अमरेन्द्र राय-
केजरीवाल का असली रंग सामने आ रहा… आप पार्टी और केजरीवाल का असली रंग अब सामने आ रहा है। ये वो केजरीवाल हैं जिन्होंने सबसे पहले (शायद एकमात्र) काले कृषि कानूनों को दिल्ली विधान सभा में पास कराया। दिल्ली में दंगे हुए तो सीएम होने के बावजूद चुप बैठे रहे। इसलिए कि हिंदू वोट खिलाफ हो जायेगा।
जब असंवैधानिक ढंग से केंद्र ने जम्मू कश्मीर से धारा 370 हटाई तो इन्होंने खुलेआम उसका समर्थन किया। लेकिन उसी तरह से जब दिल्ली सरकार के अधिकार छीन लिए तो खूब फनफनाये कि केंद्र ने गलत किया। इन्हें ये भी शिकायत है कि किसी विपक्षी पार्टी ने इनकी मदद नहीं की।
अरे भाई जब तुम खेल खेलोगे बीजेपी का तो तुम्हारा साथ विपक्ष क्यों देगा? बीजेपी राम मंदिर का इस्तेमाल वोट पाने के लिए करती है तो ये वहां का दर्शन करा कर वोट हासिल करना चाहते हैं। बीजेपी भले महात्मा गांधी के हत्यारे नाथू राम गोडसे के प्रति नरम दिल हो पर वो खुलेआम गांधी की प्रशंसा करने से कभी नहीं चूकती।
लेकिन केजरीवाल साहब और आप ने तो गांधी जी की फोटो तक हटा दी। आप पार्टी के मान ने जब शपथ ली तो दीवार पर गांधी जी की तस्वीर नदारद थी। वाह री आप और वाह री केजरीवाल। सचमुच तुम्हारा असली रंग अब दिख रहा है।
विश्व दीपक-
मैं गांधीवादी नहीं हूं.
फिर भी मेरा ध्यान इस तस्वीर की ओर गया. सवाल है आखिर आम आदमी पार्टी के नए नवेले मुख्यमंत्री, भगवंत सिंह मान की पृष्ठिभूमि से गांधी क्यूं गायब हैं?
दिखावे के लिए ही सही नेता गांधी की तस्वीर लगाते आए हैं. इस लिहाज से यह एक डिपार्चर था.
क्यूंकि गांधी कोई पॉलिटिकल करंसी नहीं हैं अब. आज़ादी के कई दशकों बाद तक, नेताओं को गांधी जरूरत थी. अब नहीं है.
गांधी किसी पार्टी को वोट नहीं दिलवा सकते. बल्कि अगर उनकी मूर्तियां तोड़ दी जाएं, उन पर ब्लैक पेंट कर दिया जाए, उनकी मौत के 73 साल बाद भी उनके पोस्टर पर गोली दाग दी जाए — तो वोट बढ़ जाते हैं.
गांधी की प्रासंगिकता अब सिर्फ विदेशी मेहमानों के दौरे के वक्त, सरकारी अवकाश के दिन माल्यार्पण करने और राजनीतिक विरोधियों पर हमला करने के दौरान कोट करने तक बची है.
पीएस : गांधी की एक प्रसंगितका और है. वह है गांधी, कांग्रेस के इको सिस्टम में घुसने के लिए गेटवे की तरह काम करते हैं.
Comments on “केजरीवाल ने गांधी जी की फ़ोटो हटवा दी!”
कई बार भड़ास के द्वारा रीपोस्ट किए गए आलेखों से भी कुछ साहित्यिक अभी व्यक्तियों की ओर ध्यान चला जाता है। कुछ सीखने जैसा ही है। इस आलेख में दो जगह दोनों लोगों ने अलग-अलग मगर बहुत ही बढ़िया बातें कही। दोनों आलेखों में एक प्रकार से हर पार्टी और उनके नेताओं का असली चेहरा।
1)केजरीवाल का असली रंग सामने आ रहा… आप पार्टी और केजरीवाल का असली रंग अब सामने आ रहा है।…बीजेपी भले महात्मा गांधी के हत्यारे नाथू राम गोडसे के प्रति नरम दिल हो पर वो खुले आम गांधी की प्रशंसा करने से कभी नहीं चूकती।
2)गांधी किसी पार्टी को वोट नहीं दिलवा सकते. बल्कि अगर उनकी मूर्तियां तोड़ दी जाएं, उन पर ब्लैक पेंट कर दिया जाए, उनकी मौत के 73 साल बाद भी उनके पोस्टर पर गोली दाग दी जाए — तो वोट बढ़ जाते हैं….गांधी की प्रासंगिकता अब सिर्फ विदेशी मेहमानों के दौरे के वक्त, सरकारी अवकाश के दिन माल्यार्पण करने और राजनीतिक विरोधियों पर हमला करने के दौरान कोट करने तक बची है…..पीएस : गांधी की एक प्रसंगितका और है. वह है गांधी, कांग्रेस के इको सिस्टम में घुसने के लिए गेटवे की तरह काम करते हैं.
मेरा आकलन ::
यह बातें दो ओर इशारा करती हैं एक तो यह कि यशवंत की नीति या भड़ास की नीति और नीयत एक ही है: सच अच्छा हो या बुरा। चुभे या गुदगुदाये। हंसाए या रुलाए। सराहना करे या आलोचना। सच को छुपाना नहीं चाहिए। इस तरह के नंगे सच, कई बार यशवंत की छवि को भी नुकसान पहुंचाते हैं मगर उन्हें कभी इसकी कोई परवाह नहीं। भड़ास को मंच देने वाले यशवंत को सलाम!
खुशबू आ नहीं सकती काग़ज़ के फूलों से… सच्चाई सामने आनी ही थी। ये वही केजरी है जिसने अन्ना के साथ मिलकर गांधी जी के बड़े बड़े पोस्टरों का *इस्तेमाल* किया था…