‘मेड इन चाइना’ से इतर छवि पेश करती है, ‘हैलो चीन’ किताब
किताब शीर्षक- ‘हैलो चीन : देश पुराना, नई पहचान’
लेखक- अनिल आज़ाद पांडेय
प्रकाशन- राजकमल प्रकाशन
वैसे दुनिया भर में मेड इन चाइना के तमाम किस्से हैं। लेकिन हैलो चीन किताब चीन के बनने की, एक ताकत के रूप में उभरने की, उसकी मुकम्मल पहचान की कहानी को सामने लाती है। हाल के वर्षों में चीन पहुंचने वाले भारतीयों की तादाद में काफी इजाफ़ा हुआ है। जिसमें चीन-भारत के बीच बिजनेस आदि के क्षेत्र में करने वाले सबसे अधिक हैं। जबकि चीन के विकास से आकर्षित होकर चीनी भाषा सीखने वाले छात्रों और निजी कंपनियों में काम करने वाले लोगों की संख्या भी लगातार बढ़ रही है। लेकिन चीन में रहकर उस अजनबी से देश को समझने वाले और उसके बारे में कलम चलाने वाले पत्रकारों की संख्या बहुत कम है। अपनी लेखनी को किताब का रूप देने वाले और भी कम हैं। लेखक अनिल आज़ाद पांडेय शायद चुनिंदा पत्रकारों में से एक हैं, जिनहोंने चीन के बारे में किताब लिखने का सफल प्रयास किया है। लेखक मानते हैं कि किताब में मौजूद जानकारी भारतीय लोगों की चीन और चीनियों के बारे में समझ को बढ़ाएगी।
सांस्कृतिक, ऐतिहासिक और विकास के वर्तमान राजनीतिक-सामाजिक परिदृश्य को देखें तो चीन उतना ही दिलचस्प देश है, जितना भारत रहा है। लेकिन कई कारणों से हम चीन के बारे में ज्यादा नहीं जानते। चीन में बहुत कुछ ऐसा है, जिसे जानना न सिर्फ दोनों देशों के बेहतर रिश्तों के लिए जरुरी है, बल्कि ऐसे भी कई पहलू हैं, जिन्हें जानकर हम अपने देश में भी कुछ बेहतर नागरिक होने की कोशिश कर सकते हैं। मसलन नागरिक अनुशासन, स्वच्छता के प्रति सार्वजनिक सहमति और इसके लिए किए जाने वाले प्रयास।
निजी अनुभवों और अध्ययन के आधार पर लिखी गई यह पुस्तक हमें चीन के इतिहास, वहां के रीति-रिवाजों, पारिवारिक संरचना, विवाह परंपरा, परिवहन व्यवस्था,खान-पान की शैलियों के साथ-साथ चीन की वर्तमान संरचना और राजनयिक भूमिका से भी परिचित कराती है। इस पुस्तक में लेखक ने चीन में लगभग सात वर्षों तक रहते हुए अपने अनुभव, वहां के राजनीतिक-आर्थिक मुद्दों और चीन-भारत संबंधों पर भारत के राष्ट्रीय समाचार पत्रों में प्रकाशित लेखों को भी शामिल किया है।
भारत और चीन के संबंध प्रगाढ़ बनाने में योगदान देने वाली शख्सियतों के बारे में भी इसमें उल्लेख किया गया है। जिनमें विश्व गुरु रवींद्र नाथ टैगोर और द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान चीन की मदद करने वाले डॉ. कोटनिस शामिल हैं।
पड़ोसी-
वैसे, भारत में रहकर चीन को समझना और जानना आसान नहीं है। भले ही दोनों देशों की सरहदें आपस में मिली हुर्ह हैं, दोनों के व्यापारिक संबंध भी कोई नए नहीं हैं। दोनों प्राचीन सभ्यता और संस्कृति वाले देश हैं। बौद्ध धर्म के बारे में जानने के लिए लगभग तीसरी शताब्दी में फाह्यान भारत पहुंचे। वहीं चीन में बौद्ध धर्म का प्रसार करने भारत से कई विद्वान और बौद्ध भिक्षु भी चीन गए।1962 के युद्ध को छोड़कर दोनों पड़ोसियों के बीच कोई बड़ी कटुता नहीं रही है। बावजूद इसके हम चीन को बहुत कम जानते हैं। इसकी एक वजह भाषा है, तो दूसरी भ्रांतियां हैं। हालांकि विकास के मामले में भारत में लोग चीन का उदाहरण जरूर देते हैं। चीन में रहते हुए लेखक ने महसूस किया कि भारतीय लोगों को चीन के बारे में रूबरू करवाना चाहिए।
आम चीनी लोगों की बात करें तो उनमें अदब है, अपने देश के लिए जज्बा है, श्रम के प्रति सम्मान है। उन्हें कानून को तोड़ने की नहीं बल्कि पालन करने की आदत है। इस सबका अहसास लेखक ने उनके साथ रहकर किया है। चीन में लेखक अनिल पांडेय का शुरुआती दौर था। एक दिन उनके किचन में ऊपर के फ्लैट से पानी टपक रहा था। रात का समय था, लेखक को समझ नहीं आ रहा था। इसी बीच किसी ने दरवाजा खटखटाया, लेखक ने दरवाजा खोला तो एक चायनीज़ खड़ा था। वह लेखक को देखकर हक्का बक्का रह गया। उसे यह आभास नहीं था कि इस कमरे में कोई विदेशी रहता है। उसने सॉरी बोला और सुबह कमरे की सफाई करने की बात कही। हालांकि कमरे में पानी ज्यादा नहीं था और इसमें उसकी कोई गलती नहीं थी। दरअसल बिल्डिंग के ड्रेनेज से पानी लीक हो गया था। लेखक से सॉरी कहने आया वह व्यक्ति एक प्राइवेट कंपनी में बड़ी पोस्ट पर था। वह चीन में लेखक का पहला दोस्त बना। कहने का मतलब है कि शिष्टाचार चीनियों की आदत में शुमार है।
इस किताब में चीनी लोगों की देश भक्ति और सेवा करने की आदतों का भी वरणन किया गया है। रेलवे स्टेशन और सड़कों पर तैनात स्वयं सेवकों में अधिकांश रिटायर्ड कर्मचारी होते हैं। ये लोग अपनी सामान्य दिनचर्या में से कुछ समय निकालकर देश सेवा में देते हैं। काम छोटा या बड़ा नहीं होता है, इसे भी चीन में महसूस किया जा सकता है। अच्छा काम करने वाले कर्मचारियों की फोटो अपार्टमेंट्स में तक लगी रहती है। हालांकि देखने में यह सब सामान्य चीजें हैं, मगर किसी देश को आगे ले जाने में इनका अहम योगदान होता है। चीन ने विकास के क्षेत्र में जो कायाकल्प किया है वो दुनिया के लिए आश्चर्य हो सकता है। आसमान छूती इमारतें और चौड़ी सड़कें यह सब कुछ चीनियों के जज्बे का परिणाम है। उम्मीद है कि यह किताब चीन को गहराई से जानने की जिज्ञासा पैदा करने में सहायक साबित होगी।
लेखक का अनुभव-
मैं पिछले सात सालों से चीन में हूं, और इसी अनुभव को समेटते हुए एक किताब लिखने का साहस किया है। 2009 में अमर उजाला के राष्ट्रीय ब्यूरो से चीन जाने से पहले मेरे मन में भी कुछ भ्रांतियां थी। लेकिन वहां पहुंचने के बाद ऐसा लगा, मीडिया में हम जो पढ़ते और देखते हैं, वह सच्चाई से पूरी तरह मेल नहीं खाता। हां, कुछ चीजें हैं, जिसमें वहां अब भी सुधार की आवश्यकता है। चीन में रहते हुए मुझे कई शहरों और छोटे गांवों में भी रहने का मौका मिला। गांवों में पलायन एक समस्या जरूर है, लेकिन विकास की दौड़ में ये क्षेत्र भी शामिल किए गए हैं। हालांकि गांवों के विकास मॉडल को अभी और विस्तार देने की जरूरत है।
चीन जिस तेज़ी से विकास कर रहा है, उसे मैंने खुद वहां रहकर महसूस किया है। गगनचुंबी इमारतें और साफ-सुथरी व चौड़ी सड़कें यह सब कुछ चीनी लोगों की मेहनत का परिणाम है। तकनीक के क्षेत्र में भी चीन बहुत आगे बढ़ चुका है। भारत में हाई स्पीड ट्रेन चलाने को लेकर हो रही कोशिशों के बीच यह जानना आवशयक है कि दुनिया का सबसे लंबा हाई स्पीड रेल मार्ग, जो कि 19 हज़ार किमी. है, चीन में मौजूद है। चीन में तेज गति की ट्रेनों की रफ्तार 300 किमी. प्रति घंटा से अधिक होती है और सुरक्षित भी। वहां के ट्रेन स्टेशन एयरपोर्ट्स की तरह साफ-सुथरे और व्यवस्थित होते हैं। जबकि ट्रेनें भी पूरी तरह स्वच्छ। सबसे अधिक जिस बात ने मुझे प्रभावित किया है। वह है कि चीनी लोगों में अपने देश के लिए प्यार है और लोग समय के पाबंद हैं। समय की यही पाबंदी ट्रेनों आदि के संचालन में साफ दिखती है। मैंने ट्रेनों में कई बार सफ़र किया है, लेकिन ये निर्धारित समय से एक मिनट भी लेट नहीं चलती। लोगों की बात करें तो चीन के आम लोग भारत को एक सुंदर और रहस्यमयी देश मानते हैं। वे भारतीय खान-पान, बॉलीवुड, इतिहास आदि के बारे में बड़ी दिलचस्पी रखते हैं। किसी भी उम्रदराज व्यक्ति से मिलने पर, वह, आवारा हूं, गाना गुनगुनाने लगता है। एक भारतीय होने के नाते सुखद आश्चर्य देता है। मुझे वहां रहते हुए लोगों से मिलकर कभी भी महसूस नहीं हुआ कि चीन हमारा दुश्मन है।
लेखक का परिचय-
पिछले 12 वर्षों से पत्रकारिता जगत में सक्रिय। इस दौरान दिल्ली में, अमर उजाला और राजस्थान पत्रिका के नेशनल ब्यूरो में काम किया। दो साल से अधिक समय तक चीन-भारत संबधों पर निकलने वाली पत्रिका सेतु संबंध का संपादन किया। भारत के राष्ट्रीय अखबारों में समसामयिक मुद्दों पर संपादकीय और पत्रिकाओं में लेखन जारी। पिछले सात सालों से चायना रेडियो, बीजिंग में कार्यरत।
pramod joshi
April 13, 2016 at 6:56 am
badhiya pande ji