भारतीय सेना के जांबाज जवानों द्वारा पाकिस्तान में घुसकर सर्जिकल स्ट्राइक की खबर से देश झूम रहा है, नाच रहा है। इसी बीच मुम्बई मिरर में आज धोनी पर बनी फिल्म का रिव्यू पढ़ा। शीर्षक था सर्जिकल स्ट्राइकर। इस रिव्यू ने काफी कुछ सोचने को मजबूर कर दिया। काश हमारे लेबर अधिकारी माननीय सुप्रीमकोर्ट के आदेश का पालन करते हुए मीडिया के दफ्तरों में भी जाकर मजीठिया वेज बोर्ड का पालन करने पर कागजातों के साथ सर्जिकल स्ट्राइक करते। उन्हें पता चल जाता कि कहाँ कहाँ गड़बड़ी है।
मजीठिया वेज बोर्ड की अधिसूचना में साफ़ लिखा है कि एक समाचार पत्र प्रबंधन की जितनी भी सहायक कंपनियां या शाखाएं हैं, सबको एकल यूनिट ही माना जायेगा। मगर अखबार मालिक पता नहीं कहाँ से दिमाग लगाकर अलग अलग यूनिट का टर्नओवर दिखाकर श्रम विभाग की आँखों में धूल झोंक रहे है। कुछ अखबार मालिकों ने तो 20जे का सहारा लिया है। इस 20जे का फार्मेट देखकर ही समझ में आ जायेगा कि सब फर्जीवाड़ा है। 20जे के फार्मेट को बाकायदे अखबार मालिकों ने टाइप कराया और दे दिया कर्मचारी को कि नौकरी करते रहना है तो इसे भर दिया जाय। बेचारे कर्मचारी क्या करते, भर दिया। लेकिन पैसा होने से दिमाग जब नहीं चलता तो कानूनी सलाहकार की मदद ली जाती है। अब अगर मुर्गा खुद आपके पास कटने आये तो क्या कहना। यही हाल है लीगल एडवाइजर का।
अखबार मालिकों को लीगल एडवाइजर ने एक फार्मेट दे दिया और कह दिया कि इसे सभी कर्मचारियों से भरवा लीजिये। अब इस प्री टाइप फार्मेट में कर्मचारियों को धमकाकर साइन करा लिया गया। इस पर डेट नहीं डलवाया गया। बोला गया डेट बाद में डालिये। गरियाने का मन कर रहा है ऐसे कानूनी सलाहकारों को। आप सोचिये अगर मैंने 20जे भरा (हालांकि खुद मैंने भरा नहीं है) और वह भी स्वेच्छा से तो पूरा मैटर लिखूंगा या पूरा टाइप करके दूंगा। टाइप वाले की दुकान पर जाकर कभी नहीं कहूंगा कि आधा तुम टाइप करो आधा हम हाथ से लिखेंगे। आधा लिखकर और आधा टाइप करा करके तो कभी नहीं दूंगा। हम इतने पगलेट तो नहीं होते कि डेट भी हाथ से ना लिखें और बाद में डेट टाइपिंग वाले के पास जाकर मशीन से टाइप कराएं। आरटीआई से एक साथी का 20जे की कॉपी मंगाया। दूसरी चीज 20जे उनके लिए होता है जिनका वेतन मजीठिया से ज्यादा रहता है।
सर्जिकल स्ट्राइक में लेबर विभाग सबसे पहले मालिकान से ये पूछे कि जनाब आपके कर्मचारियों ने खुद से 20जे भरा है? ये आप मानते हैं और इसीलिए आप मजीठिया वेज बोर्ड की सिफारिश लागू नहीं कर रहे हो। अगर वे कुछ कहते हैं तो इनसे लिखित रूप से ये जानकारी लेनी चाहिए। उसके बाद साफ़ कहना चाहिए कि अब आप प्रूफ दिखाइये कि आप इन्हें मजीठिया वेज बोर्ड से ज्यादा वेतन देते हो। देखिये कैसे इन मालिकों की हालत खराब होती है। इस सर्जिकल स्ट्राइक में ये भी देखना चाहिए मजीठिया वेज बोर्ड के मुताबिक कितने कर्मचारियों को 10 साल से ऊपर काम करने पर प्रमोशन दिए गए। मेडिक्लेम और एलटीए कर्मचारियों को मिलता है या नहीं, इसकी भी जाँच होनी चाहिए। सभी स्थाई, अस्थाई और ठेका पद्धति पर काम करने वाले कर्मचारियों की पूरी लिस्ट लेनी चाहिए इस सर्जिकल स्ट्राइक में। सिर्फ इतना काम करने से देश के लाखों मीडियाकर्मियों का भला हो जाएगा।
शशिकान्त सिंह
पत्रकार और आरटीआई एक्टिविस्ट
मुंबई
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