पत्रकार मनीष दुबे की दारूबाजी की दास्तान… यूं मुक्ति मिली एडिक्शन से!

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मनीष दुबे-

धाकड़ पियक्कड़ मैं अब तक ट्रक बराबर शराब पी गया होऊंगा लेकिन ऐसी अनिच्छा कभी नहीं हुई जैसी अब होती है. शराब पीना मेरा शौक बन गया था. रोज का. जैसे लोगों को अपनी दिनचर्या में कई तरह के शौक होते हैं, वैसे मेरी दिनचर्या में दारुबाजी का शौक अंदर तक घुस गया था. शाम होते ही एक चुल उठती जो ठेके तक ले जाती थी. पिछले कुछ साल महीने से शाम की महफ़िल दिन में सजने लगी थी. थोड़े आंकड़े बताऊं तो जुलाई 2023 से पहले के लगातार 6 माह मेरा रोज का खर्चा हजार से नीचे और 5 सौ के ऊपर बैठता रहा. खूब रुपया फूंका, पर इसके बदले हाथ क्या लगा, लिवर डैमेज हो गया. ये हर दारुबाज का लास्ट मोमेंट होता है.

जून महीने की बात है. JMD न्यूज़ में बतौर प्रोड्यूसर ज्वाइन किया था. अब, जुलाई का पहला दिन पेट में दर्द हुआ. इससे दो रोज पहले तीन-तीन क्वार्टर पीकर सोया. लेकिन जालौन में सुबह खाली पेट हींग गठिया नमकीन के साथ पी गई एक क्वार्टर आरएस दारू ने एक जुलाई की पहली सुबह दफ्तर में असर दिखाया. असर ऐसा की न उठा जाये और न बैठा. सच में उस दिन मैं कनपुरिया डायलॉग की तरह ‘तिरंगा मूत रहा था.’

जुलाई की बारिश में ठंड से शरीर कांप रहा था, पड़ोस में फुल चिल्लड AC की आदी लड़कियों से सर्दी कम करने की गुहार लगाई. उस दिन जो दिक्क़त महसूस की वो हमेशा याद रहेगी. इस बीच गूगल पर दारू, पेट व लिवर संबंधी लक्षण देखे तो हूबहू वही निकले जैसे मुझे दिक्क़त दे रहे थे. यहीं बैठकर मैंने देशी इलाज भी खोजा. इसके बाद छुट्टी लेकर घर के लिए निकल गया. आज शराब नहीं बल्कि उस शाम की दारू का कोटा आंवला, पालक, चुकंदर, करेला इत्यादि खरीदने में निकाल दिया. 500 रूपये का आइटम सब्जी वाले ने बोरी भरकर मेरी बाइक के पीछे लपेट दिया.

घर आते ही फुल फ्लैट लेट गया. पत्नी को हर एक घंटे में, लाई गई चीजों को सर्व करने का टाइम टेबल दिया गया. वक़्त बीता तो लगभग 25 दिन लगे मुझे अच्छी हालत तक आने में. घरवालों और दोस्तों ने डॉक्टर-अस्पताल की सलाह दी, लेकिन मुझे पता था, डॉक्टर के पास जाने का मतलब एक ट्रक दारू की क़ीमत वसूल लेगा. मैंने घर में देशी इलाज किया और पहले से अधिक स्वास्थ्य सुधरा. हालांकि नौकरी चली गई. उसे जाना भी था. बीच में दारूबाजी के चक्कर में एक दो दिन गोल हुआ तो मुक्षे ढ़ुंढ़वाकर चैनल में मंगवाया गया. फिर जालौन शादी में पांच दिन गायब रहा. तब भी मुझे नहीं मेरे काम को मोहलत और तवज्जो मिली थी. लेकिन इस बार के 25 दिन बाद, मैंने खुद छोड़ने की नहीं बल्कि उनके द्वारा हटाए जाने की बात को वरीयता पर रखा. हालांकि चाहता तो फिर जा सकता था, पर मैं नहीं गया. फिलहाल ये 25 दिन मेरी जिंदगी में बड़ा टर्न लेकर आये. औषधियों के एक्सपेरिमेंट के साथ मन मस्तिष्क और चेतना को स्थायित्व सा मिला.

खैर, समय आगे बढ़ा तो घर में पैसों की दिक्क़त हुई. ये भी गजब बात रही की ज़ब दारू पीता था तो पैसे की तिकड़म बनी रहती, दारू छोड़ते ही धन आना भी बंद हो गया. अब और मुसीबत. तभी एक मित्र ने छत्तीसगढ़ से संचालित वेबसाइट में कंटेंट राइटर का काम दिलाया. अपन लेटे लेटे कंटेंट ठेलने लगे. इससे बड़ी राहत मिली. दूधवाला, अख़बार वाला, गैस वाला सबका उधारी निपटा दिया. वैसे भी कहते हैं किसी को कुछ दान देने से पहले अपना कर्ज निपटा दो तो ज्यादा पुण्य मिलता है. हालांकि अभी कई बहुत खास लोगों का मुझपर कर्ज है, उसे निपटाना है. और एक बात, मुझपर जिन भी लोगों का पैसा है, जिन्होंने दारुबाजी की या जीनुईन दिक्क़त में मेरी मदद की, पर कभी वापस नहीं मांगा. ये उनका तगड़ा बड़प्पन है, जिसका सम्मान मेरे दिल में भरपूर है. और सच बताऊं तो लोग हैरान हैं कि मैंने शराब छोड़ दी.

एक वक़्त अब है, सुबह एक बड़े संपादक ने कुछ रूपये भेजे हैं. मैंने अभी तक नहीं देखा, कितना है क्या है? जबकी पहले ऐसा नहीं था. ऐसा भी नहीं है की इन पांच महीनों में दारू पीने का मन ना हुआ हो. बिल्कुल मन हुआ. एक रात चकेरी के मृतक किसान बाबू सिंह के घर से वापस आते समय मन हुआ. सोचा एक क्वार्टर पिया जाये. लेकिन ख्याल आया की 2 ढाई माह बाद घर पीकर जाओगे तो बचा भरोसा भी टूट जायेगा. मैं तुरत घर आ गया. दोबारा अभी नवरात्र के पहले दिन, एक फिरंगी को 200 का नोट देकर आरएस का क्वार्टर मंगवाया, फिर ख्याल आया आज मातारानी परीक्षा ले रहीं हैं. उस दिन फिर घर आ गया. पहले मन मुझे टहलाता था, अब मन को मैं टहलाता हूं. पर पक्का अब दारू नहीं पीनी, बेटियों को किया प्रॉमिस नहीं तोडना.

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