आप प्रधानमंत्री नरेंद्र भाई मोदी जी की विदेश यात्राओं के चुंबकत्व से बाहर आ गए होंगे। उनकी मीठी-मीठी, चिकनी-चुपड़ी और गोल-मोल बातों से अपना दु:ख-दर्द भूल गए होंगे। अब जरा तंद्रा तोड़ें और सोचें कि मोदी की वजह से हमने क्या खोया और क्या पाया। खोने की जहां तक बात है तो हम अपना अधिकार खोते जा रहे हैं। जीने का अधिकार, अपनी भूमि पर खेती करने का अधिकार और शोषण के खिलाफ लड़ने का अधिकार। पाने की जहां तक बात है तो हमें मिली है महंगाई, बेरोजगारी और शोषण की अंतहीन विरासत।
हमारे कुछ मित्र ऐसे हैं जो मोदी के जादू से मुक्त ही नहीं हो पा रहे हैं। वे बार-बार यही कहते हैं कि देश में बड़ी-बड़ी कंपनियां आएंगी और रोजगार के अवसर बढ़ेंगे। लेकिन वे यह भूल जाते हैं कि ये कंपनियां एक झटके में सैकड़ों-हजारों लोगों को बेरोजगार कर देती हैं और उनके बच्चे अनाथ हो जाते हैं। यह तो अनाथ हो जाना ही हुआ। जिस बच्चे के पिता की नौकरी छिन जाती है, वह तो आर्थिक रूप से अनाथ ही हो जाता है।
इस फेसबुक एकाउंट पर ज्यादारतर मित्र पत्रकारिता से जुड़े होंगे और उनको यह अच्छी तरह मालूम होगा कि किस प्रकार दैनिक जागरण जैसे कुछ अखबार मालिक अपने कर्मचारियों को मजीठिया वेतनमान देने से कतरा रहे हैं और कानून का मजाक उड़ाते हुए अपने कर्मचारियों को बेरोजगार कर रहे हैं। क्या मोदी जी को इस अत्याचार की भनक नहीं है—-यदि नहीं है तो उनका प्रधानमंत्री पद पर बने रहना देश के लिए सर्वाधिक दुर्भाग्यपूर्ण है। उन्होंने एक बार भी ऐसा कोई बयान नहीं दिया कि अखबार मालिक सुप्रीम कोर्ट के आदेश का मजाक न बनाएं। अपने कर्मचारियों के बच्चों को आर्थिक रूप से अनाथ करने से बाज आएं। लेकिन मोदी जी ऐसा कभी नहीं करेंगे, क्योंकि दैनिक जागरण उनके साथ खड़ा है-पत्रकारों की जुबान पर लगाम लगाने के लिए, मोदी का जादू पूरे देश को दिखाने के लिए और जनता का भ्रम बनाए रखने के लिए। तभी तो दैनिक जागरण ने अपने कर्मचारियों को फरमान जारी किया है-हम भूमि अधिग्रहण बिल के साथ हैं।
यहां दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल की चर्चा जरूरी है, जो शायद पहले ऐसे नेता हैं, जिन्होंने अखबार मालिकों के अत्याचार का खुल कर विरोध किया है। उन्होंने अखबार कर्मचारियों को मजीठिया वेतनमान दिलाने के लिए एक अधिकारी की भी नियुक्ति कर दी है। अब हालत यह है कि उन्हें अपने अनुसार अधिकारी भी नियुक्त नहीं करने दिया जा रहा है। यह है केंद्र सरकार की साम्राज्यवादी नीति, जो जनता को गुलाम बनाने वाली लग रही है। अगर सबकुछ केंद्र सरकार के ही इशारे पर होना था तो दिल्ली की जनता के जनादेश का क्या मतलब हुआ।
जाहिर है कि केंद्र सरकार जनादेश से पंगा ले रही है। और जनादेश से पंगा लेने वालों का क्या हश्र हुआ, इसे आप बार-बार देख चुके हैं। मोदी जी के मंत्रियों को खरी-खोटी बाबा रामदेव भी सुना चुके हैं। हो सकता है कि मोदी जी बेईमान न हों, लेकिन सुपर बेईमान, मजीठिया चोर और छेड़छाड़ के आरोपियों के साथ खड़े होकर फोटो खिंचवाना मोदी जी को कतई शोभा नहीं देता। उन्हें अच्छे और बुरे में भेद तो करना ही होगा। जब तक वह अत्याचारी अखबार मालिकों को रोकने के लिए बयान जारी नहीं करेंगे और उनके साथ गलबहियां डाल कर फोटो खिंचवाते रहेंगे, तब तक उनकी नीयत पर सवाल उठते ही रहेंगे। मोदी जी उन बच्चों की हाय मत लीजिए, जिनके पिता बिना किसी गलती के बेरोजगार कर दिए गए हैं। दैनिक जागरण जैसे अखबार मालिक तो कह ही रहे हैं-मोदी जी का है साथ, तुम्हारे बच्चों को कर देंगे अनाथ।
फोर्थपिलर एफबी वॉल से
Comments on “मजीठिया वेतनमान पर अखबारों के रवैये से नरेंद्र मोदी अनजान तो नहीं, फिर खामोश क्यों?”
BAHOT BADHIYA
ACHHE DIN KAB AYENGE?