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तो IIT दिल्ली के प्रमुख रघुनाथ शिवगाँवकर ने इसलिए दिया इस्तीफा

Satyendra Ps : भाजपा और संघ के लुटेरे किसी भी सही आदमी को रहने नहीं देंगे। सुब्रहमन्यम स्वामी 1972 और 1991 के बीच पढाए का मेहनताना 70 लाख रुपये देने के लिए IIT दिल्ली के प्रमुख रघुनाथ शिवगाँवकर पर दबाव बनाए हुए थे। पढ़ाते क्या होंगे पता नहीं लेकिन केन्द्रीय संस्थानों में भुगतान को लेकर कोई दिक्कत नहीं होती, सब जानते हैं! साथ ही रघुनाथ से कहा जा रहा था कि सचिन तेंदुलकर को क्रिकेट अकादमी खोलने के लिए iit कैम्पस में जगह दी जाए!

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Satyendra Ps : भाजपा और संघ के लुटेरे किसी भी सही आदमी को रहने नहीं देंगे। सुब्रहमन्यम स्वामी 1972 और 1991 के बीच पढाए का मेहनताना 70 लाख रुपये देने के लिए IIT दिल्ली के प्रमुख रघुनाथ शिवगाँवकर पर दबाव बनाए हुए थे। पढ़ाते क्या होंगे पता नहीं लेकिन केन्द्रीय संस्थानों में भुगतान को लेकर कोई दिक्कत नहीं होती, सब जानते हैं! साथ ही रघुनाथ से कहा जा रहा था कि सचिन तेंदुलकर को क्रिकेट अकादमी खोलने के लिए iit कैम्पस में जगह दी जाए!

पढ़ाने का सबूत देने पर iit भुगतान देने को तैयार भी था! सबूत न दिखाने पर डायरेक्टर को कैग पकड़ता! iit परिसर में तेंदुलकर के गिल्ली डंडा को iit डायरेक्टर बिलकुल राजी न थे! आखिरकार उन्होंने इस्तीफा दे दिया। अब आज कच्छा बनियान गिरोह आरोप लगा रहा है कि विदेश में अवैध कैम्पस खोल रहे थे iit डायरेक्टर! ये गिरोह सोचता था कि गीदड़ भभकी देकर रघुनाथ से 70 लाख रूपये ऐंठ लेगा लेकिन उन्होंने इस्तीफा दे दिया!

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अब स्वामी मानव संसाधन विकास मंत्री बन सकते हैं। वजह ये कि एम्स में दवा की दलाली पर अंकुश लगाने वाले संजीव को दवा कम्पनियों के दलाल (ब्रोकर या डीलर कहें सम्मान में) जेपी नद्धा के कहने पर हटाया गया। फिर नद्धा केन्द्रीय स्वास्थ्य मंत्री बने। अब स्वामी की बारी है! देखते जाएं कि ये आरएसएस सरकार 5 साल में आम लोगों और उनके संस्थानों की क्या गति करती है!

अब तेंदुलकर कह रहे हैं कि मैंने कोई क्रिकेट अकादमी खोलने का प्रस्ताव नहीं किया! अगर iit जमीन दे देता तो महीन मुस्कुराते चले आते! आरएसएस भी चितपावन दबंगई दिखाने में कामयाब हो जाता! बहुत शातिर हैं सब।! संघी जो तर्क दे रहे हैं लचर है। अगर iit निदेशक चोर है और बचने के लिए इस्तीफा दिया तो क्या कच्छा बनियान गिरोह सरकार इस्तीफे के बाद जांच नहीं कराएगी? लेकिन भक्ति का चश्मा मोटा होता है।

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पत्रकार सत्येंद्र प्रताप सिंह के फेसबुक वॉल से.

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