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सियासत

मुस्लिमों पर बुल्डोजर को ‘न्याय’ बताने वाले पत्रकार ‘पंडित कांड’ से दुखी हो गए हैं!

मोहम्मद ज़ाहिद-

कानपुर में बुल्डोजर का मज़ा एक पंडित ने चखा तो भांड मीडिया और उसके ऐंकर बिलबिला उठे। यही मीडिया मुसलमानों के घरों पर चलते बुल्डोजर को न्याय बताकर योगी जी और भाजपा सरकारों का महिमा मंडन करते थे।

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गिरे घर के मलबे से मिलते इस्लामिक साहित्य को आपत्तिजनक सहित्य बताकर बिग ब्रेकिंग न्यूज़ चलाते थे।

हालांकि कानपुर में हृदय दहलाने वाली घटना हुई है उस पर दुख है , मगर ऐसा ही दुख मुसलमानों के घरों पर चलते बुल्डोजर पर नहीं होता।

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यही अमृतकाल है , नवाज़ देवबन्दी ने कहा था कि

जलते घर को देखने वालों फूस का छप्पर आपका है

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आपके पीछे तेज़ हवा है आगे मुकद्दर आपका है

उस के क़त्ल पे मैं भी चुप था मेरा नम्बर अब आया

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मेरे क़त्ल पे आप भी चुप है अगला नम्बर आपका है

पढ़ें देशबन्धु में संपादकीय आज…

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बुलडोज़र और आग की लपटें

उत्तरप्रदेश में कानून व्यवस्था का दम दिखाने के नाम पर पिछले कुछ वक्त से बुलडोज़र कार्रवाई काफी सुर्खियों में रही है। माफिया और गुंडा राज को ख़त्म करने के लिए उप्र पुलिस प्रशासन उनके ठिकानों पर बुलडोज़र चलाता है। अपराधियों को सख़्त संदेश देने के इस तरीके पर योगी सरकार खूब चर्चा में रही है। पिछले साल अप्रैल में ब्रिटेन के तत्कालीन प्रधानमंत्री बोरिस जॉनसन गुजरात आए थे, तो वे भी बुलडोजर पर सवार हुए थे। इसे एक तरह से बुलडोज़र कार्रवाई को अंतरराष्ट्रीय मान्यता के तौर पर निरुपित किया गया। इस साल जनवरी में खबर आई कि इजरायल के प्रधानमंत्री बेंजामिन नेतन्याहू आतंकवादियों पर कार्रवाई के लिए योगी का बुलडोज़र मॉडल अपना रहे हैं।

रक्षा और जासूसी – दोनों ही क्षेत्रों में इजरायल की तूती अंतरराष्ट्रीय स्तर पर बोलती है। और अगर इजरायल उप्र मॉडल पर चले तो राष्ट्रवादियों की खुशी स्वाभाविक है। देश के भी कई राज्यों में अपराधियों से निपटने के लिए बुलडोज़र कार्रवाई धड़ल्ले से की गई। इस पर नागरिक समाज की ओर से चिंता भी जतलाई गई कि क्या कानून व्यवस्था सुदृढ़ करने का यह तरीका सही है। बापू का तो संदेश है अपराध से घृणा करो, अपराधियों से नहीं। मगर बुलडोजर कार्रवाई से अपराध की जगह अपराधियों को ही निशाने पर लिया जा रहा है और उनके साथ पूरे परिवार को संकट में डाला जा रहा है। कंक्रीट की इमारतों को अपराधी का ठिकाना बताकर बुलडोज़र ढहाते हैं, वे असल में किसी का घर होते हैं, जिनमें एक नहीं, कई जिंदगियां गुजर-बसर करती हैं। अकेले अपराधी को इससे सजा नहीं मिलती, पूरा परिवार इस सजा को भुगतता है।

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वैसे भी अपराधी को सजा न्यायपालिका के आदेशानुसार ही मिलनी चाहिए। फिर चाहे वह कैद हो या जुर्माना, या दोनों। बुलडोज़र चला कर अपराध को नहीं, मानवाधिकारों को कुचला जाता है। इसके कई उदाहरण प्रयागराज से लेकर दिल्ली तक बीते वक्त में सामने आए हैं। अब बुलडोज़र कार्रवाई का एक और भयावह परिणाम उत्तरप्रदेश में देखने मिला है। कानपुर देहात रूरा थाना क्षेत्र के मड़ौली गांव में अतिक्रमण हटाने पहुंची प्रशासन की टीम ने एक परिवार की झोपड़ी पर बुलडोज़र चलवा दिया। इसी दौरान उसमें आग लग गई और मां-बेटी की जलकर मौत हो गई। इस घटना का वीडियो भी वायरल हुआ है। वीडियो में एक आवाज सुनाई दे रही है कि ‘देखो भैया देखो, मेरी मम्मी जल रही हैं।’ वीडियो में जलती हुई आग की लपटें दिख रही हैं और दो लोगों के जोर-जोर से बिलखने की आवाज़ आ रही है।

जानकारी के मुताबिक यह झोपड़ी कृष्ण गोपाल दीक्षित की थी। इसे अतिक्रमण के नाम पर बुलडोज़र से तोड़ने जब टीम पहुंची तो इसमें आग लग गई और कृष्ण गोपाल की पत्नी और 23 साल की बेटी दोनों इसमें झुलस गए। आग का सही कारण शायद निष्पक्ष जांच के बाद सामने आए। क्योंकि एक ओर ये कहा जा रहा है कि कृष्ण गोपाल की पत्नी और बेटी ने विरोध में खुद को आग लगा ली, यानी आत्महत्या कर ली। वहीं परिवार का पुलिस पर गंभीर आरोप है कि पुलिस ने झोपड़ी में आग लगाई थी, जिस कारण दोनों महिलाओं की मौत हो गई। चार लोगों के इस परिवार में अब पिता और बेटा ही बच गए हैं।

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अपनी पत्नी और बेटी को बचाने की कोशिश के दौरान कृष्ण गोपाल भी बुरी तरह झुलस गए। उन्हें अस्पताल में भर्ती कराना पड़ा। इस पूरी घटना से ग्रामीणों में भारी आक्रोश देखा गया और हालात संभालने के लिए सरकार ने एसडीएम, लेखपाल, एसओ सहित करीब 24 लोगों पर एफआईआर दर्ज की है। अब सरकार से पीड़ित परिवार के लिए मुआवजे और सरकारी नौकरी की मांग की जा रही है। मुमकिन है लोगों का गुस्सा शांत करने के लिए इस मांग को सरकार मान ले। लेकिन इस सबका हासिल क्या हुआ। क्या अतिक्रमण जैसे गैरकानूनी काम पर इससे रोक लग जाएगी, या अपराध ख़त्म हो जाएंगे!

उप्र की मुख्यमंत्री आदित्यनाथ योगी का एक वीडियो सोशल मीडिया पर है, जिसमें वे निर्देश दे रहे हैं कि अपराधियों, माफियाओं के ठिकानों पर बुलडोज़र चले, लेकिन किसी ग़रीब के घर पर नहीं। क्या अधिकारियों तक यह निर्देश स्पष्ट नहीं पहुंचा, या फिर वे सरकार की बात नहीं मान रहे हैं या ओहदे का रुतबा बुलडोज़र के साथ मिलकर दोहरा कहर ढा रहा है। मंडौली गांव की घटना से कुछ और सवाल भी उपज रहे हैं, जैसे मां-बेटी ने क्या सचमुच आत्महत्या की। विरोध का कोई और रास्ता उन्होंने क्यों नहीं अपनाया। अगर वे अपनी जान लेने पर मजबूर हुईं, तो यह मजबूरी क्यों उपजी। किस लाचारी के डर ने उन्हें अपनी जान लेने पर मजबूर कर दिया। जब कृष्ण गोपाल अपनी पत्नी और बेटी को झुलसने से बचा रहे थे, तब वहां मौजूद प्रशासनिक टीम ने इसमें मदद क्यों नहीं की। इतने सारे लोग मिलकर दो लोगों को जिंदा जलते देखते रहे, तो क्या यह देश से मानवता की अर्थी उठने की घोषणा है। क्या इस घटना के बाद बुलडोज़र कार्रवाई पर पुनर्विचार किया जाएगा। या फिर बुलडोज़र के साथ अग्निशमन वाहन भी भेज दिया जाएगा, कि इधर आग लगे और उधर बुझाने का इंतज़ाम हो जाए।

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बुलडोज़र और आग से जलकर मौत की इस घटना पर अब राजनीति भी शुरु हो गई है। कांग्रेस, सपा जैसे दल बढ़-चढ़ कर सरकार का विरोध कर रहे हैं। अब विपक्षी दलों में इस बात की भी होड़ है कि कौन विरोध में सबसे आगे रहता है। जब तक इनमें इस तरह की होड़ जारी रहेगी, भाजपा की जीत निश्चित रहेगी। बहरहाल, इस विरोध में यह तथ्य भी रेखांकित हुआ कि पीड़ित परिवार ब्राह्मण था। जाति और धर्म की राजनीति का निचोड़ इसमें देखा जा सकता है। दो जिंदगियां जो असमय जलकर राख हो गई, उस राख की जाति और धर्म अगर तलाशने की प्रवृत्ति जारी रही, तो फिर बुलडोज़र कार्रवाई के ईमानदार विरोध की उम्मीद नहीं की जा सकती।

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