्थरदिल मां ने पैदा होते ही इस बच्ची को कूड़े की तरह छोड़ दिया!

देहरादून : लोग अपने बच्चों से इतना प्यार करते हैं कि उनके लिए जान न्योछावर कर लेते हैं. लेकिन कुछ ऐसे लोग भी होते हैं कि जो नवजात के पैदा होने के बाद अगर बच्ची हो जाये तो उसे कूड़े की तरह एक किनारे पर रख लेते हैं.

पत्रकार मुन्ने भारती ने किया नेक काम (देखें वीडियो)

मैं आज 12 मई 2016 को सुबह सैर के लिए नई दिल्ली के ओखला के कालिन्दी कुंज पार्क में टहल ही रहा था कि अचानक मेरी निगाह पार्क के कोने मे पड़े तड़पते एक 15-17 साल के लड़के पर पड़ी. बेसुध तड़पते इंसान की मदद के लिए मैं उसकी तरफ भागा. लोग भी जमा हो गये.

गंवई पत्रकारिता के इन दो शिखर पुरुषों बिजुरी मिसिर उर्फ बिज्झल बाबा और दशरथ मिसिर उर्फ घुट्ठन बाबा को प्रणाम बोलिए

Tarun Kumar Tarun : ये जो दो शख्स दिख रहे हैं, वे गंवई पत्रकारिता के शिखर पुरुष हैं। इनके नाम हैं- बिजुरी मिसिर उर्फ बिज्झल बाबा और दशरथ मिसिर उर्फ घुट्ठन बाबा!! जब आधुनिक सनसनीधर्मी टीवी पत्रकारिता हमारे गप्प-रसिक मरुआही गांव तक नहीं पहुंची थी तब वहां की गंवई पत्रकारिता का बोझ बिज्झल जी और …

लोग पूछते हैं, आप भी पूछ लीजियेगा, वैसे वो आसानी से बतायेंगे नहीं

बूढ़ी माताएं यूं ही नहीं वृंदावन के वृद्धाश्रमों में चली आती हैं… बूढ़ी आखों को आपमें अपने बेटा या बेटी की परछाईं दिख गयी तो आप इनके दर्द को सहन न कर पाएंगे

पिछले बरस, अपने पैरों पर खड़ी एक नामी अभिनेत्री ने वृन्दावन के आश्रय सदनों में वृद्ध माताओं की भीड़ पर कहा था कि ‘ये घर छोड़कर यहां आती ही क्यूं हैं?’ उनके इस बयान पर काफी हो-हल्ला मचा। विपक्षी पार्टियों से लेकर आधुनिक समाजसेवी तबके तक से उनके विरोध में आवाजे आयीं। इन आवाजों के बीच उन बंगाली विधवाओं ने भी अपनी बात कही जिनके बारे में वो खुद और लोग कहते हैं कि भगवान की भक्ति के लिये वह वृन्दावन आकर आश्रय सदनों में रहती हैं। सबकी अपनी-अपनी कहानी है, बहुत सारी बातें हैं जिन्हें सोचकर सिवाय आंसुओं के उन्हें कुछ मिलता भी नहीं है। इसलिये सबकुछ भगवान के नाम छोड़कर भगवान के धाम में भक्ति का आश्रय ले रखा है। अकेली जान की गुजर बसर जैसे-तैसे हो ही जाती है। सरकार से मदद मिलती है तो समाजसेवी संस्थाओं से भी कुछ ना कुछ दान मिलता रहता है।

किसी को फर्क पड़ता है क्या : …पिता ने दिल पर पत्थर रखकर एफआईआर कराने से मना कर दिया होगा

अभी दो दिन पहले शाम को मेरे घर के पास माँट फाटक के समीप एक दो वर्ष की मासूम बच्ची की ट्रक से कुचल कर मौत हो गयी… किसी ने मुझे बताया तो एकदम से काँप उठा मै…. मेरे मुँह से यही निकला कैसे हुआ….पिता बच्ची को डॉक्टर राजेश को दिखा कर स्कूटी से घर जा रहे थे  रोड पर जाम लगा हुआ था पिता स्कूटी लेकर लगभग रुक से गए थे तभी किसी का हल्का सा स्कूटी से टकराव हुआ और संतुलन बिगड़ते ही बच्ची गिर गयी और पीछे से आते एक ट्रक से कुचलकर उसकी….