पिछले महीने दैनिक जागरण नोएडा के कर्मी अपनी जायज मांगों को लेकर प्रतीकात्मक आंदोलन पर थे। इसके साथ ही उन्होंने 16 जुलाई को हड़ताल का नोटिस प्रबंधन को थमाया हुआ था जिसके बाद जागरण कर्मियों की एकता से घबराये हुए प्रबंधन ने वार्ता का लंबा दौर चलाया। इस दौरान प्रबंधन अपनी कुटिलता से बाज नहीं आया और हड़ताल रुकवाने के लिए अदालतों में याचिका दायर करता रहा परंतु जागरणकर्मियों ने भी जैसे दृढ़ निश्चय कर रखा था कि अब संस्थान में पुरानी परिपाटी नहीं चलने देंगे। अब और अत्याचार सहन नहीं करेंगे। अपना जायज हक लेकर रहेंगे। प्रबंधन की कुटिल चालों से वार्ता को पटरी पर आते न देख जागरण कर्मियों ने मौन व्रत पर जाने का निर्णय लिया।
जागरण कर्मियों के काली पट्टी आंदोलन और मौन व्रत से हिले प्रबंधन को जब अदालत से भी तुरंत राहत नहीं मिली तो उसने हारकर डीएलसी के समक्ष जागरणकर्मियों के प्रतिनिधियों के साथ लिखित समझौता किया। इस लिखित समझौते में सुप्रीम कोर्ट की शरण में गए साथियों की सालाना वार्षिक वृद्धि भी शामिल थी, जिसे प्रबंधन ने रोक रखा था।
यह जागरण कर्मियों के ही संघर्ष का परिणाम है कि इस बार उनका जुलाई का वेतन बढ़ कर आया है, वो भी अप्रैल से जून महीने तक के एरियर के साथ। ऐसा शायद जागरण के इतिहास में पहली बार हुआ है कि प्रबंधन कर्मियों की जायज मांगों के आगे झुका है। वरना जागरण में वेतन काटने की प्रथा तो है, लेकिन देने की नहीं।
jatin
August 8, 2015 at 1:30 pm
दैनिक भास्कर कोटा में सुप्रीम कोर्ट में केस लड़ने वाले पत्रकारों को इन्क्रीमेंट तो लगा। परन्तु उनका लगा जिन्होनें मैनेजमेंट को यह लिख कर दिया कि कम्पनी जो वेतन दे रही उससे संतुष्ट है, उन्हें मजीठिया के हिसाब से वेतन नहीं चाहिए। एक सीनियर पत्रकार का इन्क्रीमेंट इसलिए रोक लिया क्यों की उसने लेबर कोर्ट आपत्ति दर्ज कराई थी।
रवि
August 8, 2015 at 2:31 pm
कम वेतन वृद्धि का मलाल तो उन्हें भी है जिन्होंने जी तोड़ मेहनत की, लेकिन वे विरोध नहीं जता पा रहे। बेचारे करें भी तो क्या उनके पास इस नौकरी के अलावा कोई और ऑप्शन जो नहीं है