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साहित्य

ममता किरण की कविताओं में आधुनिक जीवन से जुड़े प्रश्न हैं, जीवन की दौड़ में गुम होती संवेदनाएं हैं

MAMTA KIRAN

ममता किरण की कविताएं अतीत राग सरीखी है। लोक लय में वह परिवेश से जुड़ी हमारी सनातन परम्पराओं को कविताओं में गहरे से सहेजती है तो आधुनिकता में छीजते जा रहे जीवन मूल्यों पर प्रहार भी करती है। महत्वपूर्ण यह है कि उनकी कविताएं अतीत राग में जीवन से जुड़े उदात्त भावों को गहरे से संजोए है। कविता में स्त्री की व्यंजना वह नदी रूपी उस संस्कृति से करती हैं जिसमें सबके लिए देने को कुछ न कुछ है। कविता पंक्तियां देखें, ‘स्त्री मांगती है नदी से/ सभ्यता के गुण/ जलाती है दीप आस्था के/ नदी में प्रवाहित कर/ करती है मंगल कामना सबके लिए/ और…/ अपने लिए मांगती है…/ सिर्फ नदी होना..’ इस ‘नदी होने’ की व्यंजना में ही ममता किरण कवयित्री के अपने होने की जैसे शब्द दर शब्द तलाश करती है।

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ममता किरण की कविताएं अतीत राग सरीखी है। लोक लय में वह परिवेश से जुड़ी हमारी सनातन परम्पराओं को कविताओं में गहरे से सहेजती है तो आधुनिकता में छीजते जा रहे जीवन मूल्यों पर प्रहार भी करती है। महत्वपूर्ण यह है कि उनकी कविताएं अतीत राग में जीवन से जुड़े उदात्त भावों को गहरे से संजोए है। कविता में स्त्री की व्यंजना वह नदी रूपी उस संस्कृति से करती हैं जिसमें सबके लिए देने को कुछ न कुछ है। कविता पंक्तियां देखें, ‘स्त्री मांगती है नदी से/ सभ्यता के गुण/ जलाती है दीप आस्था के/ नदी में प्रवाहित कर/ करती है मंगल कामना सबके लिए/ और…/ अपने लिए मांगती है…/ सिर्फ नदी होना..’ इस ‘नदी होने’ की व्यंजना में ही ममता किरण कवयित्री के अपने होने की जैसे शब्द दर शब्द तलाश करती है।

शब्द के भीतर के शब्द और उनके महत्व की ओर ईशारा करती ममता किरण कहती है, ‘बचा रखेंगे/ जो हम/ अपने भीतर शब्द/ तो…/ बनें रहेंगे मनुष्य।’ शब्द के इस उजास में ही वह हरे भरे वृक्ष के अतीत में जीवन से जुड़ी व्यथाओं और बहुतेरी कथाओं को भी बुनती है। यह है तभी तो धारा के साथ नहीं बहने की कविता राग यहां है तो जल से जुड़े जीवन की संवेदना भी इनमें है। महानगर से जुड़ी विडम्बनाओं के साथ इन कविताओं में प्रकृति के अपनापे को भी ठौड़-ठौड़ अंवेरा गया है।

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अतीत सहेजते ममता किरण ने एक कविता में सहज सरल शब्दों में जीवन की आपाधापी को बुनते पल में होने वाली अनहोनी के खिलाफ ‘प्रार्थना’ की मार्मिक व्यंजना की है, ‘इस पल में प्रार्थना यह भी है/ वो मांएं जल्दी घर पहुंचे/ कि बच्चे जिनके देखते हैं/ खिड़की से रास्ता आने का…’

ऐसे ही किसी के लिए बरकरार रखी गयी ‘हंसी’ को भी इनमें गहरे से संजोया गया है तो तकनीक के इस दौर में किताबों में रखे महकते खत की याद भी यहां सहेजी गयी है।

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बहरहाल, ममता किरण की इन कविताओं में आधुनिक जीवन से जुड़े प्रश्न और जीवन की दौड़ में गुम होती संवेदनाएं हैं। स्मृतियों के पन्नों में ममता किरण के शब्दालंकार कुछेक स्थानों पर मोहते हुए गहरे से हममें जैसे बसते है। इसलिए कि स्मृतियों की महक में वह शब्द की लूंठी लय से हमारा साक्षात् कराती हैं। मसलन ‘यादें’ कविता को ही लें। शब्द व्यंजना देखें, ‘कभी कभी/ मन की पटरी पर/ गुजर जाती हैं यादें।’ और यही क्यों पूरी की पूरी कविता में अतीत के ताने-बाने में समय की सुनहरी दीठ है। मां से मिला तुलसी का पत्ता यहां है, दिल के विशाल वृक्ष की टहनियों पर बैछे पंछी यहां है, धरती के सीने पर धड़धड़ाती यादों की गुजरती रेल यहां है तो सर्द मौसम में सहेजकर रखे गर्म कपड़े और वह पतंग भी है जिसे उड़ाते कोई मासूम बच्चा आसमान में सजाता है ढे़र सारे सपने।

बहरहाल, ममता किरण सहज सरल शब्दों में जीवन के छोटे-छोटे पलों को सहेजती कवयित्री हैं। अपनी कविता में वह जमीं, आसमां, चांद-सितारे, हवा-पानी में नानी की कहानी, गुड्डे-गुड़ियों का ब्याह की बचपन की यादों को सहेजती सुदूर देश में अपनी मिट्टी में खाक होने की चाह संजोती जैसे कविता में अपने ‘होने’ की बारम्बार तलाश करती है। कविता ‘जन्म लूं’ में वह रसखान की कविता ‘मानस हों तो वही रसखान’ की याद दिलाती अनायास ही अपने तई उस चाह को अंवेरती है जिसमें परम्परा को सहेजते जीवन मूल्यों को गहरे से गुना और फिर उसे कविता में बुना जाता है।

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कविता संग्रह: वृक्ष था हरा-भरा
कवयित्री: ममता किरण
प्रकाशक: किताबघर प्रकाशन, नयी दिल्ली
मूल्य: एक सौ पचास मात्र
पृष्ठ: 96

डॉ. राजेश कुमार व्यास
3/39, गांधीनगर, न्याय पथ
जयपुर- 302015 (राजस्थान)

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