मुंबई : महाराष्ट्र में इन दिनों मजीठिया वेज बोर्ड के अनुसार वेतन और प्रमोशन मांगने वाले मीडियाकर्मियों की संख्या लगातार बढ़ रही है। मीडियाकर्मी जोश खरोश के साथ अखबार मालिकों के खिलाफ अपने हक़ के लिए आवाज बुलंद कर रहे हैं। यहाँ लोकमत के 5 और मीडियाकर्मियों ने रिकवरी क्लेम लगाया है।ये सभी कर्मचारी लोकमत की अकोला यूनिट में कार्यरत हैं। इन पांच कर्मचारियों ने असिस्टेंट लेबर कमिश्नर अकोला के यहाँ 17(1) के तहत रिकवरी क्लेम लगाया है।
इस बीच समान कार्य के लिए समान वेतन अस्थायी कर्मचारियों पर लागू संबंधी उच्चतम न्यायालय के फैसले का महाराष्ट्र के चर्चित पत्रकार नेता और आरटीआई एक्टिविस्ट शशिकांत सिंह ने स्वागत किया है. ज्ञात हो कि उच्चतम न्यायालय ने हाल ही में अपने एक महत्वपूर्ण फैसले में कहा है कि ‘समान कार्य के लिए समान वेतन’ का सिद्धांत उन सभी पर लागू किया जाना चाहिए जो दैनिक वेतनभोगी, अस्थायी और अनुबंधित कर्मचारियों के तौर पर नियमित कर्मचारियों की तरह ही ड्यूटी करते हैं. उच्चतम न्यायालय ने समान कार्य के लिए समान वेतन से इनकार को ‘‘शोषणकारी गुलामी,’’ ‘‘अत्याचारी, दमनकारी और जबर्दस्ती’’ करार दिया.
न्यायालय ने कहा कि एक कल्याणकारी राज्य में सिद्धांत अस्थायी कर्मचारियों तक भी विस्तारित किया जाना चाहिए. न्यायमूर्ति जेएस खेहर और न्यायमूर्ति एस ए बोबड़े की एक पीठ ने कहा, ‘‘हमारी दृष्टि से श्रम के फल से वंचित करने के लिए कृत्रिम मानदंड बनाना गलत है. एक ही काम के लिए संलग्न किसी भी कर्मचारी को उस कर्मचारी से कम वेतन का भुगतान नहीं किया जा सकता जो वही कार्य और जिम्मेदारियां वहन करता है. निश्चित रूप से किसी भी कल्याणकारी राज्य में नहीं. ऐसा कदम अपमानजनक होने के साथ ही मानव गरिमा के आधार पर चोट करता है.’’ पीठ ने यह भी कहा कि ‘‘जिस किसी को भी कम वेतन पर काम करने के लिए बाध्य किया जाता है वह ऐसा स्वैच्छिक तौर पर नहीं करता. वह ऐसा अपने परिवार को भोजन और आश्रय मुहैया कराने के लिए अपने आत्मसम्मान और गरिमा की कीमत पर, अपने स्वाभिमान और ईमानदारी की कीमत पर करता है.’’
Insaf
October 31, 2016 at 1:06 pm
इधर राष्ट्रीय सहारा में मजीठिया के नाम पर खूब बंदरबांट हुवा है. जो पंद्रह साल से बीस साल से सहारा में ख़त रहे थे और इस इंतजार में थे कि मजीठिया का फ़ायदा उन्हें मिलेगा, किन्तु उन्हें मजीठिया के नाम पर ठेंगा मिला है. उपेन्द्र राय के चहेते की बल्ले बल्ले हो गयी. किसी की ७ हजार तो किसी के १४००० तक बढ़ा दिए गए. सबसे जूनियर की सैलरी इतनी बढ़ा डी गयी है कि वह अपने हेड के करीब पहुँच गया है. अब बेचारे हेड क्या करेंगे. कई मामले में तो हेड भी पीछे हो गए है. अराजकता की हद हो गयी. सुनने में आया है कि सहाराश्री को मुसीबत में डालने के लिए ऐसा किया गया है ताकि सहारा में आक्रोश फैले. आखिर जब सहाराश्री के आदेश पर उपेन्द्र राय के चहेते के बढे हुए वेतन और पद वापस हो गए तो फिर उनकी सैलरी कैसे बढ़ा दी गयी. जब उनका पद ही नहीं रहा तो वेतन कैसे बढ़ी. लगता है परदे के पीछे से खेल चल रहा है. आखिर जो १०-१५ वर्षों से एक ही पद पर है उसे प्रोनात्ति नहीं देने का क्या औचित्य है. हड़ताल के दिनों में जो कंपनी के लॉयल बने रहे उन सभी का वेतन न बढाकर सजा दी गयी है. जो लोग हड़ताल किये उन्हें नवाजा गया है. यह जांच का विषय है.
MUDRARAKSHAS
November 1, 2016 at 5:21 pm
सहारा में मजीठिया के नाम पर गजब का तमाशा हुआ है-
तमाशा नंबर एक- डी टी पी ओपरेटर की सैलरी उर्दू के रेजिडेंट एडिटर से अधिक हो गयी है.
तमाशा नंबर दो- जो लोग १५-२०-२५ वर्षों से वरिष्ठ , प्रधान संबाददाता के पद पर काम कर रहे हैं उन्हें एक पैसे की भी बढ़ोतरी नहीं डी गयी, उलटे उनसे उपर नीचे व कम अनुभवी रिपोर्टर, सब एडिटर के वेतन कर दिए गए. जो लोग हरताल का जमकर समर्थन किये उन्हें जमकर पुरस्कार दिया गया. अब बताईये १५-२० वर्षों से घिस रहे कर्मियों की क्या गलती है . वह रे सहारा. राष्ट्रीय सहारा के ८० फीसदी कर्मियों में असंतोष है. सहारा में कैडर की अहमियत होती है. कैडर सहाराश्री के निर्देश पर ही बढ़ाये जाते है. लेकिन मौजूदा बॉस ने अपने चहेतों के लिए कैडर को दरकिनार कर रिदेजिनेट को खूब आगे बढाया है. उदहारण के तौर पर कई कर्मियों का कैडर ऑफिसर और जूनियर रिपोर्टर है किन्तु उन्हें रिदेजिनेट कर स्पेशल संबाददाता बना दिया. राष्ट्रीय सहारा को इससे करारा आर्थिक नुकसान हुआ. ऐसे लोगों को खूब पहुँचाया गया है , जबकि सहाराश्री ने इसे ख़ारिज कर दिया था. यह जांच का विषय है कि पिछले ३-४ वर्षों में किस पदाधिकारी ने किन किन लोगों को रिदेजिनेट कर सहारा को नुकसान पहुँचाया. अभी कई राज खुलेंगे. खासकर भूमिहार को परदे के पीछे से फ़ायदा पहुँचाया गया है.