Yashwant Singh : संजय शर्मा मित्र हैं. कई वर्षों से. उनके घर मेरा आना जाना है. दुख सुख के साथी रहे हैं. बदायूं से चलकर लखनऊ में जमने की उनकी कहानी प्रेरणादायी है. अपने दम पर आगे बढ़े हैं यानि सेल्फ मेड हैं. एक जमाने में सहारा के रिपोर्टर हुआ करते थे. अब लखनऊ के वरिष्ठ पत्रकारों में से एक. प्रिंटिंग मशीन के मालिक हैं. वीकएंड टाइम्स नामक अपना अखबार निकालते हैं. मायावती जब यूपी की मुख्यमंत्री हुआ करती थीं तो संजय भाई सत्ता के पोलखोल के जरिए सीधे सीएम साहिबा से पंगा ले लिया करते थे. उनकी सरोकारी सक्रियता देखने लायक हुआ करती थी.
जबसे यूपी में अखिलेश यादव की सरकार आई है और संजय शर्मा पार्टनरशिप वाले अखबार मिड डे एक्टिविस्ट के संपादक हुए हैं, इनके लिखने पढ़ने का अंदाज टोन बदल गया है. ये सेलेक्टिव, चूजी हो गए हैं. अब ये सीधे-सीधे सर्टिफिकेट जारी करने लगे हैं. कौन इमानदार और कौन भ्रष्टाचारी. देखिए उनका अखबार. वीकएंड टाइम्स. अखिलेश यादव को ईमानदार सीएम घोषित कर दिया है. यह कुछ वैसे ही है जैसे लोग अब भी कहें कि मनमोहन सिंह बड़े ईमानदार हैं. अरे भाई, जब पूरा सिस्टम सत्ता तंत्र आपके संरक्षण में लूट उगाही गुंडई अनीति में लगा हुआ है तो आप काहें के इमानदार हो. लेकिन लखनऊ के पत्रकारों को इमानदारी का सर्टिफिकेट जारी करना पड़ता है. संजय शर्मा भी अब उसी गिरोह के हिस्से बन गए दिखते हैं जो सत्ता की जयगान कर नाना प्रकार के लाभ हासिल किया करता है.
इनके अखबार में अफसरों की पोल खूब खुलती है, नेताओं मंत्रियों की भी. लेकिन बस अखिलेश यादव और उनके खानदान को छोड़कर. मुलायम, अखिलेश, शिवपाल, रामगोपाल आदि को बख्शे रहना है, यह अघोषित आदेश है. आदेश कहां से है, सीएम कार्यालय से या अंतरआत्मा से, ये तो नहीं पता लेकिन इनका मिडडे अखबार देखकर लगता है कि यह अखिलेश पोषित अखबार है. हाल के दिनों में अखिलेश से संजय शर्मा की नजदीकियां बढ़ी हैं. मिडडे एक्टिविस्ट अखबार की लांचिंग में अखिलेश यादव आए थे. अखिलेश यादव रोजाना संजय शर्मा के दैनिक और वीकली अखबार को पढ़ते हैं. अखिलेश यादव की छोटी खबर भी लीड स्टोरी के रूप में इन अखबारों में छप जाया करती है.
अब तो हद तब हो गई जब अखिलेश यादव की इमानदारी का सर्टिफिकेट जारी करते हुए खुद संजय शर्मा ने प्रथम पेज लीड स्टोरी लिख दी है. समझ नहीं आ रहा कि ये हार्ड न्यूज है, तेल लेपन है या प्रशस्ति गान. संजय शर्मा लगातार तरक्की कर रहे हैं. पिछले दिनों नई कार खरीदने की तस्वीर फेसबुक पर जारी की थी. जाहिर है, उनका धंधा चल निकला है. बस गर्त में कुछ गया है तो जन सरोकार और पत्रकारिता के मानक. वैसे भी, आज के बाजारू दौर में कौन नियमों सिद्धांतों नैतिकताओं सरोकारों की परवाह करता है. ये सब किताबी बातें हैं जिन पर कुछ पागल किस्म के लोग यकीन किया करते है. बाकी तो जो है सब बाजारू और लाभ ओरियेंटेड है.
संजय शर्मा गाहे बगाहे भड़ास ( www.bhadas4media.com ) की आर्थिक मदद कर दिया करते हैं. पर अब तय किया है कि आगे से उनसे एक पैसा नहीं लेना है. आखिर पैसा असर दिखाता तो है ही. लिखने से रोकता है, आलोचना करने से डराता है. कलम तभी तक बेबाक है जब तक वह वित्त पोषित नहीं है. जैसे कि खुद संजय शर्मा पर किसी के पैसे का तगड़ा असर हुआ दिख रहा है. उम्मीद है संजय भाई बोलेंगे और बताएंगे कि आखिर उनका अखबार अखिलेश यादव को इमानदारी का सर्टिफिकेट जारी कर इस खबर को पहले पन्ने पर लीड क्यों छापता है? संजय भाई के खिलाफ यह सब इसलिए लिखना पड़ा क्योंकि उन्हें मैं लखनऊ के दूसरे दलाल पत्रकारों से अलग मानता था. मित्र मानता था. पर लगता है उन पर भी सोहबत का असर पड़ने लगा है. उम्मीद करता हूं हम दोस्तों की गुहार पर फिर वह रस्ते पर लौटकर आ जाएंगे.
भड़ास के एडिटर यशवंत सिंह के फेसबुक वॉल से.
ajay
April 3, 2015 at 11:22 am
बहुत ही सही है। पैसा मैटर करता है। यशवंत को या संजय शर्मा को। या किसी दूसरे को भी। पत्रकारिता का खोखलापन देश के आजतक चैनल से लेकर गली कूचे के आम अखबार में भी यही हाल है। पैसा लो न्यूज फेवर में लिख दो। यह तो चलन हो गया है। मीडिया बिकता है बोलो खरीदोगे वाला गाना बहुत फिट बैठता है। संजय शर्मा तो एक अदना सा नाम है। बड़े-बड़े दिग्गज इसमें शुमार हैं।
abhishek
April 6, 2015 at 2:43 pm
अखबार चलाना आसान नहीं हैं। यह सही हैं बिक ऐंड टाइम की इतनी प्रतियां नहीं हैं पर अगर एक हजार भी निकलती होंगी तो पच्चीस हजार महीना आता होगा। ऐसे में कोई बड़ी बात नहीं हैं कि मुख्यमंत्री की गुलामी की जाए। जब हिन्दुस्तान की मालकिन शोभना भारतीय वीर सांघवी प्रभु चावला और रजत शर्मा तक बिक गए तो मामूली सा अखबार निकालने वाल संजय शर्मा किस खेत की मूली हैं। आज पत्रकारिता संक्रमण काल से गुजर रही हैं। मार्केट में पत्रकार नाम की चीज नहीं हैं। ashikshit दलाल भडुए आज पत्रकार बन बैठे हैं और आम आदमी इस बात को बड़े फक्र से कहने लगा हैं कि मीडिया बिकता हैं दीखता नहीं हैं यह सब मोदी की आंधी में देख चुके हैं।