नई दिल्ली । चर्चित लेखिका वंदना राग के नए उपन्यास ‘बिसात पर जुगनू’ का लोकार्पण शुक्रवार की शाम इंडिया इंटरनेशनल सेंटर में हुआ। पूर्व एमएलए संदीप दिक्षित, पंकज राग, मंगलेश डबराल, विनोद भारद्वाज, अपूर्वानंद के साथ साहित्य, राजनीति, मीडिया और कला जगत के चर्चित चेहरे ने कार्यक्रम में शामिल हुए। लोकार्पण के बाद लेखिका वंदना …
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“वोल्गा से शिवनाथ तक” के द्वितीय संस्करण का विमोचन
“वोल्गा से शिवनाथ तक” के लेखक व पत्रकार मुहम्मद जाकिर हुसैन ने अपने इस ऐतिहासिक कृति में भिलाई इस्पात संयंत्र के प्रेरक इतिहास को बड़े ही रोचक शैली में संजोने का सफल प्रयास किया है। इसके प्रथम संस्करण की लोकप्रियता को देखते हुए इसके दूसरे संस्करण को शीघ्र ही प्रकाशित किया गया।
मोदी की ‘वादा-फरामोशी’ पर 3 पत्रकारों ने मिलकर लिख दी किताब, केजरीवाल ने कर दिया लांच
नई दिल्ली : देश अगले महीने होने वाले लोकसभा चुनाव से पहले जोरदार राजनीतिक विवादों की चपेट में हैं, और इसी दौरान RTI कार्यकर्ता-लेखक संजॉय बसु, नीरज कुमार और शशि शेखर ने अपनी नई लॉन्च की गई किताब, ‘वादा-फरामोशी’ (फैक्ट्स, फिक्शन नहीं , RTI अधिनियम पर आधारित) को जनता के सामने प्रस्तुत किया है। पिछले …
अपनी नई किताब ‘तितलियों का शोर’ के विमोचन के दौरान IAS डॉ. हरिओम गुनगुनाए, देखें वीडियो
ग़ज़ल गायक, शायर और कथाकार के रूप में चर्चित आईएएस अधिकारी डॉ. हरिओम के अफ़सानों की नई किताब ‘तितलियों का शोर’ का पिछले दिनों विश्व पुस्तक मेला, दिल्ली में वाणी प्रकाशन के स्टॉल पर रस्म-ए-इज़रा हुआ।
1984 के नरसंहार को समझना है तो जरनैल सिंह की किताब ‘कब कटेगी चौरासी’ पढ़ें
Ravish Kumar : कांग्रेस नेता सज्जन कुमार को 84 के नरसंहार के मामले में उम्र क़ैद हुई है। 1984 के नरसंहार को समझना है तो जरनैल सिंह की किताब ‘कब कटेगी चौरासी’ को पढ़ सकते हैं। बल्कि पढ़नी ही चाहिए। यह किताब हिन्दी में है। जब आई थी तब समीक्षा की थी। 84 पर इस …
वरिष्ठ पत्रकार फजले गुफरान की पहली किताब आई- ‘मैं हूं खलनायक’
थोड़ी देर के लिए मौजूदा दौर की बात छोड़ दें तो, अमूमन बालीवुड का ग्लैमर यहां के सुपरस्टार्स, नामचीन सितारों और अभिनेत्रियों के रूमानी किस्से-कहानियों तक ही सिमटा नजर आता है। ऊपर से सोशल मीडिया के इस दौर ने बाक्स आफिस की उठा पटक और बड़े बजट की फिल्मों की अहमियत बेवजह ही बढ़ा दी …
यशवंत ने जमाने बाद दिल्ली में लखनऊ जिया! पढ़ें भाऊ के बुक लांच समारोह की रिपोर्ट
Yashwant Singh : ज़माने बाद दिल्ली में लखनऊ को जिया। भाऊ Raghvendra Dubey के बुक लांच आयोजन में इंडिया इंटरनेशनल सेंटर में जो जुटान हुई, उसमें मुझे नखनऊ मिल गया। गुरुवर Anil Kumar Yadav, Ravindra Ojha, Suresh Bahadur Singh, खुद राघवेंद्र दुबे भाऊ संग जो मस्ती मटरगश्ती बतकही पियक्कड़ी लुहेड़ई हुई, उसने मुझे 20 साल …
मोदी राज में पीड़ित पत्रकार ने लिख डाली किताब-‘जीएसटी 100 झंझट’, आप भी मंगाएं और पढ़ें
Sanjaya Kumar Singh : जीएसटी पर मेरी फेसबुक पोस्ट – “जीएसटी 100 झंझट” पुस्तक रूप में बस अभी छप कर आई है। प्रकाशक हैं कौटिल्या। ऑर्डर करने के लिए लिंक यह रहा : https://kautilya.in/products/gst-100-Jhanjhat
पत्रकारिता फील्ड में आने वालों, इस किताब को पढ़ लो… फिर न कहना- ‘ये कहां फंस गए हम!’
पत्रकारिता की दुनिया को ‘संजय’ की नजर से देखने-समझने के लिए ‘पत्रकारिता – जो मैंने देखा, जाना, समझा’ को पढें…
वरिष्ठ पत्रकार और उद्यमी संजय कुमार सिंह की पुस्तक “पत्रकारिता – जो मैंने देखा, जाना, समझा“ उन तमाम लोगों के लिए आंख खोलने वाली है, जो आज भी पत्रकारों में बाबूराव विष्णु पड़ारकर या गणेश शंकर विद्यार्थी देखते हैं और जो ग्लैमर से प्रभावित होकर पत्रकारिता को पेशा बनाना चाहते हैं। यह सच है कि चीजें जैसी दिखाई पड़ती हैं, उनको वैसी ही वही मान ले सकता है जिसके पास अंतर्दृष्टि नहीं होगी। पर जिसके पास अंतर्दृष्टि है वह चीजों को उसके अंतिम छोर तक देखता है। चीजें जैसी दिखती हैं, वह उसे उसी रूप में कदापि स्वीकार नहीं करता। चिंतन-मनन करता है और अपनी अंतर्दृष्टि से सत्य की तलाश करता है।
आज के समय में व्यंग्य लिखना जोख़िम भरा काम है और मुकेश कुमार ने ये दुस्साहस किया है : उदय प्रकाश
नई दिल्ली। कोई भी सर्व सत्तावादी जिस चीज़ से सबसे ज़्यादा डरता है वह है व्यंग्य। वह व्यंग्य को बर्दाश्त नहीं कर पाता यहां तक कि कार्टून को बर्दाश्त नहीं कर पाता। ऐसे में व्यंग्य लिखना भारी जोखिम का काम है और वह मुकेश कुमार ने किया है। ये उनका दुस्साहस है कि उन्होंने फेक एनकाउंटर लिखा। ये विचार जाने-माने कथाकार एवं कवि उदयप्रकाश ने डॉ. मुकेश कुमार की किताब फेक एनकाउंटर के लोकार्पण के अवसर पर कही। शिवना प्रकाशन द्वारा प्रकाशित इस पुस्तक का लोकार्पण दिल्ली स्थित प्रेस क्लब ऑफ इंडिया के सभागार में हुआ।
प्रियंका की किताब का खुलासा, बाबा रामदेव इन तीन हत्याओं के कारण बन पाए टाइकून!
Surya Pratap Singh : एक बाबा के ‘फ़र्श से अर्श’ तक की कहानी के पीछे तीन हत्याओं / मौत के हादसे क्या कहते हैं? अमेरिका में पढ़ी-लिखी प्रसिद्ध लेखिका प्रियंका पाठक-नारायण ने आज देश के प्रसिद्ध योगगुरु व अत्यंत प्रभावशाली व्यक्ति, बाबा रामदेव की साइकिल से चवनप्रास बेचने से आज के एक व्यावसायिक योगगुरु बनने तक की कथा अपनी किताब में Crisp facts / प्रमाणों सहित लिखी है। इस पुस्तक में बाबा की आलोचना ही नहीं लिखी अपितु सभी उपलब्धियों के पहलुओं को भी Investigative Biography के रूप में लिखा है।
चर्चित युवा कवि डॉ. अजीत का पहला संग्रह ‘तुम उदास करते हो कवि’ छप कर आया, जरूर पढ़ें
डॉ. अजीत तोमर
किसी भी लिखने वाले के लिए सबसे मुश्किल होता है अपनी किसी चीज़ के बारे में लिखना क्योंकि एक समय के बाद लिखी हुई चीज़ अपनी नहीं रह जाती है. वह पाठकों के जीवन और स्मृतियों का हिस्सा बन जाती है. जिस दुनिया से मैं आता हूँ वहां कला, कल्पना और कविता की गुंजाईश हमेशा से थोड़ी कम रही है. मगर अस्तित्व का अपना एक विचित्र नियोजन होता है और जब आप खुद उस पर भरोसा करने लगते हैं तो वो आपको अक्सर चमत्कृत करता है. औपचारिक रूप से अपने जीवन के एक ऐसे ही चमत्कार को आज आपके साथ सांझा कर रहा हूँ.
अनिल यादव की किताब ‘यह भी कोई देस है महराज’ का अंग्रेजी संस्करण छपा
Dinesh Shrinet : “पुरानी दिल्ली के भयानक गंदगी, बदबू और भीड़ से भरे प्लेटफार्म नंबर नौ पर खड़ी मटमैली ब्रह्मपुत्र मेल को देखकर एकबारगी लगा कि यह ट्रेन एक जमाने से इसी तरह खड़ी है। अब यह कभी नहीं चलेगी। अंधेरे डिब्बों की टूटी खिड़कियों पर पर उल्टी से बनी धारियां झिलमिला रही थीं जो सूखकर पपड़ी हो गई थीं। रेलवे ट्रैक पर नेवले और बिल्ली के बीच के आकार के चूहे बेख़ौफ घूम रहे थे। 29 नवंबर, 2000 की उस रात भी शरीर के खुले हिस्से मच्छरों के डंक से चुनचुना रहे थे। इस ट्रेन को देखकर सहज निष्कर्ष चला आता था – चुंकि वह देश के सबसे रहस्यमय और उपेक्षित हिस्से की ओर जा रही थी इसलिए अंधेरे में उदास खड़ी थी।”
दीपक द्विवेदी की किताब ‘इम्पावरिंग द मार्जिन्लाइज्ड’ का उपराष्ट्रपति ने किया विमोचन
नई दिल्ली। दैनिक भास्कर उत्तर प्रदेश के चीफ एडीटर एवं नागरिक फाउन्डेशन के फाउन्डर प्रेसीडेन्ट दीपक द्विवेदी की पुस्तक इम्पावरिंग द मार्जिन्लाइज्ड का विमोचन उपराष्ट्रपति डा. हामिद अंसारी के आवास पर आयोजित एक समारोह में किया गया श्री द्विवेदी द्वारा लिखित इस पुस्तक में यूनाईटेड नेशन्स् समेत कई राष्टीय एवं अन्तर्राष्ट्रीय संस्थानों द्वारा देश के ग्रामीण क्षे़त्रों को विकसित करने के लिए किये जा रहे विभिन्न प्रयासों को रेखांकित किया गया हैं।
जस्टिस कर्णन की जीवनी लिखने के लिए दिलीप मंडल को मिले पचास लाख रुपये!
चर्चित पत्रकार दिलीप मंडल के बारे में खबर आ रही है कि वे जस्टिस कर्णन पर किताब लिखेंगे जिसके लिए प्रकाशक ने उन्हें पचास लाख रुपये दिए हैं. दलित समुदाय से आने वाले जस्टिस कर्णन की जीवनी लिखने को लेकर प्रकाशक से डील पक्की होने के बाद दिलीप मंडल अपने मित्रों को लेकर जस्टिस कर्णन से मिलने कलकत्ता गए. आने-जाने, खिलाने-पिलाने का खर्च प्रकाशक ने उठाया. किताब हिदी, अंग्रेजी, तमिल और कन्नड़ में छपेगी. ज्ञात हो कि दिलीप मंडल ने अब अपना जीवन दलित उत्थान के लिए समर्पित कर दिया है और फेसबुक पर हर वक्त वह दलित दलित लिखते रहते हैं जिसेक कारण उनके प्रशंसक और विरोधी भारी मात्रा में पैदा हो गए हैं.
संजय द्विवेदी द्वारा संपादित पुस्तक ‘मीडिया की ओर देखती स्त्री’ का लोकार्पण
भोपाल। माखनलाल चतुर्वेदी राष्ट्रीय पत्रकारिता एवं संचार विश्वविद्यालय, भोपाल में जनसंचार विभाग के अध्यक्ष संजय द्विवेदी द्वारा संपादित किताब ‘मीडिया की ओर देखती स्त्री’ का लोकार्पण ‘मीडिया विमर्श’ पत्रिका की ओर से गांधी भवन, भोपाल में आयोजित पं. बृजलाल द्विवेदी स्मृति अखिल भारतीय साहित्यिक पत्रकारिता सम्मान समारोह में निशा राय (भास्कर डाटकाम), आर जे अनादि …
अखिलेश यादव सरकार के भ्रष्टाचार की पोल खोलती विष्णु गुप्त की नई किताब बाजार में आई
उत्तर प्रदेश विधान सभा चुनाव में वरिष्ठ पत्रकार और कॉलमनिष्ट विष्णुगुप्त की पुस्तक धमाल मचा रही है। विष्णुगुप्त की पुस्तक का नाम ‘अखिलेश की गुंडा समाजवादी सरकार’ है। इस पुस्तक में अखिलेश यादव की सरकार के पांच वर्ष का लेखा-जोखा है वह भी भ्रष्टाचार की कहानी और वंशवाद के विस्तृत विवरण के साथ में है। पुस्तक लखनउ के साथ ही साथ वाराणसी, इलाहाबाद, झांसी, कानपुर, मेरठ सहित सभी जगहों पर उपलब्ध है और तेजी से आम जन तक पहुंच रही है।
हिन्दी के चर्चित और चहेते गद्यकार अनिल यादव की नई किताब ‘सोनम गुप्ता बेवफा नहीं है’ बाजार में आई
Siddharth Kalhans : पहली बार किसी ने दस रुपये के नोट पर लिखा होगा, सोनम गुप्ता बेवफा है, तब क्या घटित हुआ होगा? क्या नियति से आशिक, मिज़ाज से अविष्कारक कोई लड़का ठुकराया गया होगा, उसने डंक से तिलमिलाते हुए सोनम गुप्ता को बदनाम करने की गरज से उसे सरेबाजार ला दिया होगा? या वह सिर्फ फरियाद करना चाहता था, किसी और से कर लेना लेकिन सोनम से दिल न लागाना।
अनिल यादव
उन्होंने पेड़ काट डाले और तूफान ने उन्हें नष्ट कर डाला!
Amarendra Kishore : आज से पचास वर्ष बाद क्या स्थिति होगी? ”कोलैप्स : हाउ सोसाइटीज चूज़ टू फेल और सक्सीड’ नामक किताब के लेखक है जार्ड डायमंड। बिगड़ते पर्यावरण, सरकार की कॉर्पोरेट के प्रति नरम रवैया और व्यापारिक हितों को ध्यान में रखकर बनायी जाने वाली सरकारी नीतियों पर केंद्रित यह किताब भारत के आदिवासी इलाकों के हालात से प्रभवित होकर लिखी गयी लगती है। जिक्र है कि एक ईस्टर आइलैंड है जो प्रशांत महासागर में है– यहां काफी बड़े-बड़े पेड़ों को वहां रहने वाले लोग अपने रिवाज कि लिए काटा करते थे, जबकि उन्हें मालूम था कि तेज समुद्री हवाओं से ये बड़े पेड़ उन्हें बचाते हैं, लेकिन फिर भी उन्होंने एक-एक करके पेड़ों को काट डाला। अंत में समुद्री तूफान से वह आइलैंड नष्ट हो गया। कमोबेश आदिवासी भारत में भी यही स्थिति बनती जा रही है.
राणा यशवंत की अगली किताब ‘अर्धसत्य’
Rana Yashwant : मेरी अगली किताब ‘अर्धसत्य’ पर काम जारी है. आमिर ख़ान पर जो एपिसोड था, उस पर जो लिखा है, उसका एक टुकड़ा आपके लिए. कांटेंट और टेक्सचर दोनों का थोड़ा ख्याल रखा है.
देव प्रकाश चौधरी की किताब ‘जिसका मन रंगरेज’ का विमोचन
पत्रकार और चित्रकार देव प्रकाश चौधरी की नई किताब ‘जिसका मन रंगरेज’ का स्वागत कला जगत के साथ-साथ पत्रकार जगत में भी जोर-शोर से हुआ है। पिछले 14 अक्टूबर को इस किताब का भव्य विमोचन जयपुर में आयोजित सार्क सूफी फेस्टिवल में मशहूर कथाकार अजीत कौर के हाथों हुआ। इस कार्यक्रम में देश-विदेश के दिग्गज विद्वानों की मौजूदगी रही। हिंदी में अपनी तरह की इकलौती और बेहद आकर्षक यह किताब ‘जिसका मन रंगरेज’ मशहूर चित्रकार अर्पणा कौर की कला दुनिया को नए सिरे से परिभाषित करती है।
मधोक की किताब का अंश- ‘अटल बिहारी वाजपेयी ने 30, राजेंद्र प्रसाद रोड को व्यभिचार का अड्डा बना दिया है’
अपनी पुस्तक के तीसरे खंड के पृष्ठ संख्या 25 पर मधोक ने लिखा है “मुझे अटल बिहारी और नाना देशमुख की चारित्रिक दुर्बलताओं का ज्ञान हो चुका था। जगदीश प्रसाद माथुर ने मुझसे शिकायत की थी कि अटल (बिहारी वाजपेयी) ने 30, राजेंद्र प्रसाद रोड को व्यभिचार का अड्डा बना दिया है। वहां नित्य नई-नई लड़कियां आती हैं। अब सर से पानी गुजरने लगा है।
शाजी ज़मां की बीस साल की मेहनत है ‘अकबर’
Ajit Anjum : शाजी ज़मां हिन्दी टीवी चैनलों के सबसे संजीदा और संवेदनशील पत्रकारों में से एक हैं… शाजी कम बोलते हैं, कम दिखते हैं, कम लिखते हैं, कम लिखते हैं, कम मिलते हैं लेकिन जो भी सोचते और रचते हैं, वो सबसे अलहदा होता है… शायद इसलिए भी कि वो कहने-बताने से ज़्यादा चुपचाप करते रहने में यक़ीन करते हैं… शाजी को मैं क़रीब पंद्रह सालों से जानता हूँ और जितना जानता हूँ, उसके आधार पर कह सकता हूँ कि उनकी ये किताब साहित्य की दुनिया में हलचल मचाएगी… अकबर जैसे किरदार पर शाजी ने इतना काम करके कुछ रचा है तो ये हर साल छपने वाले उपन्यासों की भीड़ से अलग होगा…
यशस्वी संपादक गिरीश मिश्र के साठवें जन्मदिन पर उनकी किताब ‘देखी-अनदेखी’ का विमोचन
दैनिक जागरण, दैनिक हिंदुस्तान, दैनिक भास्कर, लोकमत समेत कई अखबारों के संपादक रह चुके वरिष्ठ और यशस्वी पत्रकार गिरीश मिश्र ने बीते 16 जुलाई को अपना साठवां जन्मदिन सादगी के साथ मनाया. इस मौके पर उनके परिजन और चाहने वाले मौजूद थे. 16 जुलाई का दिन गिरीश मिश्र के लिए एक यादगार और दोहरी ख़ुशी का दिन था. इस दिन उनका जन्मदिन तो था ही, इसी दिन एक गरिमापूर्ण समारोह में उनकी पुस्तक ‘देखी अनदेखी’ का विमोचन भी किया गया.
GUJARAT FILES पढ़ते हुए मन में कुछ सवाल पैदा हो रहे हैं…
Anil Pandey : GUJARAT FILES पढ़ते हुए मन में कुछ सवाल पैदा हो रहे हैं… पत्रकार राणा अयूब की किताब GUJARAT FILES पढ़ते हुए मन में कुछ सवाल पैदा हो रहे हैं। पहला यह कि तकरीबन पांच साल पहले गुजरात दंगों को लेकर किया गया स्टिंग मोदी सरकार के दो साल पूरे होने पर किताब कि शक्ल में क्यों प्रकाशित किया गया? दूसरा, इस किताब के प्रकाशन और प्रचार प्रसार पर इतना पैसा क्यों खर्च किया जा रहा है और यह पैसा कहां से आ रहा है? इस किताब को किसी प्रकाशक ने नहीं, खुद राणा अयूब ने प्रकाशित किया है।
इस बेखौफ और जांबाज महिला पत्रकार राणा अय्यूब को सलाम
Shikha : एक बेख़ौफ़ लड़की, एक जांबाज़ पत्रकार, नाम राणा अय्यूब. 26 साल की तहलका मैगज़ीन की पत्रकार साल 2010 में तहकीकात करने एक अंडरकवर रिपोर्टर के रूप में गुजरात पहुँचती हैl अपनी तहकीकात के दौरान नाम बदलकर मैथिली त्यागी रखती है और कई स्टिंग ऑपरेशन को अंजाम देती है जो नीचे के छुटभैय्ये अफसर-नेताओं से लेकर ऊपर मोदी-अमित शाह तक के दर्जे के नेताओं की दंगों से लेकर अनेक फर्जी एनकाउंटरों में अपराधी-हत्यारी भूमिकाओं का पर्दाफ़ाश करती हैl
दिल्ली में उर्दू पत्रकारिता और शाहिद की यह किताब
हाल में, बिहार के ही एक चर्चित उर्दू पत्रकार, शाहिदुल इस्लाम, ने उर्दू सहाफ़त (पत्रकारिता) को लेकर एक गंभीर, शोधपरक किताब लिखी है। शीर्षक है ‘दिल्ली में असरी उर्दू सहाफ़त‘, यानी दिल्ली की समकालीन उर्दू पत्रकारिता। एक उप-शीर्षक भी है इस किताब का: ‘तस्वीर का दूसरा रुख़‘। अपने निष्कर्षों में, यह किताब उर्दू पत्रकारिता के बारे में जागरूक पाठकों की आम धारणा को ही मजबूत आधार देती है। साथ ही, उर्दू अख़बारों के अपने दावों को गहरी चुनौती भी देती है, शाहिद की यह किताब।
इस किताब में बेचैनी से भरा हुआ भारत अपने हर रंग-रूप और हर माहौल-मूड में दिखाई देगा
मित्रों,
यह लिंक http://www.amazon.in/dp/9384056022 अमेजन की है। इसे देख लीजिएगा। जैसा कि आप जानते हैं कि 2010 से 2015 के बीच दैनिक भास्कर के नेशनल न्यूजरूम में रहते हुए मैंने स्पेशल स्टोरी कवरेज के लिए भारत की करीब 8 यात्राएं की हैं। शायद ही कोई विषय हो, जो देश के किसी न किसी कोने से कवर न हुआ हो। अखबार के संडे जैकेट पर तीन भाषाओं में देशव्यापी कवरेज की एक झलक आप सबने देखी-पढ़ी।
चीन के बारे में लिखने वाले चुनिंदा पत्रकारों में शामिल हुए अनिल आज़ाद पांडेय
‘मेड इन चाइना’ से इतर छवि पेश करती है, ‘हैलो चीन’ किताब
किताब शीर्षक- ‘हैलो चीन : देश पुराना, नई पहचान’
लेखक- अनिल आज़ाद पांडेय
प्रकाशन- राजकमल प्रकाशन
वैसे दुनिया भर में मेड इन चाइना के तमाम किस्से हैं। लेकिन हैलो चीन किताब चीन के बनने की, एक ताकत के रूप में उभरने की, उसकी मुकम्मल पहचान की कहानी को सामने लाती है। हाल के वर्षों में चीन पहुंचने वाले भारतीयों की तादाद में काफी इजाफ़ा हुआ है। जिसमें चीन-भारत के बीच बिजनेस आदि के क्षेत्र में करने वाले सबसे अधिक हैं। जबकि चीन के विकास से आकर्षित होकर चीनी भाषा सीखने वाले छात्रों और निजी कंपनियों में काम करने वाले लोगों की संख्या भी लगातार बढ़ रही है। लेकिन चीन में रहकर उस अजनबी से देश को समझने वाले और उसके बारे में कलम चलाने वाले पत्रकारों की संख्या बहुत कम है। अपनी लेखनी को किताब का रूप देने वाले और भी कम हैं। लेखक अनिल आज़ाद पांडेय शायद चुनिंदा पत्रकारों में से एक हैं, जिनहोंने चीन के बारे में किताब लिखने का सफल प्रयास किया है। लेखक मानते हैं कि किताब में मौजूद जानकारी भारतीय लोगों की चीन और चीनियों के बारे में समझ को बढ़ाएगी।
अनिता भारती की किताब को ‘सावित्री बाई फुले वैचारिकी सम्मान 2016’ की घोषणा
स्त्रीवादी पत्रिका ‘स्त्रीकाल, स्त्री का समय और सच’ के द्वारा वर्ष 2016 के लिए ‘सावित्री बाई फुले वैचारिकी सम्मान’ लेखिका अनिता भारती की किताब ‘समकालीन नारीवाद और दलित स्त्री का प्रतिरोध’ (स्वराज प्रकाशन) को देने की घोषणा की गई है. अर्चना वर्मा , सुधा अरोड़ा , अरविंद जैन, हेमलता माहिश्वर, सुजाता पारमिता, परिमला आम्बेकर की सदस्यता वाले निर्णायक मंडल ने यह निर्णय 3 अप्रैल को 2016 को बैठक के बाद लिया . 2015 में पहली बार यह सम्मान शर्मिला रेगे को उनकी किताब ‘ अगेंस्ट द मैडनेस ऑफ़ मनु : बी आर आम्बेडकर्स राइटिंग ऑन ब्रैहम्निकल पैट्रीआर्की ‘ (नवयाना प्रकाशन) के लिए दिया गया था.
‘जानेमन जेल’ के लिए उत्सवधर्मी यशवंत भड़ासी को सलाम!
Ayush Shukla : लोग कई दशक तक पत्रकारिता करते रहते हैं और जेल जाने की नौबत तक नहीं आपाती, क्योकि वे ऐसा कुछ लिख-पढ़ नहीं पाते, कुछ हंगामेदार कर नहीं पाते कि उन्हें भ्रष्ट लोग भ्रष्ट सिस्टम जेल भेज पाता। Yashwant Singh की जानेमन जेल से साभार। मजा आ गया पढ़ के। किसी भी जेल जाने वाले व्यक्ति को यह पुस्तक जरूर पढ़नी चाहिए। उत्सवधर्मी यशवंत भड़ासी को सलाम।
आयुष शुक्ला
क्लस्टर इनोवेशन सेंटर
दिल्ली विश्वविद्यालय
किसानों की आत्महत्या पर केंद्रित पंकज सुबीर के नये उपन्यास ‘अकाल में उत्सव’ की समीक्षा
पंकज सुबीर हमारे समय के उन विशिष्ट उपन्यासकारों में है जिनके पास ‘कन्टेन्ट’ तो है ही उसे अभिव्यक्त करने की असीम सामर्थ्य भी है। किस्सा गोई की अद्भुत ताकत उनके पास है। ‘अकाल में उत्सव’ पंकज सुबीर का हाल में प्रकाशित उपन्यास है, जिसकी चर्चा हम यहां कर रहे हैं। पंकज सुबीर ने अपने पहले ही उपन्यास ‘ये वो सहर नहीं’ (वर्ष 2009) से जो उम्मीदें बोई थीं वे ‘अकाल में उत्सव’ तक आते-आते फलीभूत होती दिख रही हैं। नौजवान लेखक पंकज सुबीर इन अर्थों में विशिष्ट उपन्यासकार है कि वे अपने लेखन में किसी विषय विशेष को पकड़ते हैं और उस विषय को धुरी में रखकर अपने पात्रों के माध्यम से कथ्य का और विचारों का जितना बड़ा घेरा खींच सकते हैं, खींचने की कोशिश करते हैं। उनकी सबसे बड़ी ताकत यह है कि वे विषयवस्तु, पात्रों और भाषा का चयन बड़ी संजीदगी से करते हैं और उसमें इतिहास और मनोविज्ञान का तड़का बड़ी खूबसूरती से लगाते हैं।
डॉ. बी. आर. आंबेडकर पर चार लाख पुस्तिकाएं छाप कर फंस गई गुजरात की भाजपा सरकार
Dilip C Mandal : गुजरात सरकार के सामने एक अजीब मुसीबत आ गई है. चार लाख की मुसीबत. वजन के हिसाब से, कई क्विंटल मुसीबत. गुजरात सरकार के शिक्षा विभाग ने आंबेडकर सालगिरह समारोह पर एक Quiz कराने का फैसला किया. पांचवीं से आठवीं क्लास के बच्चों के लिए. इसके सवाल एक बुकलेट से आने थे. बुकलेट छपी गई. चार लाख कॉपी. इन्हें स्कूलों में बांटा जाना तय हुआ.
टेरर पालिटिक्स पर वार करती किताब ’आपरेशन अक्षरधाम’
देश में कमजोर तबकों दलित, आदिवासी, पिछड़ी जातियों, अल्पसंख्यकों और महिलाओं को दोयम दर्जे की स्थिति में बनाए रखने की तमाम साजिशें रचने तथा उसे अंजाम देने की एक परिपाटी विकसित हुई है। इसमें अल्पसंख्यकों विशेषकर मुस्लिम आबादी को निशाना बनना सबसे ऊपर है। सांप्रदायिक हिंसा से लेकर आतंकवाद के नाम पर बेगुनाह मुस्लिमों को ही प्रताडि़त किया जाता है। इसमें राज्य व्यवस्था की मौन सहमति व उसकी संलिप्तता का एक प्रचलन निरंतर कायम है। राज्य प्रायोजित हिंसा के खिलाफ आंदोलनरत पत्रकार और डाक्यूमेंन्ट्री फिल्म निर्माता राजीव यादव और शाहनवाज आलम राज्य व्यवस्था द्वारा रचित उन्हीं साजिशों का ’ऑपरेशन अक्षरधाम’ किताब से पर्दाफाश करते हैं। यह किताब उन साजिशों का तह-दर-तह खुलासा करती है जिस घटना में छह बेगुनाह मुस्लिमों को फंसाया गया। यह पुस्तक अक्षरधाम मामले की गलत तरीके से की गई जांच की पड़ताल करती है साथ ही यह पाठकों को अदालत में खड़ी करती है ताकि वे खुद ही गलत तरीके से निर्दोष लोगों को फंसाने की चलती-फिरती तस्वीर देख सकें।
फादर कामिल बुल्के तुलसी के हनुमान हैं : केदारनाथ सिंह
वाराणसी। प्रख्यात कवि केदारनाथ सिंह ने कहा है कि कुछ चीजें रह जाती हैं जिसकी कसक जीवन भर, आखिरी सांस तक बनी रहती है। मेरे जीवन की कसक कोई पूछे तो कई सारी चीजों में एक है फादर कामिल बुल्के से न मिल पाने, न देख पाने की कसक। मैं उन दिनों बनारस में था जब वे इलाहाबाद में शोध कर रहे थे। धर्मवीर भारती, रघुवंश से अक्सर उनकी चर्चा सुनता था लेकिन उनसे न मिल पाने का सुयोग घटित न होना था तो न हुआ। वे तुलसी के हनुमान थे। हनुमान ने जो काम राम के लिए किया है, तुलसीदास और रामकथा के लिए वही काम फादर कामिल बुल्के ने किया।
गुजराती छात्रों में वितरित अंबेडकर पर लिखी पुस्तक की लाखों प्रतियां सरकार ने लौटाईं
गुजरात में कथित रूप से हिंदू विरोधी सामग्री के कारण वहां के कक्षा छह से आठवीं के स्कूलों में डॉक्टर भीमराव अंबेडकर की 125वीं जयंतr पर बांटी गईं पुस्तकें प्रदेश सरकार ने प्रतिबंधित कर दी हैं।
पुस्तक-समीक्षा : पं.दीनदयाल उपाध्याय की याद दिलाती एक किताब
भारतीय जनता पार्टी के प्रति समाज में जो कुछ भी आदर का भाव है और अन्य राजनीतिक दलों से भाजपा जिस तरह अलग दिखती है, उसके पीछे महामानव पंडित दीनदयाल उपाध्याय की तपस्या है। दीनदयालजी के व्यक्तित्व, चिंतन, त्याग और तप का ही प्रतिफल है कि आज भारतीय जनता पार्टी देश की सबसे बड़ी पार्टी बनकर राजनीति के शीर्ष पर स्थापित हो सकी है। राज्यों की सरकारों से होते हुए केन्द्र की सत्ता में भी मजबूती के साथ भाजपा पहुंच गई है। राजनीतिक पंडित हमेशा संभावना व्यक्त करते हैं कि यदि दीनदयालजी की हत्या नहीं की गई होती तो आज भारतीय राजनीति का चरित्र कुछ और होता। दीनदयालजी श्रेष्ठ लेखक, पत्रकार, विचारक, प्रभावी वक्ता और प्रखर राष्ट्र भक्त थे। सादा जीवन और उच्च विचार के वे सच्चे प्रतीक थे। उन्होंने शुचिता की राजनीति के कई प्रतिमान स्थापित किए थे। उनकी प्रतिभा देखकर ही श्यामा प्रसाद मुखर्जी ने कहा था कि यदि मेरे पास एक और दीनदयाल उपाध्याय होता तो मैं भारतीय राजनीति का चरित्र ही बदल देता।
जयप्रकाश त्रिपाठी की पुस्तक ‘मीडिया हूं मैं’ को ‘बाबूराव विष्णु पराड़कर पुरस्कार’
उत्तर प्रदेश हिंदी संस्थान की ओर से आज वर्ष 2014 में प्रकाशित पुस्तकों पर सम्मान एवं पुरस्कारों की घोषणा कर दी गई। इसके अंतर्गत संस्थान ने पत्रकारित पर केंद्रित पुस्तक ‘मीडिया हूं मैं’ को ‘बाबूराव विष्णु पराड़कर पुरस्कार’ से सम्मानित करने का निर्णय लिया है।
बदल रही है हिन्दी की दुनिया
हिन्दी और पत्रकारों के बीच लोकप्रिय साइट भड़ास4मीडिया (Bhadas4Media) पर ‘जिन्दगी’ का विज्ञापन अमैजन की ओर से। हिन्दी के दिन बदलेंगे? सरकारी खरीद के भरोसे रहने वाले हिन्दी के प्रकाशकों ने हिन्दी के लेखकों को खूब छकाया है। किताबें बिकती नहीं हैं, खरीदार कहां हैं – का रोना रोने वाले प्रकाशकों के रहते हुए मुमकिन है कि हिन्दी के लेखक भविष्य में खुद ही प्रकाशक भी बन जाएं। या लेखक और रचना को पहचानने वाले नए प्रकाशक सामने आएं और लेखक पाठकों तक आसानी से पहुंच सकें। भड़ास4मीडिया चलाने वाले यशवंत सिंह नेट पर लिखकर पैसा कमाने के तरीके बताने के लिए अलग आयोजन कर चुके हैं और चाहते हैं कि हिन्दी वाले कुछ अलग और नया करें। आत्म निर्भर हों। इसपर फिर कभी।
‘जानेमन जेल’ पढ़ते हुए ऐसा लगता है जैसे यशवंत जी सामने बैठ कर अपनी कहानी सुना रहे हों…
Prabudha Saurabh : यशवंत जी की किताब ‘जानेमन जेल’ पढ़ना बिलकुल नया अनुभव रहा। ‘जेल’ और ‘जानेमन’ शब्द का एक साथ होना ही इस किताब के प्रति आकर्षण पैदा करने के लिए काफ़ी था, दूसरा आकर्षण यशवंत। यह किताब मोटे तौर पर (हालांकि है बड़ी पतली सी) यशवंत जी की दो-तीन महीने की आपबीती (या यों कहें कि जेलबीती) है। निजी रूप में जितना मैं यशवंत जी को जानता हूँ, यह समझना तो मुश्किल है, कि वो क्रांतिकारी ज़्यादा हैं या पत्रकार लेकिन इतना ज़रूर है कि वो एक अनूठा फॉर्मूला हैं।
उपराष्ट्रपति करेंगे रामगोपाल यादव की पुस्तक का विमोचन
राज्यसभा सदस्य एवं समाजवादी पार्टी के महासचिव-प्रवक्ता प्रो. रामगोपाल यादव के भाषणों पर आधारित पुस्तक का विमोचन यादव के जन्मदिन 29 जून को इंडिया इस्लामिक कल्चरल सेंटर में उपराष्ट्रपति हामिद अंसारी करेंगे।
लंदन में जारी हुई ‘इश्क़ कोई न्यूज़ नहीं’ की प्रोमो पुस्तिका
लंदन : ‘लप्रेक : फेसबुक फिक्शन श्रृंखला की दूसरी किताब ‘इश्क़ कोई न्यूज़ नहीं’ को पाठकों के बीच लाने की तैयारियाँ जब ज़ोरों पर हैं, इसी बीच इसका प्रोमो लंदन में आयोजित एक कार्यशाला के उपरान्त अनौपचारिक रूप से लांच किया गया।
पुस्तक चर्चा : आचार्य कृपलानी स्वतंत्रचेता थे, विद्रोही नहीं : बनवारी
नई दिल्ली : वरिष्ठ पत्रकार राम बहादुर राय द्वारा लिखित पुस्तक ‘शाश्वत विद्रोही राजनेताः आचार्य जे बी कृपलानी’ पर आचार्य कृपलानी मेमोरियल ट्रस्ट की ओर से एक परिचर्चा आयोजित की गई। गांधी शांति प्रतिष्ठान में आयोजित इस परिचर्चा में बड़ी संख्या में लेखक, पत्रकार, समाजकर्मी एवं छात्र मौजूद थे।
देखिए एनसीईआरटी की किताब में ‘विद्वानों’ ने ‘बिदेसिया’ के बारे में क्या लिख डाला है!
Dilip Gupta : यह जानकारी ‘बिदेसिया’ के बारे में एनसीईआरटी की कक्षा 6 की किताब में दी गई है। विषय हिंदी और पाठ का नाम लोकगीत। ज़रा आप भी एक नज़र डालें…। समझ में नहीं आता कि जो कमेटी बैठती है वो काम क्या करती है। खाली चैप्टरवे का नाम पढ़ती है का। इन पर तरस नहीं बल्कि गुस्सा आता है। टेक्स्टबुक में ऐसा गलत लिखा जाएगा तो इसे पढ़कर बच्चे क्या धारणा बनाएंगे।
जिन्दगी के बिल्कुल पास की ग़ज़लें : कुमार कृष्णन
समकालीन हिन्दी ग़ज़लों की अभिव्यक्जि और उनकी सम्प्रेषणीयता हिन्दी काव्य को एक नए मोड़ पर उत्साहपूर्वक भविष्य को जन्म देने के लिए अग्रसर है। आज हिन्दी में जो ग़ज़लें लिखी जा रही है, उसका सीधासीधा सरोकार समकालीन आम जीवन से है। भाव, कल्पना और बुद्धि के साथसाथ आक्रोश और ओज का भी मिलाजुला स्वर देखने को मिल जाया करता है। यही स्वर पठनीयता को भी अपनी ओर आकर्षित करता है।
आईपीएस संवर्ग की भद्द पीटती एक रिटायर दरोगा की किताब ‘आईना’
सेवानिवृत्त पुलिस उपनिरीक्षक अशोक कुमार सिंह की पुस्तक ‘आईना’ अगर किसी प्रतिष्ठित प्रकाशन से छपी होती तो बहुत चर्चित हो जाती क्योंकि इसमें उन्होंने आईपीएस संवर्ग को जिस तरीके से आईना दिखाया है, वह विस्फोटक की हद तक सनसनीखेज है।
मेरे प्रति तबके तीन सीनियर हरिवंशजी, संजीव क्षितिज और हरिनारायणजी का नजरिया काफी बदल गया था
ओमप्रकाश अश्क
जीवन में जटिलताएं न आयें तो आनंद की अनुभूति अलभ्य है। मुंह जले को ही तो मट्ठे की ठंडाई का एहसास हो सकता है। जो ठंड में ही रहने का आदी हो, उसके लिए ठंड का का क्या मायने? और अगर ठंड के बाद जलन की पीड़ा झेलनी पड़े तो उसकी हालत का आप अनुमान लगा सकते हैं। हरिवंशजी ने प्रथमदृषटया भले ही मुझे घमंडी समझ लिया था, लेकिन बाद के दिनों में उनकी यह धारणा बदली और वह मेरी शालीनता के कायल हो गये। मैं दफ्तर में शायद ही किसी से घुल-मिल कर बातें करता था। तब अपने काम में मगन रहना ही मुझे ज्यादा श्रेयस्कर लगा। बीच-बीच में हरिवंशजी मुझे अंगरेजी-हिन्दी अखबारों की कतरनें देते और उनसे एक नयी स्टोरी डेवलप करने को कहते। मैं वैसा करने लगा। हरिनारायण जी की कृपा से वैसे पीस बाईलाइन छप जाते। ऐसी बाईलाइन स्टोरी की संख्या जितनी होती, उतने 40 रुपये की कमाई हो जाती। इसका भुगतान वेतन वितरण के पखवाड़े-बीस दिन बाद होता।
सीएम शिवराज ने किया ‘आंखों देखी फांसी’ का लोकार्पण
भोपाल : किताब ‘ऑंखों देखी फांसी’ एक रिपोर्टर के रोमांचक अनुभव का दस्तावेज है. किसी पत्रकार के लिये यह अनुभव बिरला है तो संभवत: हिन्दी पत्रकारिता में यह दुर्लभ रिपोर्टिंग. लगभग पैंतीस वर्ष बाद एक दुर्लभ रिपोर्टिंग जब किताब के रूप में पाठकों के हाथ में आती है तो पीढिय़ों का अंतर आ चुका होता है. बावजूद इसके रोमांच उतना ही बना हुआ होता है जितना कि पैंतीस साल पहले. एक रिपोर्टर के रोमांचक अनुभव का दस्तावेज के रूप में प्रकाशित ये किताब हिन्दी पत्रकारिता को समृद्ध बनाती है. देश के ख्यातनामा पत्रकार गिरिजाशंकर की इस किताब का विमोचन मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराजसिंह चौहान ने गत दिनो किया. इस अवसर पर कार्यक्रम में सम्पादक श्रवण गर्ग भी उपस्थित थे.
गंभीर मुद्दे उठाने के लिए अफसरों का रिटायरमेंट तक रुकना पाप सरीखा : आईपीएस अमिताभ ठाकुर
पूर्व आईएएस प्रोमिला शंकर की पुस्तक आई है. उन्होंने रिटायरमेंट के बाद किताब लिखकर कई गंभीर मुद्दों की तरफ ध्यान खींचा है. ऐसे गंभीर मुद्दों पर ध्यान खींचने के लिए रिटायरमेंट का इंतजार करना और तब तक चुप रहना पाप सदृश है. मैं रिटायर्ड आईएएस अफसर द्वारा कई गंभीर मुद्दों को सेवानिवृत्ति के बाद उठाये जाने को पाप के अलावा सेवा नियमावली का उल्लंघन भी समझता हूँ.
‘गॉड ऑफ करप्शन’ में आईएएस प्रोमिला ने खोले यूपी के भ्रष्ट अफसरों के काले कारनामे
लखनऊ : भारतीय प्रशासनिक सेवा (आईएएस) में उत्तर प्रदेश कैडर की सेवानिवृत्त अधिकारी प्रोमीला शंकर ने केन्द्रीय कैबिनेट सचिव अजीत सेठ समेत कई वरिष्ठ अधिकारियों के खिलाफ आरोपों का पिटारा खोला है. वर्ष 1976 बैच की आईएएस अधिकारी प्रोमिला फरवरी 2012 में रिटायर हुई थीं. नौकरशाही के गिरते स्तर पर आधारित अपनी पुस्तक ‘गॉड ऑफ करप्शन’ में उन्होंने कई वरिष्ठ अधिकारियों के भ्रष्टाचार की पोल खोली है। कितामें उन्होंने केन्द्रीय कैबिनेट सचिव के पद पर रह चुके टीएसआर सुब्रामनियम से लेकर नरेन्द्र मोदी सरकार में केन्द्रीय कैबिनेट सचिव अजीत सेठ तक के कारनामों का जिक्र किया है.
यूपी में पुस्तक माफिया का बोलबाला, लुगदी साहित्य की ऊंचे दामों पर भरपूर खरीद
उत्तर प्रदेश की लॉयब्रेरियों के लिए सरकारी पुस्तकों की खरीद में पिछले वर्षों की तरह इस बार भी पुस्तकालय प्रकोष्ठ के अधिकारियों और माध्यमिक शिक्षा विभाग के सचिव स्तर के एक वरिष्ठ अफसर की साठ-गांठ से भारी गड़बड़ी और मनमानी किए जाने की सूचना है। बताया गया है कि मुंह पर भरपूर कमीशन मार कर अपनी किताबें चयनित करा लेने वाले भ्रष्ट प्रकाशकों, उर्दू-हिंदी साहित्य अकादमियों तक पहुंच रखने वालो और राजनेताओं-अफसरों की चापलूसी करने वाले लेखकों की कानाफूसी से इस बार लुगदी साहित्य की ऊंचे दामों पर भरपूर खरीदारी हुई है। इससे सुपठनीय पुस्तकों के लेखकों-साहित्यकारों में भीतर ही भीतर प्रदेश सरकार की पुस्तक खरीद नीति पर भारी रोष है। कुछ पिछलग्गू किस्म के साहित्यकारों, विरुदावली गाने वाले रचनाकारों को ही खरीद में तरजीह दी गई है।
राजदीप सरदेसाई अपनी किताब इस तरह बेचते हैं…
Virendra Yadav : दिल्ली जाने पर खान मार्किट के बुकसेलर्स ‘बाहरीसंस’ में भरसक जाने की कोशिश करता हूँ. कारण एक पंथ दो काज हो जाता है ,नीचे किताब ऊपर फैब इंडिया का कुर्ता. परसों शाम वहां जाकर किताबें देख ही रहा था कि सामने राजदीप सरदेसाई दीख गए .एक व्यक्ति ने अपना परिचय देते हुए उनसे बातचीत शुरू ही की थी कि उन्होंने कहा कि ‘मेरी किताब आपने पढी की नहीं ?’ और किताब उठाकर उसे थमाते हुए कहा कि ‘पढ़िए जरूर’.
फेसबुक सामग्री पर पाबंदी की मांग करने वालों में भारत नंबर वन
नई दिल्ली : सोशल नेटवर्किग वेबसाइट फेसबुक ने जुलाई दिसंबर 2014 की अवधि में भारत सरकार के आदेश पर सबसे ज्यादा 5,832 सामग्री को अपनी वेबसाइट से हटाया है। इसमें धर्मविरोधी सामग्री तथा भड़काऊ भाषण शामिल हैं।
आपकी ‘जानेमन जेल’ तो मेरा भी दिल लूटकर ले गई
आदरणीय यशवंत भाई, अमेजोन ब्वॉय ने आज आपकी जानमेन जेल हाथों में रखी तो पता नहीं था दिन इसी के नाम करने वाला हूं। आफिस में पहला पन्ना खोला तो फिर रुका नहीं गया। आपकी जानेमन तो मेरा भी दिल लूटकर ले गई। सबसे पहले तो कुछ बेहतरीन किताबों के नाम सुझाने के लिए धन्यवाद और अफसोस है कि आपको जेल में चीफ साहब अंगुली कर गया। …खैर ये तो मजाक है लेकिन किताब बहुत सीरियस है।
यशवंत की ‘जानेमन जेल’ : विपरीत हालात में खुद को सहज, सकारात्मक और धैर्यवान बनाये रखने की प्रेरणा देने वाली किताब
पूनम
Poonam Scholar : इस बार विश्व पुस्तक मेला में एक ही बार जाने का मौका मिल सका. हिन्द युग्म प्रकाशन के सामने से गुजरते हुए अचानक याद आया कि इसी प्रकाशन से तो यशवन्त जी की पुस्तक ‘जानेमन जेल’ भी प्रकाशित हुई है. काफी समय से पढ़ने की इच्छा थी सो खरीद ली. कल जाकर समय मिला पढ़ने का. यशवन्त जी ने जेल जीवन के बारे में जो कुछ भी लिखा है उसे पढ़कर जेल के प्रति जो भ्रान्तियाँ हम लोगों के मनों में बनी हुई हैं न केवल वो दूर होती हैं बल्कि विपरीत परिस्थितियों में स्वयं को सहज, सकारात्मक और धैर्यवान बनाये रखने की प्रेरणा भी मिलती है.
महुआ माजी, वीरेन्द्र सारंग, मलय जैन, राम कुमार सिंह के उपन्यासों का लोकार्पण
विश्व पुस्तक मेले का छठा दिन पुस्तक लोकार्पणों के नाम रहा। राजकमल प्रकाशन समूह के स्टॉल (237-56) में तीन किताबों महुआ माजी की ‘मरंग गोड़ा निलकंठ हुआ’, मलय जैन की ‘ढाक के तीन पात’ व वीरेन्द्र सारंग का उपन्यास ‘हाता रहीम’ का लोकार्पण किया गया। महुआ माजी की किताब ‘मरंग गोड़ा निलकंठ हुआ’ के लोकार्पण के अवसर पर बोलते हुए वरिष्ठ कवि मंगलेश डबराल ने कहा कि, महुआ माजी के इस उपन्यास का पेपरबैक में आना खुशी की बात है। पेपर बैक से ही साहित्य का भविष्य है। इस उपन्यास के महत्व पर बोलते हुए उन्होंने कहा कि इस उपन्यास का समाजशास्त्रीय महत्व है। वरिष्ठ पत्रकार रामशरण जोशी ने मंगलेश जी की बातों को आगे बढ़ाते हुए कहा कि, आमतौर पर आदिवासी विमर्श को सतही ढंग से देखा जा रहा था, लेकिन अब बदलाव आया है। आदिवासी समस्या लेखक समझने लगे हैं।
रवीश कुमार का लेखन मनुष्यता बचाने का प्रयास है : निधीश त्यागी
विश्व पुस्तक मेला के तीसरे दिन युवाओं ने शहर से खूब इश्क फरमाया। मौका था लप्रेक श्रृंखला की पहली पुस्तक ‘इश्क़ में शहर होना’ पर चर्चा का। प्रगति मैदान के हॉल न. 6 के सेमिनार हॉल में युवाओं की भीड़ इस कदर उमड़ी की उन्हें खड़े होकर कार्यक्रम देखना पड़ा। वरिष्ठ टीवी पत्रकार रवीश कुमार लिखित ‘इश्क़ में शहर होना’ पर अपनी बात रखते हुए लेखक-पत्रकार निधीश त्यागी ने कहा “इस किताब ने जिस तरह से युवाओं में हिन्दी के प्रति आकर्षण पैदा किया है, वह एक शुभ संकेत है। रवीश अच्छे वाक्य लिखते हैं। इनके लिखे को पढ़ते हुए आप वैसे ही सांस लेते हैं जैसे इसे लिखते समय लेखक ने ली होगी। मनुष्यता बचाने का प्रयास है यह। हिन्दी के संदर्भ में यह कहा जा सकता है कि वह नए सिरे से सांस ले रही है।’’
छल-कपट वाली इस राजनीति में मैं अनफिट हूं : आशुतोष
आम आदमी पार्टी के नेता औऱ पार्टी के प्रवक्ता आशुतोष ने ‘मुखौटे का राजधर्म’ नामक किताब लिखी है. किताब के विमोचन से पहले कहा कि, राजनीति में छल-कपट है, मैं राजनीति में अनफिट हूं. आप नेता और पूर्व पत्रकार ने ट्वीट किया, ”मेरी किताब ‘मुखौटे का राजधर्म’ का विमोचन आज हाल नं 8, प्रगति मैदान में शाम 4.20 बजे है. नामवर सिंह, शशिशेखर किताब पर चर्चा करेंगे. आप आमंत्रिति हैं.
शाहनवाज हुसैन की पत्नी रेनु की किताब का 11 साल बाद फिर विमोचन
पूर्व केंद्रीय मंत्री शाहनवाज हुसैन की पत्नी रेनु के कविता संग्रह ‘जैसे’ का शनिवार, 13 फरवरी 2015 को अजमेर में हुआ विमोचन राजनीतिक चर्चाओं का हिस्सा बन गया। बताया जाता है कि इस कविता संग्रह का विमोचन सन् 2003 में हो चुका है। इतने साल बाद फिर से विमोचन कई को बेनकाब कर गया। अजमेर के कुछ चाटुकार साहित्यकारों और राजनेताओं की जुगलबंदी ने राजनीतिक फायदे और शाहनवाज से निकटता बढ़ाने के मकसद से रेनु को अजमेर के महर्षि दयानंद सरस्वती विश्वविद्यालय में एक समारोह में आमंत्रित किया।
संजय द्विवेदी द्वारा संपादित दो पुस्तकों का विमोचन
भोपाल, 10 फरवरी। मीडिया विमर्श के तत्वावधान में आयोजित समारोह में लेखक एवं मीडिया गुरु संजय द्विवेदी द्वारा संपादित दो पुस्तकों ‘अजातशत्रु अच्युतानंद’ और ‘मीडिया, भूमण्डलीकरण और समाज’ का विमोचन किया गया। इस मौके पर संपादक श्री द्विवेदी ने कहा कि दोनों पुस्तकें रचनात्मक और सृजनात्मक पत्रकारिता के पुरोधाओं को समर्पित हैं। पुस्तकों का विमोचन माखनलाल चतुर्वेदी पत्रकारिता विश्वविद्यालय के पूर्व विद्यार्थियों ने किया, जो इन दिनों देश के विभिन्न मीडिया माध्यमों में कार्यरत हैं। कार्यक्रम का आयोजन सात फरवरी को भोपाल स्थित गांधी भवन में किया गया। इस मौके पर दिल्ली, छत्तीसगढ़, पंजाब, मध्यप्रदेश, झारखण्ड, बिहार और उत्तरप्रदेश सहित अन्य शहरों से आए मीडियाकर्मी, बुद्धिजीवी एवं पत्रकारिता के विद्यार्थी मौजूद थे।
सरोज सिंह के पहले कविता संग्रह ‘तुम तो आकाश हो’ का लोकार्पण
8 फरवरी 2015 को इंदिरापुरम, ग़ाज़ियाबाद में Saroj Singh की काव्यकृति ‘तुम तो आकाश हो’ का विमोचन हुआ। इस किताब का लोकार्पण हिंदी की मूर्धन्य कथाकार मैत्रेयी पुष्पा, दुनिया इन दिनों के प्रधान संपादक सुधीर सक्सेना, कवि सिद्धेश्वर सिंह, संस्कृत की प्राध्यापिका हीरावती सिंह तथा लेखक और साइक्लिस्ट राकेश कुमार सिंह ने किया।
वरिष्ठ पत्रकार और साहित्यकार प्रदीप सौरभ के नए उपन्यास ‘और सिर्फ तितली” के कुछ अंश पढ़ें…
सबसे पहले आप जानें कि उपन्यास ”और सिर्फ तितली” के बारे में वरिष्ठ विश्लेषक और आलोचक सुधीश पचौरी का क्या कहते हैं: ”प्रदीप सौरभ का नया उपन्यास ‘और सिर्फ तितली’, पब्लिक स्कूली शिक्षा के भीतरी परतों को एक-एक कर खोलते हुए पब्लिक स्कूली शिक्षा जगत की अंदर की खुश्बू और सड़ांध को कुछ इस तरह पेश करता है कि आप पहली बार इस अनजाने, अनकहे जगत के समक्ष खडे़ हो जाते हैं, और अपने आप से पूछने लगते हैं कि आखिर वे क्या कारण है, जिनके चलते हमारी स्कूली शिक्षा और शिक्षण पद्धति अपनी सारी चमक दमक और दावों के बावजूद इस कदर खोखली और संस्कारविहीन हो चली है? छोटे-छोटे बच्चों की मासूमियत, उनकी जिज्ञासा एवं उनकी ज्ञान-पिपासा, उनका सोच-विचार, उनकी रचनात्मकता, उनका साहस, उनकी प्रयोग-प्रियता किस तरह से कुंठित होती जाती है? किस तरह से सुयोग्य, अच्छे और गुणी अघ्यापक और अघ्यापिकाएं अपने संस्थान के प्रबंधन की दोहन एवं शोषण नीति के चलते उत्साहविहीन होते जाते हैं? किस तरह से उनका शोषण किया जाता है? किस तरह वे आपसी मनमुटाव, टुच्ची गुटबाजी भरी राजनीति के चलते अपने सपनों को चकनाचूर होते देख मनोरोगों तक के शिकार होते रहते हैं? और किस तरह शिक्षा के इस महंगे तिलिस्म का कोई तोड़ नहीं है? और अगर कोई उसे तोडने की कोशिश करता है तो उसका क्या हश्र होता है? इन्हीं तमाम पहलुओं पर यह उपन्यास दिलचस्प शैली में रोशनी डालता है। उपन्यास की खासियत यह है कि आप इसे एक ही सीटिंग में पढ़ते चले जा सकते हैं। यही प्रदीप सौरभ की कथा-कलम की विशेषता है, जो उनके पहले के उपन्यासों ‘मुन्नी मोबाइल’, ‘तीसरी ताली’ और ‘देश भीतर देश’ में भी पूरी शिद्दत के साथ मौजूद है।”
रवीश की किताब ‘इश्क़ में शहर होना’ का हुआ लोकार्पण
जयपुर साहित्य महोत्सव में लप्रेक-फ़ेसबुक श्रृंखला की पहली पुस्तक इश्क में शहर होना का लोकार्पण अनूठे अंदाज में संपन्न हुआ। चारबाग मंडप में आयोजित ‘कहानी की नई करवट’ सत्र में इस पुस्तक का लोकार्पण जयपुर के युवा विद्यार्थियों ने किया। इस सत्र में लप्रेककार रवीश कुमार से कथाकार अनु सिंह चौधरी ने बातचीत की। रवीश कुमार ने अपनी किताब ‘इश्क़ में शहर होना’ से कई लघु कथाओं का पाठ किया।
पुस्तक समीक्षा : जमीं की प्यास में नदी की तलाश
हिन्दी कविता का यह इतिहास रहा है कि वह समय—समय पर अपनी परिधियों को तोड़ती रही है। अपने शिल्प के साथ कथ्य का भी समय—समय पर इसने परित्याग किया है। इसके पुराने इतिहास को देखने पर यह सहज ही सोचा और अनुमान लगाया जा सकता है। इसी परिवर्तन के क्रम में इसकी यात्रा गीत, नवगीत तथा मुक्तछंद कविता से होते हुए ग़ज़ल पर आकर ठहरती है। वैसे तो ग़ज़ल के बारे में यह घोषणा की जाती है कि हिन्दी में इसका प्रवेश उर्दू के रास्ते से हुआ है।
विनोद मेहता का आरोप- ”तरुण तेजपाल शुरू से ही इंटर्न और जूनियर लड़कियों से छेड़छाड़ करता था”
मशहूर पत्रकार विनोद मेहता की नई किताब ‘एडिटर अनप्लग्ड’ जल्द रिलीज होने वाली है. इस किताब का एक पेज पत्रकार अमन सेठी ने ट्वीट किया, जिसके बाद बवाल मच गया. इस पेज में विनोद मेहता ने तरुण तेजपाल के बारे में लिखा है कि वह आउटलुक मैग्जीन में जब काम करता था, तब भी अपनी सीनियर पोजीशन का फायदा इंटर्न और जूनियर लड़कियों से छेड़छाड़ करने में उठाता था. इस किताब और ताजा विवाद के बारे में अंग्रेजी अखबार डीएनए में खबर प्रकाशित हुई है. सबसे पहले अमन सेठी का ट्वीट और फिर अखबार में छपी खबर….
Aman Sethi @Amannama
All I know is Tejpal possibly assaulted young interns while working on my team , says Vinod Mehta in his new book
Complete Documents of Bhagat Singh in Urdu
This is my latest publication of Documents of Bhagat Singh in Urdu. In 2007, during birth centenary year of Bhagat Singh, Govt. of India for the first time published complete writings of Bhagat Singh, available by then in Hindi. The book was released by Kuldip Nayar in presence of two nephew of Bhagat Singh-Kiranjit Singh Sandhu and Abhey Singh Sandhu. Then it included 100 documents of Bhagat Singh.
टीवी न्यूज़ मीडिया पर चंदन की शीघ्र प्रकाशित होनेवाली किताब ‘काजल की कोठरी’ के कुछ अंश…
चैनल का मालिक समय से पहले चैनल चलानेवाले अधिकारी को कर्मचारियों की पगार दे देता था। लेकिन वो अधिकारी पहली या सात तारीख़ को भी कर्मचारियों को पगार नहीं देता था। बताते हैं कि वो उस रक़म को ब्याज़ की ख़ातिर व्यापारियों को दे देता था। कम पगार वाले कर्मचारियों के बहुत रोने –गाने पर वो 20-22 तक सैलरी देता था। यानी हाड़ तोड़ मेहनत करनेवाले कर्मचारियों को उनकी मेहनत का पैसा जैसे-तैसे महीने के आख़िर में मिलता था। मझोले और बड़े कर्मचारियों का तो और भी बुरा हाल था। उन्हें तो पगार उस समय मिलती थी, जब दूसरा महीना ख़त्म होने वाला होता था। कोढ़ पर खाज वाली बात तो ये भी थी कि चैनल के एक कार्यकारी संपादक महोदय सीईओ साहिब को रोज़ ये ज्ञान देते थे कि पत्रकारों को समय पर और ज़्यादा पैसे नहीं देने चाहिए। क्योंकि ज़्यादा सुखी होने पर ऐसे मुलाज़िम सीनियरों को दुखी करने की राजनीति करने लगते थे।
आईआईएमसी से निकलते ही होनहार पत्रकार हिमांशु ने ‘सही’ समय पर ‘सही’ कदम उठा लिया!
Abhishek Srivastava : स्वागत कीजिए Indian Institute Of Mass Communication(IIMC) से निकले इस होनहार पत्रकार Himanshu Shekhar का, जिसने ‘सही’ समय पर ‘सही’ कदम उठाते हुए पूरे साहस के साथ ऐसा काम कर दिखाया है जो अपनी शर्म-लिहाज के कारण ही सही, बड़े-बड़े पुरोधा नहीं कर पा रहे। मैं हमेशा से कहता था कि संस्थान में पत्रकारिता के अलावा बाकी सब पढ़ाया जाता है। बस देखते रहिए, और कौन-कौन हिंदू राष्ट्र की चौखट पर गिरता है।
हिमांशु शेखर की किताब ‘मैनेजमेंट गुरु नरेंद्र मोदी’ का विमोचन अमित शाह ने किया
नई दिल्ली : भारतीय जनता पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष श्री अमित शाह ने डायमंड बुक्स से प्रकाशित हिमांशु शेखर की पुस्तक ‘मैनेजमेंट गुरु नरेंद्र मोदी’ का विमोचन किया. इस मौके पर श्री शाह ने ऐसी पुस्तक के प्रकाशन के लिए डायमंड बुक्स के निदेशक श्री नरेंद्र वर्मा को बधाई दी और कहा की आप आगे भी ऐसी पुस्तकों का प्रकाशन करें. अमित शाह ने कहा की यह एक ऐसी पुस्तक है जिसमें उनके मुख्यमंत्री के कार्यकाल के अलावा बतौर प्रधानमंत्री के कार्यकाल में उनके द्वारा किए गए कार्यों का विस्तार से उल्लेख है. इन सबको उनके प्रबंधकीय कौशल के दृष्टिकोण से समझने की कोशिश की गई है. इस किताब का एक मकसद यह भी है कि लोगों के सामने उन बातों को लाया जाए, जो नरेंद्र मोदी से सीखी जा सकती हैं.
भड़ास संपादक यशवंत की जेल कथा ‘जानेमन जेल’ पढ़ने-पाने के लिए कुछ आसान रास्ते
भड़ास के संस्थापक और संपादक यशवंत सिंह के जेल-गमन की खुद यशवंत द्वारा लिखी गई कथा ‘जानेमन जेल’ ऑनलाइन स्टोरों से सीधे ऑर्डर करके घर बैठे प्राप्त की जा सकती है… नीचे दिए गए किसी आनलाइन स्टोर पर क्लिक करें और किताब बुक कर लें…
‘स्लीमेन के संस्मरण’ : ब्रिटिश इंडिया के दिनों का वर्णन करते हुए अंग्रेज अफसर स्लीमेन हिंदुस्तानियों को ‘सुखी लोग’ कहते हैं…
पुस्तक ‘स्लीमेन के संस्मरण’ का लोकार्पण पिछले शनिवार 15 नवंबर को जबलपुर स्थित शहीद स्मारक भवन में हुआ. इलाहाबाद के साहित्य भंडार द्वारा प्रकाशित इस पुस्तक का अनुवाद कवि-कथाकार राजेन्द्र चंद्रकांत राय ने किया है. विलियम हेनरी स्लीमेन ब्रिटिश इंडिया में सन 1810 से लेकर 1856 तक कई महत्त्वपूर्ण पदों पर रहे. उनकी ख्याति उत्तर भारत में ठगी प्रथा के उन्मूलन के लिए है.
सुभाष घई जब इस लड़की को हमबिस्तर करने के लिए राजी नहीं कर पाता तो उसके सामने masturbation करने लगता है!
Chandan Srivastava : इजराइल मूल की रीना गोलान ने इस किताब में बताया है कि बॉलीवुड में किस हद तक एक लड़की को सेक्स प्रोडक्ट समझा जाता है. बड़े-बड़े सितारे कितने रीढविहीन होते हैं. चाहे वो नचनिया शाहरुख हो या कोई और. परदेस जैसी फिल्म बनाने वाला सुभाष घई जब इस लड़की को हमबिस्तर करने के लिए राजी नहीं कर पाता तो कैसे उसकी आंखों के सामने ही masturbation करने लगता है.
Subject: Arvind Mohan’s review of My book in your web portal
Dear Yashwantji
Someone pointed out to me about this review and I read. After reading I was shocked. While I have nothing to say about Shri Arvind Mohan or his credibility I strongly object to insinuations and innuendos in his article against my book and my credibility. Not that his review would undermine these, but I wish to set the record straight.
डा. देवव्रत सिंह की नई पुस्तक ‘टेलीविजन प्रोडक्शन’
पुस्तक: टेलीविजन प्रोडक्शन
लेखक: डॉ. देवव्रत सिंह
प्रकाशक: माखनलाल चतुर्वेदी रार्ष्ट्रीय पत्रकारिता एवं संचार विश्वविद्यालय, भोपाल-462011
मूल्य: 175/-, पृष्ठ: 167
टेलीविजन को भले ही ‘बुद्धूबक्शा’ कहा जाता है, लेकिन सूचना एवं संचार प्रौद्योगिकी का पिछला 22 बरस इसके नाम रहा है। इस द्श्य-श्रव्य माध्यम ने अपने चमक और दमक के दम पर न केवल समाज में बदलते मूल्यों व संदर्भो को प्रतिष्ठापित किया है, बल्कि मानव जीवन को अर्थपूर्ण बनाने में अग्रणी भूमिका का निर्वह्न भी किया है। यहीं कारण है कि हिन्दी व अन्य प्रांतीय भाषाओं में टेलीविजन से जुड़ी विविध जानकारी देने वाली पुस्तकों का अभाव होने के बावजूद वर्तमान समय में देश के विभिन्न महाविद्यालयों और विश्वविद्यालयों में टेलीविजन पाठ्यक्रमों का लगातार विकास हो रहा है। इस संदर्भ में कुछ पुस्तकें उपलब्ध भी हैं तो उनमें टेलीविजन के ऐतिहासिक परिपेक्ष्यों तक सीमित ज्ञान ही हैं। किसी ने टेलीविजन के व्यावहारिक पक्षों को छुने का प्रयास तक नहीं किया है। ऐसे में झारखण्ड केंद्रीय विश्वविद्यालय, रांची के एसोसिएट प्रोफेसर डा. देवव्रत सिंह की नई पुस्तक ‘टेलीविजन प्रोडक्शन‘ अंधेरी सुरंग में जलती मशाल की तरह है।
तीन बड़ी आनलाइन दुकानों के बाद होमशाप18 ने भी किताबें बेचना बंद कर दिया
Shailesh Bharatwasi : किताबों की ऑनलाइन बिक्री के लिए बुरी ख़बरों के आने का दौर अभी थमा नहीं है। इस साल के शुरुआत से अब तक 4 बड़ी ऑनलाइन दुकानों ने किताबें बेचना बंद कर दिया है। ईबे, स्नैपडील, बुकअड्डा से किताबों की आलमारियाँ तो ग़ायब हो ही गई थीं, इस साल धनतेरस के दिन से होमशॉप18 ने भी किताबें बेचना बंद कर दिया। हम पाठकों के पास फ्लिपकार्ट, इंफीबीम और अमेज़ॉन जैसे गिने-चुने विकल्प ही बचे रह गए हैं। जिस तेज़ गति से ऑनलाइन मंडियों से किताबों का हिस्सा छिन रहा है, उससे तो यही लगता है कि ये कुछ विकल्पों के भी खत्म होने में ज़्यादा वक़्त शेष नहीं है। विशेषरूप से हिंदी किताबों के पाठकों के लिए किताबों की इन ऑनलाइन दुकानों ने जिस तरह से उम्मीद की फ़सल बोयी थी, लगता है उनको भी बुरे वक़्त का पाला मारता जा रहा है।
अभिनेत्री तनुजा ने किया मधुमती फ़िल्म पर किताब का लोकार्पण
मशहूर लेखिका रिंकी भट्टाचार्य की पुस्तक मधुमती (अनटोल्ड स्टोरीज़ फ्राम बिहाइंड दि सीन) का लोकार्पण 27 अक्टूबर की शाम को मुम्बई के रॉयल याट क्लब में अभिनेत्री तनुजा ने किया। तनुजाजी ने इस अवसर पर बिमल राय के निर्देशकीय कौशल और दिलीप कुमार की अभिनय प्रतिभा के साथ ही अभिनेता प्राण की ज़बरदस्त अदाकारी को भी याद किया। प्रतिष्ठित फ़िल्मकार बिमल राय की श्वेत-श्याम फ़िल्म मधुमती पर आधारित इस पुस्तक में उनकी सुपुत्री एवं लेखिका रिंकी भट्टाचार्य ने कई अनछुए पहलुओं को उजागर किया है। रिंकीजी ने बताया कि उनके पिता बिमल राय हमेशा बाइंडेड स्क्रिप्ट पर काम करते थे। शूटिंग के दौरान सेट पर उन्होंने कभी पटकथा में एक शब्द की भी तब्दीली को मंज़ूर नहीं किया। उनके पास एक पारिवारिक टीम थी। इस टीम में असित सेन, ऋषिकेश मुखर्जी और सलिलदा जैसे लोग शामिल थे जो अक्सर उनके घर आया करते थे।
मोदी पुराणों की धूम : गिनती करिए, मोदी पर हिंदी अंग्रेजी में कुल कितनी किताबें आ गईं!
Arvind Mohan
अब यह समझना कुछ मुश्किल है कि नरेन्द्र मोदी व्यक्ति भर हैं या कोई परिघटना हैं. उनकी राजनीति, उनकी कार्यशैली, उनकी सोच और इन सबके बीच उनकी सफलताएं जरूर उन्हें सामान्यजन से ऊपर पहुंचाती हैं. और उनकी ही भाषा में कहें तो उन्हें इसका एहसास है कि उन्हें प्रधानमंत्री बनने के लिए ही बनाया गया है. चुनाव प्रचार के दौरान उन्होंने कमल के निशान पर पड़े वोट सीधे उनको मिलने (उम्मीदवार, पार्टी और ग्ठबन्धन नहीं) और ईश्वर द्वारा इस काम अर्थात प्रधानमंत्री बनने के लिए चुने जाने की बात खुले तौर पर कही. कहना न होगा काफी कुछ उनकी इच्छा के अनुरूप ही हुआ. अब हम आप इसके अनेक कारण और उनके विरोधियों की कमजोरी या सीधापन को जिम्मेवार मानते रहें पर मोदी ने अपनी बड़ी इच्छा पूरी कर ली. हमें देवता के आशीर्वाद और आदेश की जगह उनकी तैयारियां, उनको उपलब्ध साधन, उनका अपूर्व प्रचार वगैरह-वगैरह नजर आता हो तो इसमें भी कोई हर्ज नहीं है. पर यह तो मानना ही पड़ेगा कि मोदी को चन्दा देने वालों ने चन्दे से ज्यादा हासिल किया होगा, उनका प्रचार करने वालों ने खर्च से ज्यादा पैसे निकाल लिए होंगे, उनका गुणगान करने वालों ने अपने-अपने यहां काफी कुछ हासिल कर लिया होगा- और यह सब इसी दरिद्रता के, इसी कमजोरी-बीमारी के, इसी पिछड़ेपन वाले भारत से निकाल लिया गया है. पर असली हिसाब यही है कि सबने छोटे-छोटे धन्धे करते हुए मोदी का मुख्य काम आसान कर दिया.
रमेश चंद्र अग्रवाल के कुकर्मों पर रेप पीड़िता लिख रही हैं किताब, मामले की कोर्ट में सुनवाई 29 अक्टूबर को
शादी का झांसा देकर पहले पति से तलाक दिलाना फिर खुद लगातार बलात्कार करने वाले भास्कर समूह के चेयरमैन रमेश चंद्र अग्रवाल के कुकर्मों पर किताब लिखने की तैयारी कर रही है रेप पीड़िता. भड़ास4मीडिया से बातचीत में जयपुर निवासी 45 वर्षीय पीड़िता ने बताया कि रमेश चंद्र अग्रवाल ने जो जो किया, कहा और जिया है, उस वह किताब में लिखेगी. पीड़िता का कहना है कि मीडिया का उसे बिलकुल सपोर्ट नहीं मिल रहा है. कोर्ट में सुनवाई के दौरान ईटीवी से लेकर पत्रिका तक के लोग जाते हैं लेकिन कोई खबर छापता दिखाता नहीं है. साथ ही पूरे मामले में पुलिस प्रशासन का रोल भी नकारात्मक है.
बीएचयू में संघ की शाखा और मुसलमानों के प्रति नफरत के बीज
Om Thanvi : प्रो. तुलसीराम की आत्मकथा के दूसरे भाग ‘मणिकर्णिका’ की बात मैंने परसों की थी। उस किताब में बनारस हिंदू विश्वविद्यालय के दिनों का एक प्रसंग इस तरह हैः
एक सफल आंदोलन पर केन्द्रित जरूरी किताब ‘और कोकाकोला हार गया’
उत्तराखंड के युवा पत्रकार प्रवीन कुमार भट्ट की किताब ‘और कोका कोला हार गया’ एक नई उम्मीद जगाती है। इस किताब में कोका कोला संयंत्र के खिलाफ देहरादून के छरबा गांव के लोगों द्वारा एक साल तक किए गए आंदोलन को सिलसिलेवार दर्ज किया गया है। ‘और कोका कोला हार गया’ ग्रामीणों की एकजुटता के आगे एक विदेशी बहुराष्ट्रीय कंपनी के घुटने टेक देने की कहानी भर नहीं है बल्कि अपने जंगल, जमीन और पानी की रक्षा के लिए ग्रामीणों के संघर्ष का दस्तावेज भी है। एक सफल आंदोलन पर सिलसिलेवार लिखी गई यह पुस्तक देश भर में जल, जंगल और जमीन की रक्षा के लिए चल रहे आंदोलनों से जुड़े आंदोलनकारियों के लिए भी प्रेरणादायक है। ‘और कोका कोला हार गया’ पुस्तक यह बताती है कि किस प्रकार सरकार द्वारा खुली छूट देने के बावजूद विदेशी कंपनी कोका कोला छरबा गांव में अपना संयंत्र स्थापित नहीं कर पाई।
‘डॉटर बाई कोर्ट ऑर्डर’ : एक किताब के जरिए मां नलिनी सिंह के चेहरे से नकाब हटाया बेटी रत्ना वीरा ने
कॉरपोरेट एक्ज़ीक्यूटिव से लेखिका बनीं रत्ना वीरा ने अपना पहला उपन्यास ‘डॉटर बाई कोर्ट ऑर्डर’ लु़टियन्स दिल्ली के रईसों के पारिवारिक संपत्ति विवादों की पृष्ठभूमि में लिखा है। कहानी की नायिका, अरण्या, एक दुखी पुत्री के रुप में सामने आती है जो अपने दादा की संपत्ति में अपना पाने के लिए अदालत का सहारा लेती है और परिवार की बेटी के रूप में अपनी पहचान स्थापित करती है।
दुनिया में जो इतनी अधिक हिंसा है, वह सब ईसा मसीह और बुद्ध जैसे लोगों की देन है!
Yashwant Singh : आजकल मैं यूजी कृष्णामूर्ति की एक किताब पढ़ रहा हूं, ”दिमाग ही दुश्मन है”. अदभुत किताब है. इसे पढ़कर लगने लगा कि सोचने विचारने की मेरी पूरी मेथोडोलाजी-प्रक्रिया ही सिर के बल खड़ा हो चुकी है. किताब का सम्मोहन-जादू-बुखार इस कदर चढ़ा कि इसे पढ़ते हुए माउंट आबू गया और दिल्ली आने के बाद भी पढ़ रहा हूं, दुबारा-तिबारा. तभी लगा कि किताब के कुछ हिस्से को आप सभी से साझा किया जाए. इस किताब के कुछ पैरे यहां दे रहा हूं, ताकि किताब के अंदर की आग को आप भी महसूस कर सकें. हालांकि पूरी किताब पढ़ने के बाद ही आप संपूर्णता में समझ कायम कर पाते हैं जो अंततः आपको समझाती है कि सारी समझ, विचार, धारणाएं, ज्ञान, कोशिशें, योजनाएं ही आपकी सबसे बड़ी दुश्मन हैं, इन्हें जला डालो, इनसे मुक्ति पा लो, फिर देखो कैसी निश्चिंतता आती है… ध्यान से पढ़िए नीचे दिए गए कुछ पैरों को… इस किताब को जिस भी साथी ने मुझे भेंट किया है, उसका आभारी हूं. फिलहाल तो याद नहीं आ रहा कि किसने दिया पढ़ने के लिए.
‘जानेमन जेल’ किताब गाजीपुर जिले में भी उपलब्ध, लंका पर शराब की दुकान के बगल में पधारें
Santosh Singh : जेल भी जानेमन हो सकती है, अगर वो शख्स यशवंत भाई जैसा दिलेर हो… “जानेमन जेल” की एक प्रति खुद लेखक के हाथ से प्राप्त करते हुए… यशवंत भाई की यह अद्भुत किताब मैंने तो पूरी पढ़ ली…और इतनी अच्छी लगी कि एक बैठक में ही पढ़ ली…. एक बात और कहूँगा …”वो जवानी..जवानी नही, जिसकी कोई कहानी न हो”… और यशवंत भाई की यह कहानी रोमांचित करती है!
बीएचयू से एमबीए कर चुके और भारतीय रेल, कानपुर में कार्यरत संतोष सिंह के फेसबुक वॉल से.
टीवी पत्रकार हरीश चन्द्र बर्णवाल को भारतेंदु हरिश्चंद्र पुरस्कार
IBN7 में कार्यरत वरिष्ठ पत्रकार हरीश चन्द्र बर्णवाल को साल 2011 के भारतेंदु पुरस्कार के लिए चुना गया है। उन्हें उनकी किताब ‘टेलीविजन की भाषा’ के लिए ये पुरस्कार 9 सितंबर को सूचना और प्रसारण मंत्री प्रकाश जावड़ेकर दोपहर 3 बजे न्यू मीडिया सेंटर (शास्त्री भवन के सामने) में आयोजित कार्यक्रम में देंगे। गौरतलब है कि भारत सरकार के सूचना प्रसारण मंत्रालय द्वारा दिया जाने वाला ये पुरस्कार पत्रकारिता जगत के लिए एक प्रतिष्ठित पुरस्कार है। प्रकाशन विभाग द्वारा गठित एक हाई प्रोफाइल कमेटी बकायदा इसके लिए देश भर की तमाम किताबों में चयन करती है। अलग-अलग कैटेगरी में कई लोगों को ये पुरस्कार दिया जाता है।
सूर्यकांत बाली की किताब ‘महाभारत का धर्मसंकट’ का उदघाटन करेंगे संघ सह सरकार्यवाह कृष्ण गोपाल
मान्यवर, भारतीय संस्कृति के अध्येता और संस्कृत भाषा के विद्वान् डॉ. सूर्यकान्त बाली कृत महाभारत का धर्मसंकट का लोकार्पण राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सह-सरकार्यवाह मान. डॉ. कृष्ण गोपाल के करकमलों से सोमवार, 01 सितंबर, 2014 को सायं 5.00 बजे स्पीकर हॉल, कॉन्स्टीट्यूशन क्लब, रफी मार्ग, नई दिल्ली में संपन्न होगा।
विनोद राय के रहस्योद्घाटन से ईमानदारी के (कठ) पुतले मनमोहन सिंह की हवा सबसे ज्यादा खिसकी है : ओम थानवी
Om Thanvi : विनोद राय ईमानदार और कर्मठ अधिकारी रहे हैं; CAG के नाते उन्होंने सरकारी योजनाओं-आयोजनों में अरबों के घोटाले उजागर किए। उनका कहना राजनीति में भूचाल से कम नहीं है कि कोयला खदानों वाले घोटाले और राष्ट्रमंडल खेलों के आयोजन में हुए घोटाले में शामिल कतिपय गुनहगारों की खाल बचाने के लिए उनके पीछे नेता और उनके सहपाठी अधिकारियों तक को दौड़ा दिया गया।
अमर उजाला के उदय कुमार की टुच्ची राजनीति के शिकार पत्रकार दविंद्र सिंह गुलेरिया की किताब ‘बेरोजगार की आखिरी रात’
‘बेरोजगार की आखिरी रात’ पुस्तक का जुलाई माह में अमेरिका के प्रतिष्ठित आथर हाउस में प्रकाशन हुआ है। यह किताब ई-बुक के रूप में अमेजॉन.इन पर उपलब्ध है। इसके लेखक दविंद्र सिंह गुलेरिया लगभग आठ साल तक अमर उजाला में रहे हैं। उन्होंने दिसंबर 2013 में चंडीगढ़ से अमर उजाला से इस्तीफा दिया था। उस समय वह पंजाब संस्करण के प्रभारी थे। कांगड़ा, हिमाचल प्रदेश के रहने वाले गुलेरिया सात साल से अधिक समय तक अमर उजाला हिमाचल डेस्क के प्रभारी रहे। करीब दो माह तक वह हिमाचल अमर उजाला के संपादकीय विभाग के प्रभारी भी रहे। चूंकि वह ईमानदार आदमी हैं, चापलूसी न तो करते हैं और न ही करवाते हैं, बस काम से मतलब रखते हैं। उदय कुमार ने उनको अमर उजाला में बहुत परेशान किया।
अबकी विनोद राय की किताब बताएगी मनमोहन कार्यकाल की असलियत
खुलासों वाली एक और पुस्तक आ रही है…. जी हां… एक और पुस्तक आ रही है पंद्रह सितंबर को। डा. मनमोहन सिंह के समय सीएजी रहे विनोद राय की पुस्तक आ रही है, जिसमें बताया गया है कि प्रधानमंत्री ने कहां-कहां क्या-क्या लापरवाहियां की हैं। जहां उन्हें सख्त फैसले लेने चाहिए थे, नहीं लिये। गौरतलब है कि इससे पहले कोयला सचिव पीसी. पारख, बतौर प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह के मीडिया सलाहकार रहे संजय बारू और नेहरू-गांधी परिवार के करीबी रहे नटवर सिंह की किताबें भी बड़े खुलासे कर चुकी हैं।