Gunjan Sinha : अन्ततः चले गए अरुण जी, असाध्य रोग कभी उनका मनोबल न तोड़ सका और न कभी कम कर सका सामाजिक सरोकारों के प्रति उनकी जबरदस्त प्रतिबद्धता … बहुत सालता है ऐसे जूझारू पुराने साथी का यूँ असमय चले जाना…. अलविदा अरुण जी. हमेशा याद रहेगी आपकी सादगी और उसके पीछे आडम्बर-रहित आग बदलाव और प्रतिरोध की.. संघर्ष तो बहुत लोग करते हैं. कोई शहीदाना मुद्रा में, समाज पर एहसान करते हुए, कोई गिरे हुओं के बीच जैसे एक आदर्श हों, ईश्वर के भेजे दूत, नाक फुलाते हुए…
लेकिन अरुण जी के लिए संघर्ष कोई आदर्श नही था. संघर्ष उनके जीने की शर्त और शैली थी. हर संघर्ष को उन्होंने जितनी सहजता से लिया, और निभाया, वही उनकी ख़ास बात है. वही जिन्दगी की आम बात है, होनी चाहिए.. हर संघर्ष को इसी रूप में देखना चाहिए न कि किसी महान आदर्श के रूप में… एक साल पहले जब अरुण अपने सरोकारों के साथ कैंसर से भी संघर्ष कर रहे थे, तब ११ नवम्बर, २०१४ को उनसे मेसेज बॉक्स में मेरी ये बात हुई थी.
”नमस्ते अरुण जी, आपका पुराना साथी रहा हूँ, अब नए अनुभव में भी सहभागी हो गया.. मल्टीप्ल माइलोमा.. साथ स्वीकार करें .. लेकिन मैंने इसे अभी पब्लिक नही किया है, सहानुभूति का बोझ अच्छा नही लगता….”
अरुण जी का उत्तर– ”दुखद! सहानुभूति की इसमें क्या बात है. ये जीवन की एक सच्चाई है. जमकर मुकाबला कीजिये.. मानसिक रूप से इसकी तैयारी रहनी चाहिए. अपने हाथ में सिर्फ स्ट्रगल है..”
वरिष्ठ पत्रकार गुंजन सिन्हा के फेसबुक वॉल से.
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