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जंतर मंतर पर जान दे बैठे गजेंद्र ने राष्ट्रपति, प्रधानमंत्री तक को पगड़ी बांधी थी

राजधानी दिल्ली में बुधवार को जंतर मंतर पर रैली के दौरान आत्महत्या कर लेने वाले दौसा (राजस्थान) के गांव नांगल झाबरवाड़ा में 8 नवंबर 1973 को पैदा हुए गजेंद्र सिंह कल्याणवत के दादाजी 10 पैरा मिलिट्री में कार्यरत थे। दादा ठाकुर भंवर सिंह बड़ी अच्छी पगड़ी बांधते थे। दादाजी को पगड़ी बांधते देखकर गजेंद्र को भी वही शौक हो गया। उन्होंने दादाजी से पगड़ी बांधना क्या सीखा, उन्हें भी उस काम में प्रसिद्धि मिलने लगी। 

केंद्रीय गृहमंत्री राजनाथ सिंह को पगड़ी बांधते गजेंद्र सिंह कल्याणवत

राजधानी दिल्ली में बुधवार को जंतर मंतर पर रैली के दौरान आत्महत्या कर लेने वाले दौसा (राजस्थान) के गांव नांगल झाबरवाड़ा में 8 नवंबर 1973 को पैदा हुए गजेंद्र सिंह कल्याणवत के दादाजी 10 पैरा मिलिट्री में कार्यरत थे। दादा ठाकुर भंवर सिंह बड़ी अच्छी पगड़ी बांधते थे। दादाजी को पगड़ी बांधते देखकर गजेंद्र को भी वही शौक हो गया। उन्होंने दादाजी से पगड़ी बांधना क्या सीखा, उन्हें भी उस काम में प्रसिद्धि मिलने लगी। 

केंद्रीय गृहमंत्री राजनाथ सिंह को पगड़ी बांधते गजेंद्र सिंह कल्याणवत

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उत्तर प्रदेश के मंत्री ख्वाजा हलीम को पगड़ी बांधते गजेंद्र सिंह कल्याणवत

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पगड़ी बांधने के हुनर से लोग उन्हें विशेष समारोह में इस काम के लिए बुलाने लगे। कल्याणवत ने गणतंत्र दिवस, स्वतंत्रता दिवस जैसे मौकों पर प्रधानमंत्री से लेकर राष्ट्रपति तक को पगड़ी बांधी थी। वह सामाजिक और राजनीतिक रूप से भी काफी सक्रिय और समृद्ध थे। यहां तक कि वे विधानसभा चुनाव भी लड़ चुके थे। वे युवावस्था से ही अपने चाचा गोपाल सिंह नांगल के साथ राजनीति में सक्रिय रहे थे। 

वह नांगल प्रधान और सरपंच भी रह चुके थे। कल्याणवत ने भाजपा के साथ राजनीति की शुरुआत की। वो भाजपा के स्थानीय कार्यक्रमों में भागीदारी करते रहते थे और चुनाव लड़ने की ख्वाइश भी रखते थे। 2003 में जब भाजपा की तरफ से गजेंद्र सिंह को टिकट नहीं मिला, तो उन्होंने समाजवादी पार्टी का दामन थाम लिया। कल्याणवत ने सपा का दामन थामते ही 2003 का विधानसभा चुनाव लड़ा, लेकिन उनकी जमानत जब्त हो गई। 

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गजेंद्र इसके बाद भी राजनीति में डटे रहे। उन्होंने 2013 तक सपा में रहकर राजनीति की। इस दौरान गजेंद्र ने सपा जिलाध्यक्ष से लेकर प्रदेश कार्यकारिणी सदस्य तक का सफर तय किया। हालांकि 2013 में उन्होंने विधानसभा टिकट मिलने की आस में कांग्रेस का दामन थाम लिया। लेकिन जब कांग्रेस में गजेंद्र सिंह की अनदेखी की गई, तो वो आम आदमी पार्टी के करीब आ गए। यहां भी तवज्जो नहीं मिलने पर वे फिर से भाजपा में सक्रिय रहने लगे थे।

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