प्रयागराज (इलाहाबाद ) में इन दिनों मोरारी बापू की राम कथा चल रही है. जाहिर है सभी स्थानीय पत्र अच्छा कवरेज दे रहे हैं. 3 मार्च 2020 के दैनिक जागरण में लगे हैडिंग के पॉइंटर्स में एक जगह मेरी दृष्टि ठहर गयी.
इसमें लिखा था कि 260 देशो में हो रहा है इस कथा का सीधा प्रसारण. अब यह संख्या आयोजकों ने बताई या रिपोर्टर से लिखने में चूक हो गयी. लेकिन यह एक बड़ी गलती है और हो सकता है कि बहुत ही कम यानि हज़ार में एक-दो रीडर का ही ध्यान इस गलती पर गया हो.
गलती यह है कि क्या विश्व में 260 देश हैं भी? सही तो यह है कि कुल 195 देश हैं जिनमे 193 संयुक्त राष्ट्र के सदस्य हैं. जो दो नहीं हैं वह हैं, फलस्तीन और होली सी.
अब अगर कोई प्रतियोगी परीक्षा की तैयारी का रहा है और वह जागरण पढता है तो समझने वाली बात है कि उसका ज्ञान उसे कहाँ ले जायेगा?
अब रिपोर्टरों की स्थिति यह है कि वह पढ़ना चाहते नहीं. ज्ञान सिमटा हुआ है तो यही हाल होता है.
कभी 6-7 साल पहले जस्टिस मार्कण्डेय काटजू ने कहा था कि आज कल पत्रकारों का ज्ञान अधकचरा जैसा होता है. वह किसी भी विषय की अपडेट जानकारी नहीं रखते. प्रेस कांफ्रेंस में उलटे सीधे सवाल पूछते हैं. तब प्रेस कौंसिल ऑफ़ इंडिया को उनकी बात बेहद बुरी लगी थी और उनसे खेद व्यक्त करने की मांग तक कर दी थी. हालाँकि जस्टिस काटजू ने खेद व्यक्त नहीं किया और अपने कथन के समर्थन में कई तथ्य रखने को तैयार हो गए. प्रेस कौंसिल ने इसके बाद मौन साध लिया था.
इस जागरण में मैंने 2-3 बार इलाहबाद विश्वविद्यालय के फाइन आर्ट्स के प्रोफेसर अजय जेटली के नाम की जगह अरुण जेटली छपा देखा. 20-22 दिन पहले भी ऐसा ही हुआ.
रविंद्र कुशवाहा
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