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मजीठिया वेज बोर्ड : श्रम आयुक्त उत्तर प्रदेश की चिट्ठी से समाचारपत्र प्रबंधनों में हड़कम्प

मित्रों,

समाचारपत्र कर्मचारियों को मजीठिया वेज बोर्ड की सिफारिशों के अनुरूप वेतनमान न देना पड़े, इसके लिए पिछले चार वर्षों से अधिसंख्य अखबार प्रबंधनों द्वारा की जा रही चोट्टई से सभी भलीभांति परिचित हैं। सुप्रीम कोर्ट के स्पष्ट आदेश के बावजूद समाचारपत्र प्रबंधनों की केंद्र व राज्य सरकारों से नूरा कुश्ती जारी है। वैसे भी केंद्र सरकार को इस मामले में दिलचस्पी क्यों रहेगी, जब ज्यादातर अखबार मालिक पहले से ही उसके सामने दुम हिलाये घूम रहे हैं।

मित्रों,

समाचारपत्र कर्मचारियों को मजीठिया वेज बोर्ड की सिफारिशों के अनुरूप वेतनमान न देना पड़े, इसके लिए पिछले चार वर्षों से अधिसंख्य अखबार प्रबंधनों द्वारा की जा रही चोट्टई से सभी भलीभांति परिचित हैं। सुप्रीम कोर्ट के स्पष्ट आदेश के बावजूद समाचारपत्र प्रबंधनों की केंद्र व राज्य सरकारों से नूरा कुश्ती जारी है। वैसे भी केंद्र सरकार को इस मामले में दिलचस्पी क्यों रहेगी, जब ज्यादातर अखबार मालिक पहले से ही उसके सामने दुम हिलाये घूम रहे हैं।

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खैर, सुप्रीम कोर्ट द्वारा अवमानना वाद (सिविल) संख्या 411/2014 अभिषेक राजा बनाम अन्य बनाम संजय गुप्ता व अन्य में पारित आदेश दिनांक 28-04-2015 के समादर के क्रम में उत्तर प्रदेश के श्रम आयुक्त ने बीते दिनों अपने अधीनस्थ कार्यालयों को एक पत्र प्रेषित कर सभी जिलों से प्रकाशित समाचारपत्रों के बारे में ऐसी विस्तृत रिपोर्ट मांग ली है, जिससे मीडिया घरानों में हड़कम्प मच गया है और उनके गुर्गे संबंधित श्रम कार्यालयों का चक्कर लगाकर लीपापोती में जुट गए हैं।

यूपी के श्रमायुक्त ने अपने अधीनस्थों से कुल 21 बिंदुओं के जरिए प्रत्येक अखबार की पूरी कुंडली मांगी है। मांगी गयीं सभी जानकारियां यदि श्रम विभाग वाकई उपलब्ध करा दे तो कुछ बड़े अखबार घराने सीखचों के पीछे ही खड़े नजर आएंगे। इस रिपोर्ट के जरिए श्रम विभाग शासन को वस्तुस्थिति से अवगत कराएगा क्योंकि उपरोक्त मामले में 23-09-2015 को सुप्रीम कोर्ट में प्रति शपथ पत्र प्रस्तुत किया जाना है।

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जहां तक हिन्दी बेल्ट के अधिकतर बड़े अखबार घरानों का सवाल है तो उन्होंने वेज बोर्ड के पचड़े से कथित तौर पर निकलने के लिए अपने कर्मचारियों को डिजिटल मीडिया से जोड़ना शुरू कर दिया है। श्रीमती शोभना भरतिया के अखबार दैनिक हिन्दुस्तान ने तो अपने रिपोर्टर को कंटेंट क्रिएटर और सब एडिटर को कंटेंट प्रोड्यूसर का नाम देते हुए उन्हें मल्टीमीडिया कंटेंट मैनेजमेंट डिवीजन का हिस्सा बना दिया है और हिन्दुस्तान मीडिया वेंचर्स प्रा. लि. के पैड पर एडिटर इन चीफ शशि शेखर व वीपी (एचआर) शरद सक्सेना के संयुक्त हस्ताक्षर से कर्मचारियों को नया पत्र भी हस्तगत करा दिया गया है।

बात यहीं तक सीमित नहीं है वरन जो काम दैनिक जागरण प्रबंधन वर्षों से करता चला आ रहा है, उसका इस बार हिन्दुस्तान प्रबंधन ने भी अनुसरण किया और अपने कर्मचारियों से इस आशय का सहमति पत्र ले लिया कि उन्हें जो वेतन मिलता है, उससे वे संतुष्ट हैं और उन्हें वेज बोर्ड की रिपोर्ट से कोई लेना-देना नीं है। अमर उजाला प्रबंधन ने भी न सिर्फ कई स्थायी कर्मचारियों के ताबड़तोड़ स्थानांतरण कर दिए हैं वरन सरकार व कोर्ट को भरमाने का नया तरीका निकाला है। उसने ढेरों कर्मचारियों से यह सहमति पत्र ले लिया है कि उनके नाम से समाचार एजेंसी है और वे उसी एजेंसी के जरिए अखबार को समाचारों की सप्लाई करते हैं। जागरण प्रबंधन के कुकृत्यों के बारे में तो कुछ बताने की जरूरत ही नहीं है जबकि अंतिम सांसें गिन रहे आज अखबार ने बीते माह कर्मचारियों का तनिक वेतन बढ़ाकर उन्हें न्यूनतम वेतनसीमा की परिधि में लाने की कोशिश की है। सहारा की बात करें तो वहां अब तक दुकान एक्ट की तरह वेतन मिलता रहा है और वह भी अब काफी पिछड़ चुका है।

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मां शारदा की कृपा से मुझे बीते दो वर्षों में मध्य प्रदेश के एक नए अखबार (मध्य प्रदेश जनसंदेश, सतना) में बतौर खेल सम्पादक कार्य करने का अवसर मिला। इस दौरान मैंने महसूस किया कि उस राज्य में कोई अखबारकर्मी वेज बोर्ड का नाम लेवा ही नहीं है। सबसे बड़े अखबार घराने भास्कर समूह और उसके पीछे राजस्थान पत्रिका की राज्य सरकार से इतनी गहरी मित्रता है कि कर्मचारी वेज बोर्ड की गिनती ही भूल गए हैं। हां, सरकारी स्तर पर वेज बोर्ड के क्रियान्वयन की कागजी खानापूरी अवश्य जारी है। आप समझ सकते हैं कि जब बड़े अखबारों का यह हाल है तो छोटे अखबारों के संदर्भ में बात करना ही बेमानी है। 

फिलहाल, अब सुप्रीम कोर्ट ने सभी राज्यों के श्रम विभागों को एक महती जिम्मेदारी सौंपी है कि वे समाचारपत्र कर्मचारियों की वास्तविक स्थिति से अवगत कराएं ताकि मजीठिया वेज बोर्ड को लेकर जारी केंद्र सरकार की अधिसूचना को अमलीजामा पहनाया जा सके। लेकिन लाखों डॉलर का सवाल फिर उठ खड़ा हुआ है कि शुरू से ही अखबार प्रबंधनों के हाथों की कठपुतली बना श्रम विभाग क्या इस बार भी ईमानदारी दिखा पाएगा? अन्यथा वेज बोर्ड पर सरकारी अधिसूचना तो अपने अंतिम संस्कार का इंतजार कर ही रही है।  आपके सामने वह पत्र व मजमून भी प्रस्तुत है, जिसके जरिए श्रम आयुक्त, उत्तर प्रदेश ने अपने अधीनस्थों से समाचारपत्रों की यथास्थिति की जानकारी मांगी है..

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( अगर आपको उपर लेटर न दिख रहा हो तो इस लिंक पर क्लिक करें: Letter Link )

लेखक योगेश गुप्त पप्पू वरिष्ठ पत्रकार हैं. कई शहरों में कई अखबरों में वरिष्ठ पदों पर कार्यरत रहे हैं. काशी पत्रकार संघ के अध्यक्ष भी रह चुके हैं. ट्रेड यूनियन और सोशल एक्टिविज्म के लिए भी जाने जाते हैं. पप्पू से संपर्क [email protected] या 09450541573 के जरिए किया जा सकता है.

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0 Comments

  1. Dinesh

    September 20, 2015 at 5:18 pm

    Bhai, bareilly hindustan prees me chaapa pad chuka hai.magar co. ke log golmal karne me jute huae hai.

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