Om Prakash Singh : बहुत बहुत नमन बड़े भाई. यशस्वी पत्रकार श्री फिरोज अशरफ नहीं रहे। एक सड़क दुर्घटना ने उन्हें हमसे छीन लिया है। वे लेखक और पत्रकार तो थे ही,धर्मयुग में लिखते, नव भारत टाइम्स में लिखते; उनका स्तम्भ पकिस्ताननामा तो बहुत मशहूर था ही; इन सबसे बढ़ कर वे एक बहुत बेहतरीन इनसान थे।
वे उन समाजसेवियों में से थे जिनसे समाजसेवा का अर्थ समझा जा सकता है। लिखने के सिवा उन्होंने अपना सारा जीवन गरीब बेसहारा बच्चों को शिक्षा देने में लगाया।
जिन्हें सचमुच का सेक्युलर कहते हैं, फिरोज भाई उनमें से थे। उनसे मन के तार मुंबई के दंगे में जुड़े। तब मैं जनसत्ता में था और मुंबई के दंगे की रिपोर्टिंग कर रहा था। पहले दिन की रिपोर्ट छपते ही उनका फ़ोन आया। वे धार-धार रो रहे थे। कह रहे थे कि आपका माथा चूमना चाहता हूँ। आपको पढ़ कर लगा है कि इंसानियत अभी भी ज़िंदा है।
लेखक और पत्रकार के रूप में तो हम एक-दूसरे से परिचित थे ही, उस दिन से इंसानियत के एक बड़े नाते ने भी हमको जोड़ा। तब से जिन लोगों के लगातार संपर्क में रहा, फिरोज भाई उनमें से एक थे। अभी ११ मई को पूर्वांचल विकास प्रतिष्ठान के संस्पर्श कार्यक्रम में हम साथ थे। संस्पर्श के अगले कार्यक्रम में हम उनका सारस्वत सम्मान करने जा रहे थे। यह कार्यक्रम जुलाई-अगस्त में होना था। अब यह कार्यक्रम ९ अगस्त के अंग्रेजियत हटाओ कार्यक्रम में समाहित होगा।
नमन फिरोज भाई। जैसा नाम था, वैसी ही चमकदार, यशस्वी जिंदगी आपने जी। बहुत बहुत नमन। बहुत बहुत प्रणाम।
वरिष्ठ पत्रकार ओम प्रकाश सिंह की एफबी वॉल से.