संजय कुमार सिंह
आज टाइम्स ऑफ इंडिया में प्रधानमंत्री का इंटरव्यू है, हिन्दुस्तान टाइम्स में खबर है जो टेलीविजन चैनल न्यूज18 को दिये इंटरव्यू पर आधारित है और इंडियन एक्सप्रेस में आधे पन्ने का इसका विज्ञापन है कि आज रात 9.00 बजे दिखाया जायेगा। द हिन्दू में आधा पन्ना विज्ञापन है और लीड मणिपुर की है। इसके अनुसार, गोलीबारी में एक व्यक्ति मारा गया तीन जख्मी हुए हैं। कल आप पढ़ चुके हैं कि 3 मई से शुरू हुई हिंसा अभी तक जारी है और सीआरपीएफ के शिविर पर हमला करके दो सुरक्षाकर्मियों को मारा जा चुका है। राजनीति की दिलचस्प खबर आज द टेलीग्राफ में है। इसके अनुसार रविवार को स्मृति ईरानी अयोध्या गईं। आप जानते हैं कि प्रधानमंत्री कांग्रेस नेताओं पर यह आरोप लगाते रहे हैं कि वे अयोध्या नहीं गये।
राजस्थान के चुरू में 5 अप्रैल 2024 को एक रैली में उन्होंने कहा, “एक पत्रकार ने अभी मुझे बताया कि कांग्रेस ने एक एडवाइजरी जारी की है और पार्टी इकाइयों से कहा है कि अगर अयोध्या में राम मंदिर पर कोई चर्चा होती है तो उन्हें अपने होंठ सील कर लेने चाहिए और कुछ नहीं बोलना चाहिए। उन्हें लगने लगा है कि अगर राम का नाम लिया तो पता नहीं कि कब राम-राम हो जाए।” यह अलग बात है कि कांग्रेस के कम्यूनिकेशन हेड जयराम रमेश ने पीएम के आरोपों का खंडन किया है और मोदी पर काल्पनिक दुनिया में रहने और ध्यान भटकाने की राजनीति करने का आरोप लगाया है। 10 अप्रैल को उन्होंने कहा था कि अयोध्या आने का निमंत्रण स्वीकार करके कांग्रेस ने भगवान राम का अपमान किया।
ऐसे में स्मृति ईरानी का अब अयोध्या जाना खबर तो है ही। लखनऊ डेटलाइन से पीयूष श्रीवास्तव ने लिखा है, अमेठी से नामांकन दाखिल करने से पहले राहुल गांधी के राम मंदिर जाने की अफवाह मात्र से ही उनकी प्रतिद्वंद्वी स्मृति ईरानी रविवार को अयोध्या मंदिर पहुंच गईं। अटकल हैं कि राहुल और प्रियंका गांधी नवनिर्मित मंदिर में पूजा कर सकते हैं और फिर क्रम से अमेठी और रायबरेली से नामांकन दाखिल करेंगे। इस आशय की चर्चा के एक दिन के भीतर, स्मृति ईरानी अयोध्या पहुंच गईं। मंदिर में प्रार्थना की और कई भक्तों के माथे पर टीका लगाया। भाजपा वाले लंबे समय से कांग्रेस को “हिंदू विरोधी” और “राम मंदिर विरोधी” के रूप में चित्रित करते रहे है। 22 जनवरी के अभिषेक समारोह में शामिल नहीं होने के बाद से ये हमले तेज हो गए थे। पर स्मृति ईरानी अब क्यों गईं यह समझ में नहीं आया। वे पहले नहीं गई थीं या दोबारा जाने की जरूरत महसूस हुई – दोनों दिलचस्प है और यह खबर भी।
इंडियन एक्सप्रेस की लीड आज दिल्ली में कांग्रेस की अंदरूनी कलह है। प्रधानमंत्री का इंटरव्यू का प्रचार करने वाले विज्ञापन के साथ छपी खबर में अखबार ने लिखा है, 25 मई के मतदान से पहले कांग्रेस में संकट। अंदरूनी कलह का शिकार इंडिया ब्लॉक : दिल्ली प्रमुख ने पार्टी छोड़ी। पहले पन्ने की दूसरी खबर पूर्व प्रधानमंत्री के पोते के खिलाफ मामला दर्ज होने की है। अमर उजाला ने इन दोनों खबरों को एक साथ, अगल-बगल में छापा है। यहां लीड का शीर्षक है, शहजादे महाराजाओं का अपमान करते हैं, उन्हें औरंगजेब के अत्याचार याद नहीं आते : मोदी। उपशीर्षक है, कहा, कांग्रेस ने हमारे इतिहास और आजादी के संघर्ष गाथा तुष्टिकरण औऱ वोट बैंक की निगाह से लिखवाई। इसके साथ की खबरों के शीर्षक हैं 1) मंदिरों को अपवित्र करने वालों से गठबंधन करती है कांग्रेस 2) भारत को कमजोर देखना चाहते हैं कुछ देश 3) वोट के लिए पीएफआई का समर्थन और 4) पिछड़ा वर्ग का आरक्षण अपने वोट बैंक को बांटा। कांग्रेस का जवाब भी है। इसे तीन कॉलम, तीन लाइन में निपटा दिया गया है। डेढ़ लाइन यह बताने में निकल गया कि कांग्रेस ने पलटवार किया है। बाकी डेढ़ लाइन इस प्रकार है, कांग्रेस महासचिव जयराम रमेश ने कहा कि प्रधानमंत्री दुर्भावनावश राहुल गांधी के हर बयान को तोड़ मरोड़ कर पेश कर रहे हैं ताकि देश में सांप्रदायिक भावना भड़का सकें।
नवोदय टाइम्स ने अमर उजाला की लीड को ही लीड बनाया है। इसके साथ राहुल गांधी के जवाब को मोदी के आरोप के जवाब के रूप में पेश किया है। अमर उजाला के डेढ़ लाइन के पलटवार के मुकाबले यहां शीर्षक है, “मोदी चलाते हैं अरबपतियों के लिए सरकार : राहुल”। इस खबर का इंट्रो है, (राहुल ने कहा) आरएसएस प्रमुख ने आरक्षण का विरोध किया अब कहते हैं खिलाफ नहीं। इस खबर के लिए अमर उजाला संघ का भोंपू बन गया है और इसे, “संघ आरक्षण समर्थक, झूठ फैला रहा है विपक्ष : भागवत” शीर्षक से बॉटम एंकर बना दिया है। जाहिर है ऐसा राहुल गांधी को जवाब देने के लिए किया गया है और सब राहुल गांधी ने कहा है वह गलत नहीं है। यह जवाब नहीं जबरस्ती है और इसपर अलग से खबर होनी चाहिये या वही होनी चाहिये। ऐसी खबर आज द टेलीग्राफ में विस्तार से है।
इस खबर का शीर्षक मोटे तौर पर यह बता रहा है कि आरक्षण को लेकर लगी आग बुझाने में भाजपा का साथ देने आरएसएस आगे आया क्योंकि मुश्किलें बढ़ रही हैं। नई दिल्ली डेटलाइन से जेपी यादव की इस खबर में कहा गया है, हैदराबाद में एक स्कूल के कार्यक्रम में भागवत ने जोर देकर कहा कि आरएसएस ने “शुरू से ही” आरक्षण का समर्थन किया है और जब तक “यह आवश्यक है” तब तक इसे जारी रखने का समर्थन किया है। उनका यह स्पष्टीकरण इसलिए महत्वपूर्ण हो जाता है कि, बिहार चुनाव के दौरान, 2015 में उन्होंने आरक्षण नीति की समीक्षा का सुझाव दिया था और दावा किया था कि इसका उपयोग चुनावी उद्देश्यों के लिए किया जा रहा है। माना जाता है कि आरक्षण को अस्वीकार करने का सुझाव देने वाली इस टिप्पणी से भाजपा को नुकसान हुआ था।
इतवार को भागवत ने कहा, “एक वीडियो प्रसारित किया जा रहा है कि आरएसएस आरक्षण के खिलाफ है और हम इस मुद्दे पर (अपने मन की) बात सार्वजनिक नहीं कर सकते। अब यह पूरी तरह से झूठ है।” समाचार एजेंसी एएनआई के एक वीडियो में वे यह कहते हुए सुने गये हैं, “ये गलत बात है, असत्य है।” संघ शुरू से ही संविधान के अनुसार सभी आरक्षणों का समर्थन करता रहा है। और, संघ का कहना है कि इसे तब तक जारी रहना चाहिए जब तक जिनके लिए यह मौजूद है उन्हें लगता है कि यह आवश्यक है।” भागवत ने आगे कहा, “यह (आरक्षण नीति) तब तक जारी रहनी चाहिए जब तक समाज में भेदभाव मौजूद है।” 2024 के लोकसभा चुनाव के लिए “400 पार” का भाजपा का शुरुआती प्रचार अभियान संविधान बदलने के मकसद से किया जा रहा लग रहा था। इसका कारण यह था कि भाजपा के कुछ नेताओं ने ऐसी बात की थी।
संविधान बदलने का संदर्भ हिन्दू राष्ट्र से था और जातीय जनगणना तथा जिसकी जितनी संख्या उसकी उतनी भागीदारी जैसी मांगों ने भाजपा को आरक्षण का समर्थन करने के लिए मजबूर किया और अब जब मामला गड़बड़ाता लग रहा है तो संघ प्रमुख को कूदना पड़ा है। शर्मनाक यह है कि कुछ अखबार इस मामले में निष्पक्ष नहीं हैं और भिन्न मामलों की तरह इसमें भी भाजपा के झूठ की पोल नहीं खोल रहे हैं। लेकिन विवाद और इस कारण चुनावी डर इतना ज्यादा है कि 19 अप्रैल को पहले दौर के मतदान से ठीक पहले और बाद में प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी और केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह को यह स्पष्ट करने के लिए मजबूर किया कि पार्टी की ऐसी कोई योजना नहीं थी।
टाइम्स ऑफ इंडिया की एक्सक्लूसिव बातचीत का शीर्षक आरक्षण पर ही है। कहने की जरूरत नहीं है कि जो प्रेस कांफ्रेंस नहीं करने और दोस्ती बनी रहे कहने के लिए जाना जाता है वह किसी पेशेवर संस्थान के पेशेवर (सर्टिफिकेट वाले नहीं, जिसकी ऐसी साख हो) को इंटरव्यू क्यों देगा। दिलचस्प यह है कि एक दिन में एक दैनिक और एक टेलीविजन चैनल को इंटरव्यू दिये जाने की योजना कितनी अच्छी है और उसी से आज के पहले पन्ने का इतना बढ़िया हेडलाइन मैनेजमेंट हो पाया है। उसी का असर है कि प्रधान प्रचारक अभी भी इनहेरीटेंस टैक्स में ही उलझे हुए हैं जबकि राजीव गांधी ने ही इसे खत्म किया था, यह आरोप निराधार है कि अपने फायदे के लिए किया था और अगर कर भी दिया जाये तो कोई नुकसान नहीं होगा। इस सरकार ने जीएसटी (और आयकर) वसूली इतनी अच्छी कर दी है कि सरकार को किसी नये टैक्स की जरूरत ही नहीं है और अगर लगा तो थोड़ा बहुत ही होगा तथा कोई जरूरी नहीं है कि अमेरिका की नकल करके लगाया जाये तो अमेरिका की ही तरह 50-55 प्रतिशत हो। संपत्ति तो करोड़ों की होगी और उसमें एक प्रतिशत का टैक्स भी काफी होगी और इसके बदले अगर देश को आम आदमी के लिए एक बढ़िया इनहेरीटेंस कानून मिल जाये तो कोई बुराई नहीं है। पर चूंकि कांग्रेस ने ऐसा कहा नहीं है और भाजपा को 400 पार जाना है इसलिए कांग्रेस के सरकार में आने की संभावना ही नहीं है तो फिर यह डर किस लिये और किसके लिये?
जाहिर है, भाजपा और सरकार को कांग्रेस गठबंधन की सरकार बनने की उम्मीद है और इसीलिए आदर्श आचार संहिता की उपेक्षा करके भी प्रधानमंत्री यह सब कर रहे हैं। मीडिया में जिसे साथ देना है, दे रहा है और खुलकर दे रहा है। बिना डरे और बिना शर्माए। खबरों की बात करूं तो चुनाव आयोग ने आम आदमी पार्टी से कहा है कि अपने चुनाव अभियान गीत को परिवर्तित करे। पार्टी ने कहा है चुनाव आयोग ने उसके गीत को प्रतिबंधित कर दिया है। टाइम्स ऑफ इंडिया में आज पहले पन्ने पर छपी खबर से ये तो नहीं पता चलता है कि गीत के बोल क्या हैं जिसे प्रतिबंधित किया गया है या संशोधित करने के लिए कहा गया है। खबर से लगता है कि एक वीडियो जिसमें कहा गया है, जेल के जवाब में हम वोट देंगे को चुनाव आयोग ने दिशा निर्देशों का उल्लंघन माना है। टेलीग्राफ का आज का कोट आम आदमी पार्टी की आतिशी का यह बयान है, चुनाव आयोग कह रहा है कि अगर आप तानाशाही की बात करेंगे तो यह सत्तारूढ़ दल की आलोचना है। इसका मतलब है कि चुनाव आयोग खुद मानता है कि भाजपा देश में तानाशाही की सरकार चला रही है।
आप समझ सकते हैं कि प्रधानमंत्री जब कांग्रेस पर गलत और झूठे आरोप लगा रहे हैं, सामप्रदायिकता फैलाने वाली बातें कर रहे हैं , विपक्षी नेताओं को जेल में रखे हुए हैं और चुनाव में सभी दलों के लिए समान स्थितियां नहीं हैं और प्रधानमंत्री के खिलाफ आरोप का जवाब चुनाव आयोग पार्टी अध्यक्ष से मांग रहा है चो चुनावी स्थितियां क्या होंगी। ऐसे में ज्यादातर अखबारों का सरकार समर्थक रुख और विपक्ष की कमजोरी को तूल देना