लखनऊ की आरटीआई एक्टिविस्ट उर्वशी शर्मा ने आरटीआई के माध्यम से प्राप्त रिकॉर्ड के आधार पर यूपी के लोक निर्माण विभाग तथा आवास एवं शहरी नियोजन जैसे दो महत्वपूर्ण महकमों में अपर मुख्य सचिव के पद पर काम कर रहे आईएएस सदाकांत शुक्ल पर जालसाजी कर सरकारी आवास हथियाने का आरोप लगाते हुए सदाकांत के खिलाफ जालसाजी और धोखाधड़ी की धाराओं में एफ़.आई.आर. दर्ज कराने की तहरीर बीते 9 अप्रैल को थाना हज़रतगंज में दी है.
यूपी की 20 करोड़ से अधिक की आबादी को आवास यानि मकान मुहैया कराने की कमान पूर्ववर्ती मुख्यमंत्री अखिलेश यादव ने एक ऐसे अधिकारी के हाथ में दी हुई थी जिसने साल 2011 में राज्य का सरकारी आवास हथियाने के लिए जालसाजी का सहारा लिया था. उर्वशी शर्मा को आरटीआई के माध्यम से जो रिकॉर्ड मिला है उससे पूरी तरह सिद्ध हो रहा है कि IAS सदाकांत शुक्ल ने साल 2011 में समाज कल्याण, डा. अम्बेडकर ग्राम सभा विकास,महिला कल्याण और बाल विकास एवं पुष्टाहार विभाग के प्रमुख सचिव के पद पर काम करते हुए सरकारी आवास हथियाने की साजिश के लिए जालसाजी और कूटरचना का अपराध करने से भी गुरेज़ नहीं किया.
उर्वशी ने उत्तर प्रदेश के वर्तमान अपर मुख्य सचिव सदाकांत के खिलाफ प्रथम सूचना रिपोर्ट दर्ज कर वैधानिक कार्यवाही करने की मांग वाली तहरीर बीते 9 अप्रैल को थाना हजरतगंज में दे दी है. बकौल उर्वशी, उत्तर प्रदेश के राज्य संपत्ति विभाग ने उनको आरटीआई के तहत जो कागजात दिये हैं उनसे यह सामने आ रहा है कि उत्तर प्रदेश के वर्तमान अपर मुख्य सचिव सदाकांत ने राज्य संपत्ति विभाग का सरकारी आवास नियम विरुद्ध रीति से आबंटित कराने के लिए शातिराना ढंग से कूटरचित पत्र बनाकर कूटरचित पत्र को असली की तरह प्रयोग किया और राज्य सरकार की आँखों में धूल झोंककर धोखाधड़ी से सरकारी मकान हथिया लिया.
उर्वशी के अनुसार सदाकांत सरकारी आवास हथियाने के लिए झूठ बोला कि लखनऊ में उसका कोई निजी आवास नहीं था और इसी आधार पर उसने राज भवन कॉलोनी, दिलकुशा कॉलोनी अथवा अन्य किसी कॉलोनी में सरकारी आवास पर अपना दावा ठोंका जबकि सदाकांत ने साल 2011 और 2012 में भारत सरकार को अचल संपत्तियों का जो विवरण दिया था उसके अनुसार लखनऊ के कुर्सी रोड स्थित विकास नगर कॉलोनी में लगभग 50 लाख कीमत का MIG मकान नंबर 2/29 सदाकांत के अपने नाम में था जो सदाकांत द्वारा अपने निजी इस्तेमाल में लाया जा रहा था.
उर्वशी ने बताया कि लखनऊ के विकास नगर कॉलोनी स्थित मकान होते हुए भी सदाकांत द्वारा असत्य अभिकथन करके कूटरचना द्वारा पत्र तैयार किया गया और इस कूटरचित पत्र को उत्तर प्रदेश शासन के राज्य संपत्ति अधिकारी को भेज इस कूटरचित पत्र के आधार पर आवास आबंटन नियमावली 1980 के नियम 23 के अंतर्गत नियमों में शिथिलता प्राप्त कर राज्य संपत्ति विभाग के आवास का आवंटन करा कर 3 दिन में ही सरकारी मकान पर काबिज भी हो गया. उर्वशी के अनुसार कूटरचना कर तैयार पत्र के आधार पर बेईमानी और फर्जीबाड़े से सरकार की संपत्ति प्राप्त करने का यह गंभीर संज्ञेय अपराध सदाकांत ने भली भांति यह जानते हुए कि वह अपराध कर रहा है, किया. उर्वशी ने सदाकांत के अपराध को ठन्डे दिमाग से सोच-समझकर कारित किया गया अपराध बताया है.
उर्वशी ने अपनी तहरीर में सदाकांत के आपराधिक कृत्य को भारतीय दंड संहिता की धारा 420, 467, 471 और भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम के अंतर्गत कारित किये गये गंभीर प्रकृति का संज्ञेय अपराध बताया है और थाना हजरतगंज के थाना प्रभारी से सुप्रीम कोर्ट द्वारा ललिता कुमारी बनाम उत्तर प्रदेश सरकार में पारित निर्णय और भारत सरकार के गृह मंत्रालय द्वारा उत्तर प्रदेश के मुख्य सचिव को एफ़.आई.आर. लिखने के सम्बन्ध में प्रेषित निर्देशों का अनुपालन करते हुए सदाकांत के खिलाफ प्रथम सूचना रिपोर्ट दर्ज कर वैधानिक कार्यवाही करने की मांग की है.