काठमांडू ! भारतीय मीडिया का एक वर्ग गलत कारणों से नेपाल में सुर्खियां बटोर रहा है। भारतीय मीडिया, विशेष रूप से इलेक्ट्रॉनिक मीडिया पर सनसनी फैलाने के आरोप लगाए गए हैं, वह भी ऐसे समय में जब नेपाल भूकंप की मार से उबर रहा है। नेपाल की प्रोबायोटेक इंडस्ट्रीज के उप मुख्य कार्यकारी अधिकारी दिनेश गौतम ने आईएएनएस को बताया, “नेपाल में भारतीय पत्रकारों के प्रति लोगों में बहुत नाराजगी है, क्योंकि भारतीय पत्रकारों ने भूकंप त्रासदी की रपट तैयार करने में पक्षपातपूर्ण दृष्टिकोण अपनाया।”
उन्होंने कहा कि चुनिंदा मीडिया संगठनों, विशेष रूप से दो प्रमुख हिंदी न्यूज चैनलों के प्रति गुस्से का मुख्य कारण इस तबाही के बाद असंवेदनशील रिपोर्टिग करना है। भारतीय टीवी पत्रकार सिर्फ एक ही प्रश्न पूछते हैं कि ‘आप कैसा महसूस कर रहे हैं’? और इस आलोचना का यही मुख्य केंद्रबिंदु है। पेशे से बैंकर नीरा श्रेष्ठ ने आईएएनएस से पूछा, “इस आपदा में आपने अपने परिवार के सदस्य खो दिए हैं और आपसे इस तरह के सवाल पूछे जाएं तो आपकी क्या प्रतिक्रिया होगी? उन्होंने कहा कि इस तरह की घटनाओं पर कुछ संवेदनशीलता रखी जानी चाहिए।
श्रेष्ठ ने कहा, “यदि कोई सदमे में है और बहुत सारे घावों के साथ स्ट्रैचर पर लेटा है तो आपको इस तरह के बेवकूफी भरे सवाल नहीं पूछने चाहिए। भारतीय मीडिया के प्रति यही गुस्से का मुख्य कारण है।” भारतीय मीडियाकर्मियों द्वारा इस तरह के सवाल बार-बार पूछने से नेपाल में इस तरह का माहौल बन गया है कि लोगों की मौत भूकंप से नहीं, बल्कि इमारतों के ढहने से हुई है। नेपाल के एक पत्रकार उज्जवल रिसाल कहते हैं कि भारतीय पत्रकारों के इस तरह के सवालों से एक पीड़ित इतना गुस्सा हुआ कि उसने भारतीय न्यूज चैनल के उस पत्रकार को माइक्रोफोन फेंक दिया।
उन्होंने कहा कि नेपाल में इस आपदा के बाद अंतर्राष्ट्रीय पत्रकार भारी संख्या में यहां इकट्ठा हुए। रिसाल ने आईएएनएस से कहा, “हालांकि, इस त्रासदी पर दुनिया का तत्काल ध्यान दिलाने के लिए अंतर्राष्ट्रीय मीडिया ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। लेकिन वह सिर्फ भारतीय समाचार चैनल ही थे, जिन्हें आलोचना का सामना करना पड़ा। बीबीसी न्यूज, सीएनएन, अल जजीरा और यहां तक कि स्थानीय मीडिया संगठनों से किसी को कोई परेशानी नहीं रही।”
देशबंधु से साभार